अविरुद्ध: Difference between revisions
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[[नयचक्रवृहद्]] गाथा संख्या २४८ सामण्ण अह विसेसं दव्वे णाणं हवेइ अविरोहो। साहइ तं सम्मत्तं णहु पुण तं तस्स अविरीयं ।।२४८।।< | <p class="SanskritPrakritSentence">[[नयचक्रवृहद्]] गाथा संख्या २४८ सामण्ण अह विसेसं दव्वे णाणं हवेइ अविरोहो। साहइ तं सम्मत्तं णहु पुण तं तस्स अविरीयं ।।२४८।।</p> | ||
<p class="HindiSentence">= द्रव्यमें सामान्य तथा विशेषका ज्ञान होना ही अविरुद्ध है वह ही सम्यकत्वको साधता है, क्योंकि वह उससे विपरीत नहीं है।</p> | <p class="HindiSentence">= द्रव्यमें सामान्य तथा विशेषका ज्ञान होना ही अविरुद्ध है वह ही सम्यकत्वको साधता है, क्योंकि वह उससे विपरीत नहीं है।</p> | ||
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Revision as of 00:44, 25 May 2009
नयचक्रवृहद् गाथा संख्या २४८ सामण्ण अह विसेसं दव्वे णाणं हवेइ अविरोहो। साहइ तं सम्मत्तं णहु पुण तं तस्स अविरीयं ।।२४८।।
= द्रव्यमें सामान्य तथा विशेषका ज्ञान होना ही अविरुद्ध है वह ही सम्यकत्वको साधता है, क्योंकि वह उससे विपरीत नहीं है।