निस्तरण: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> भगवती आराधना / विजयोदया टीका/2/14/21 <span class="SanskritText"> | <p> भगवती आराधना / विजयोदया टीका/2/14/21 <span class="SanskritText"> भवांतरप्रापणं दर्शनादीनां निस्तरणम् ।</span> =<span class="HindiText">अन्य भव में सम्यग्दर्शनादिकों को पहुँचाना अर्थात् आमरण निर्दोष पालन करना, जिससे कि वे अन्य जन्म में भी अपने साथ आ सकें।</span><br> | ||
अनगारधर्मामृत/1/96/104 <span class="PrakritText">निस्तीर्णस्तु स्थिरमपि तटप्रापणं कृच्छ्रपाते।</span> =<span class="HindiText">परीषह तथा उपसर्गों के उपस्थित रहने पर भी उनसे चलायमान न होकर इनके अंत तक पहुँचा देने को अर्थात् क्षोभ रहित होकर | अनगारधर्मामृत/1/96/104 <span class="PrakritText">निस्तीर्णस्तु स्थिरमपि तटप्रापणं कृच्छ्रपाते।</span> =<span class="HindiText">परीषह तथा उपसर्गों के उपस्थित रहने पर भी उनसे चलायमान न होकर इनके अंत तक पहुँचा देने को अर्थात् क्षोभ रहित होकर मरणांत पहुँचा देने को निस्तरण कहते हैं। </span></p> | ||
<noinclude> | <noinclude> | ||
[[ निसृष्टार्थ | पूर्व पृष्ठ ]] | [[ निसृष्टार्थ | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ निस्तारक | [[ निस्तारक मंत्र | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: न]] | [[Category: न]] |
Revision as of 16:27, 19 August 2020
भगवती आराधना / विजयोदया टीका/2/14/21 भवांतरप्रापणं दर्शनादीनां निस्तरणम् । =अन्य भव में सम्यग्दर्शनादिकों को पहुँचाना अर्थात् आमरण निर्दोष पालन करना, जिससे कि वे अन्य जन्म में भी अपने साथ आ सकें।
अनगारधर्मामृत/1/96/104 निस्तीर्णस्तु स्थिरमपि तटप्रापणं कृच्छ्रपाते। =परीषह तथा उपसर्गों के उपस्थित रहने पर भी उनसे चलायमान न होकर इनके अंत तक पहुँचा देने को अर्थात् क्षोभ रहित होकर मरणांत पहुँचा देने को निस्तरण कहते हैं।