एकल विहारी: Difference between revisions
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[[मूलाचार]] / [[आचारवृत्ति]] / गाथा संख्या १४९ तवसुत्तसत्तएग्गत्तभावसंघडणधिदिसमग्गो य। पविआ आगमबलिओ एयविहारी अणुण्णादो ।१४९।< | <p class="SanskritPrakritSentence">[[मूलाचार]] / [[आचारवृत्ति]] / गाथा संख्या १४९ तवसुत्तसत्तएग्गत्तभावसंघडणधिदिसमग्गो य। पविआ आगमबलिओ एयविहारी अणुण्णादो ।१४९।</p> | ||
<p class="HindiSentence">= तप, सूत्र शरीर व मनके बलसे युक्त हो, एकत्व भावनामें रत हो; शुभ परिणाम, उत्तमसंहनन तथा धृति अर्थात् मनोबलसे युक्त हो; दीक्षा व आगममें बलवान् हो तात्पर्य यह कि तपोवृद्ध, ज्ञानवृद्ध, आचारकुशल व आगम कुशल गुण विशिष्ट साधुको ही जिनेश्वरने अकेले विहारके लिए सम्मति दी है। (और भी <b>देखे </b>[[जिनकल्प)]] </p> | |||
<UL start=0 class="BulletedList"> <LI> पंचमकालमें एकलविहारी साधुका निषेध-<b>देखे </b>[[विहार]] । </LI> </UL> | |||
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Revision as of 01:12, 26 May 2009
मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा संख्या १४९ तवसुत्तसत्तएग्गत्तभावसंघडणधिदिसमग्गो य। पविआ आगमबलिओ एयविहारी अणुण्णादो ।१४९।
= तप, सूत्र शरीर व मनके बलसे युक्त हो, एकत्व भावनामें रत हो; शुभ परिणाम, उत्तमसंहनन तथा धृति अर्थात् मनोबलसे युक्त हो; दीक्षा व आगममें बलवान् हो तात्पर्य यह कि तपोवृद्ध, ज्ञानवृद्ध, आचारकुशल व आगम कुशल गुण विशिष्ट साधुको ही जिनेश्वरने अकेले विहारके लिए सम्मति दी है। (और भी देखे जिनकल्प)
- पंचमकालमें एकलविहारी साधुका निषेध-देखे विहार ।