पंचास्तिकाय: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> बहुप्रदेशी द्रव्य । ये द्रव्य पाँच हैं― जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश । इनमें जीव, धर्म और अधर्म तो असंख्यात प्रदेशी है और पुद्गल संख्यात, असंख्यात तथा | <p> बहुप्रदेशी द्रव्य । ये द्रव्य पाँच हैं― जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश । इनमें जीव, धर्म और अधर्म तो असंख्यात प्रदेशी है और पुद्गल संख्यात, असंख्यात तथा अनंत प्रदेशी है । आकाश अनंत प्रदेशी है । काल एक प्रदेशी है । उसके बहुप्रदेशरूप काय न होने से उसे अस्तिकायों में सम्मिलित नहीं किया जाता । इन पांच द्रव्यों में काल को जोड़ देने से द्रव्य छ: हो जाते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 249, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 16.137-138 </span></p> | ||
Line 5: | Line 5: | ||
[[ पंचाश्चर्य | पूर्व पृष्ठ ]] | [[ पंचाश्चर्य | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ | [[ पंचेंद्रिय | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: प]] | [[Category: प]] |
Revision as of 16:28, 19 August 2020
बहुप्रदेशी द्रव्य । ये द्रव्य पाँच हैं― जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश । इनमें जीव, धर्म और अधर्म तो असंख्यात प्रदेशी है और पुद्गल संख्यात, असंख्यात तथा अनंत प्रदेशी है । आकाश अनंत प्रदेशी है । काल एक प्रदेशी है । उसके बहुप्रदेशरूप काय न होने से उसे अस्तिकायों में सम्मिलित नहीं किया जाता । इन पांच द्रव्यों में काल को जोड़ देने से द्रव्य छ: हो जाते हैं । महापुराण 249, वीरवर्द्धमान चरित्र 16.137-138