प्रकृति: Difference between revisions
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<p id="1">(1) कर्म की प्रकृतियाँ । अघाति कर्मों की पचासी तथा घाति कर्मों की तिरेसठ कर्म प्रकृतियाँ होती है । <span class="GRef"> महापुराण 48.52, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 19.221-231 </span></p> | <p id="1">(1) कर्म की प्रकृतियाँ । अघाति कर्मों की पचासी तथा घाति कर्मों की तिरेसठ कर्म प्रकृतियाँ होती है । <span class="GRef"> महापुराण 48.52, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 19.221-231 </span></p> | ||
<p id="2">(2) | <p id="2">(2) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 25. 165 </span></p> | ||
<p id="3">(3) अग्रायणीयपूर्व की पंचम वस्तु के कर्म प्रकृति प्राभृत का पांचवां अनुयोग द्वार । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 10.82 </span></p> | <p id="3">(3) अग्रायणीयपूर्व की पंचम वस्तु के कर्म प्रकृति प्राभृत का पांचवां अनुयोग द्वार । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 10.82 </span></p> | ||
Revision as of 16:28, 19 August 2020
== सिद्धांतकोष से == सांख्य व शैव मत मान्य प्रकृति तत्त्व - देखें वह वह दर्शन।
पुराणकोष से
(1) कर्म की प्रकृतियाँ । अघाति कर्मों की पचासी तथा घाति कर्मों की तिरेसठ कर्म प्रकृतियाँ होती है । महापुराण 48.52, वीरवर्द्धमान चरित्र 19.221-231
(2) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 25. 165
(3) अग्रायणीयपूर्व की पंचम वस्तु के कर्म प्रकृति प्राभृत का पांचवां अनुयोग द्वार । हरिवंशपुराण 10.82