मातंग: Difference between revisions
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<p id="2">(2) विद्याधर नमि का पुत्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 22.108 </span></p> | <p id="2">(2) विद्याधर नमि का पुत्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 22.108 </span></p> | ||
<p id="3">(3) विद्याधरों की जाति । ये विद्याघर मेघ-समूह के समान श्याम वर्ण के होते हैं । नीले वस्त्र और नीली मालाएँ पहिनते हैं तथा | <p id="3">(3) विद्याधरों की जाति । ये विद्याघर मेघ-समूह के समान श्याम वर्ण के होते हैं । नीले वस्त्र और नीली मालाएँ पहिनते हैं तथा मातंगस्तंभ के सहारे बैठते हैं । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 26.15 </span></p> | ||
<p id="4">(4) गंधिल देश के जंगलों में प्राप्त हाथी । ये उन्मत्त और सबल होते हैं । इनके | <p id="4">(4) गंधिल देश के जंगलों में प्राप्त हाथी । ये उन्मत्त और सबल होते हैं । इनके गंडस्थल से मद प्रवाहित होता रहता है । मद से इनके नेत्र निमीलित रहते हैं । इस जाति के हाथी भरतेश की सेना में थे । अपना परिश्रम दूर करने के लिए ये जल में कीड़ा करते हैं । ये ऊँचे होते हैं स्नान के पश्चात् ये स्वयं धूल उड़ाकर धूल-धूसरित हो जाते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 4.75, 29.134, 139, 141-142, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 28.148 </span></p> | ||
<p id="5">(5) | <p id="5">(5) चांडाल । <span class="GRef"> पद्मपुराण 2.45 </span></p> | ||
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Revision as of 16:32, 19 August 2020
== सिद्धांतकोष से ==
- पद्मप्रभु व पार्श्वनाथ भगवान् का शासक यक्ष–देखें तीर्थंकर - 5.3।
- राजा विनमि का पुत्र जिससे मातंगवंश की उत्पत्ति हुई–देखें इतिहास - 10.9।
पुराणकोष से
(1) धरणेंद्र की दूसरी देवी दिति द्वारा विद्याधर नमि और विनमि के लिए दिये गये आठ विद्या-निकायों में प्रथम विद्या-निकाय । हरिवंशपुराण 22.59
(2) विद्याधर नमि का पुत्र । हरिवंशपुराण 22.108
(3) विद्याधरों की जाति । ये विद्याघर मेघ-समूह के समान श्याम वर्ण के होते हैं । नीले वस्त्र और नीली मालाएँ पहिनते हैं तथा मातंगस्तंभ के सहारे बैठते हैं । हरिवंशपुराण 26.15
(4) गंधिल देश के जंगलों में प्राप्त हाथी । ये उन्मत्त और सबल होते हैं । इनके गंडस्थल से मद प्रवाहित होता रहता है । मद से इनके नेत्र निमीलित रहते हैं । इस जाति के हाथी भरतेश की सेना में थे । अपना परिश्रम दूर करने के लिए ये जल में कीड़ा करते हैं । ये ऊँचे होते हैं स्नान के पश्चात् ये स्वयं धूल उड़ाकर धूल-धूसरित हो जाते हैं । महापुराण 4.75, 29.134, 139, 141-142, पद्मपुराण 28.148
(5) चांडाल । पद्मपुराण 2.45