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<p> पद्मिनी नगर के राजा विजयपर्वत के दूत अमृतस्वर और उसकी स्त्री उपयोगा का कनिष्ठ पुत्र, उदित का छोटा भाई । वसुभूति इन दोनों के पिता का मित्र था । वह इसकी माता को चाहता था और इसकी माता उसे चाहती थी । वसुभूति ने इसके पिता को मार डाला था । इस घटना से कुपित होकर इसके भाई उदित ने वसुदेव को मार डाला । वह मरकर म्लेच्छ हुआ । इसके पश्चात् दोनों भाई मतिवर्धन आचार्य द्वारा राजा को दिये गये उपदेश को सुनकर उनसे दीक्षित हो गए । विहार करते हुए दोनों भाई सम्मेदाचल जा रहे थे । राह भूल जाने से वे उस अटवी में पहुंचे जहाँ वसुभूति का जीव म्लेच्छ हुआ था । इस अटवी में म्लेच्छ इन्हें मारने के लिए तत्पर दिखाई दिया । ये दोनों प्रतिमायोग में स्थिर हो गये । म्लेच्छ इन्हें मारने आया | <p> पद्मिनी नगर के राजा विजयपर्वत के दूत अमृतस्वर और उसकी स्त्री उपयोगा का कनिष्ठ पुत्र, उदित का छोटा भाई । वसुभूति इन दोनों के पिता का मित्र था । वह इसकी माता को चाहता था और इसकी माता उसे चाहती थी । वसुभूति ने इसके पिता को मार डाला था । इस घटना से कुपित होकर इसके भाई उदित ने वसुदेव को मार डाला । वह मरकर म्लेच्छ हुआ । इसके पश्चात् दोनों भाई मतिवर्धन आचार्य द्वारा राजा को दिये गये उपदेश को सुनकर उनसे दीक्षित हो गए । विहार करते हुए दोनों भाई सम्मेदाचल जा रहे थे । राह भूल जाने से वे उस अटवी में पहुंचे जहाँ वसुभूति का जीव म्लेच्छ हुआ था । इस अटवी में म्लेच्छ इन्हें मारने के लिए तत्पर दिखाई दिया । ये दोनों प्रतिमायोग में स्थिर हो गये । म्लेच्छ इन्हें मारने आया किंतु उसके सेनापति ने उसे इन्हें नहीं मारने दिया । इस उपसर्ग से बचकर दोनों सम्मेदाचल गये । वहाँ दोनों ने जिनवंदना की । अंत में दोनों चिरकाल तक रत्नत्रय की आराधना करते हुए मरे और स्वर्ग गये । <span class="GRef"> पद्मपुराण 39.84-145 </span></p> | ||
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पद्मिनी नगर के राजा विजयपर्वत के दूत अमृतस्वर और उसकी स्त्री उपयोगा का कनिष्ठ पुत्र, उदित का छोटा भाई । वसुभूति इन दोनों के पिता का मित्र था । वह इसकी माता को चाहता था और इसकी माता उसे चाहती थी । वसुभूति ने इसके पिता को मार डाला था । इस घटना से कुपित होकर इसके भाई उदित ने वसुदेव को मार डाला । वह मरकर म्लेच्छ हुआ । इसके पश्चात् दोनों भाई मतिवर्धन आचार्य द्वारा राजा को दिये गये उपदेश को सुनकर उनसे दीक्षित हो गए । विहार करते हुए दोनों भाई सम्मेदाचल जा रहे थे । राह भूल जाने से वे उस अटवी में पहुंचे जहाँ वसुभूति का जीव म्लेच्छ हुआ था । इस अटवी में म्लेच्छ इन्हें मारने के लिए तत्पर दिखाई दिया । ये दोनों प्रतिमायोग में स्थिर हो गये । म्लेच्छ इन्हें मारने आया किंतु उसके सेनापति ने उसे इन्हें नहीं मारने दिया । इस उपसर्ग से बचकर दोनों सम्मेदाचल गये । वहाँ दोनों ने जिनवंदना की । अंत में दोनों चिरकाल तक रत्नत्रय की आराधना करते हुए मरे और स्वर्ग गये । पद्मपुराण 39.84-145