रविप्रभ: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) प्रथम स्वर्ग का विमान । <span class="GRef"> महापुराण 47.260 </span></p> | <p id="1"> (1) प्रथम स्वर्ग का विमान । <span class="GRef"> महापुराण 47.260 </span></p> | ||
<p id="2">(2) प्रथम स्वर्ग के रविप्रभ विमान का एक देय । इसने सुलोचना के शील को परीक्षा के लिए देवी कांचना को जयकुमार के पास भेजा था । देवी ने जयकुमार से अनेक चेष्टाएँ कीं | <p id="2">(2) प्रथम स्वर्ग के रविप्रभ विमान का एक देय । इसने सुलोचना के शील को परीक्षा के लिए देवी कांचना को जयकुमार के पास भेजा था । देवी ने जयकुमार से अनेक चेष्टाएँ कीं किंतु वह सफल न हो सकी । अंत में कुपित होकर जब वह जयकुमार को ही उठाकर ले जाने लगी तब सुलोचना ने उसे ललकारा था । वह सुलोचना के शील के आगे कुछ न कर सकी और स्वर्ग लौट गयी । इस देवी ने इस देव को वह सब वृत्तांत सुनाया । यह देव जयकुमार के निकट गया तथा क्षमायाचना कर इसने जयकुमार की रत्नों से पूजा की थी । <span class="GRef"> महापुराण 47.259-273, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 3.261-272 </span></p> | ||
<p id="3">(3) वानरवंशी राजा समीरणगति का पुत्र । यह अमरप्रभ का पिता था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 6.161-162 </span></p> | <p id="3">(3) वानरवंशी राजा समीरणगति का पुत्र । यह अमरप्रभ का पिता था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 6.161-162 </span></p> | ||
<p id="4">(4) | <p id="4">(4) जंबूद्वीप का एक नगर । लक्ष्मण ने इस पर विजय की थी । <span class="GRef"> पद्मपुराण 94.4-9 </span></p> | ||
Revision as of 16:33, 19 August 2020
(1) प्रथम स्वर्ग का विमान । महापुराण 47.260
(2) प्रथम स्वर्ग के रविप्रभ विमान का एक देय । इसने सुलोचना के शील को परीक्षा के लिए देवी कांचना को जयकुमार के पास भेजा था । देवी ने जयकुमार से अनेक चेष्टाएँ कीं किंतु वह सफल न हो सकी । अंत में कुपित होकर जब वह जयकुमार को ही उठाकर ले जाने लगी तब सुलोचना ने उसे ललकारा था । वह सुलोचना के शील के आगे कुछ न कर सकी और स्वर्ग लौट गयी । इस देवी ने इस देव को वह सब वृत्तांत सुनाया । यह देव जयकुमार के निकट गया तथा क्षमायाचना कर इसने जयकुमार की रत्नों से पूजा की थी । महापुराण 47.259-273, पांडवपुराण 3.261-272
(3) वानरवंशी राजा समीरणगति का पुत्र । यह अमरप्रभ का पिता था । पद्मपुराण 6.161-162
(4) जंबूद्वीप का एक नगर । लक्ष्मण ने इस पर विजय की थी । पद्मपुराण 94.4-9