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([[धवला]] पुस्तक संख्या १२/४,२,७,२१४/१७०/६) एत्थ अणंतभागबड्ढीए उव्वंकसण्णा।< | <p class="SanskritPrakritSentence">([[धवला]] पुस्तक संख्या १२/४,२,७,२१४/१७०/६) एत्थ अणंतभागबड्ढीए उव्वंकसण्णा।</p> | ||
<p class="HindiSentence">= यहाँ अनन्त भाग वृद्धिकी उर्वक अर्थात् `उ' संज्ञा है। (षट् स्थानपतित हानि-वृद्धि क्रमके छह स्थानोंकी संहननी क्रमशः ४,५,६,७,८ और `उ' स्वीकार की गयी है)।</p> | |||
([[गोम्मट्टसार जीवकाण्ड]] / मूल गाथा संख्या ३२५/६८४), (ल.स./जी.प्र. ७९/९)।<br> | |||
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(धवला पुस्तक संख्या १२/४,२,७,२१४/१७०/६) एत्थ अणंतभागबड्ढीए उव्वंकसण्णा।
= यहाँ अनन्त भाग वृद्धिकी उर्वक अर्थात् `उ' संज्ञा है। (षट् स्थानपतित हानि-वृद्धि क्रमके छह स्थानोंकी संहननी क्रमशः ४,५,६,७,८ और `उ' स्वीकार की गयी है)।
(गोम्मट्टसार जीवकाण्ड / मूल गाथा संख्या ३२५/६८४), (ल.स./जी.प्र. ७९/९)।