विघ्यात संक्रमण निर्देश: Difference between revisions
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Revision as of 16:35, 19 August 2020
विघ्यात संक्रमण निर्देश
1. विघ्यात संक्रमण का लक्षण
नोट - [अपकर्षण विधान में बताये गये स्थिति व अनुभाग कांडक व गुणश्रेणीरूप परिणामों में प्रवृत्त होना विघ्यात संक्रमण है। इसका भागाहार भी यद्यपि अंगुल/असंख्यात भाग है, परंतु यह उद्वेलना के भागाहार से असंख्यात गुणहीन है, अत: इसके द्वारा प्रति समय उठाया गया द्रव्य बहुत अधिक है। मिथ्यात्व व मिश्र मोह इन दो प्रकृतियों को जब सम्यक्प्रकृतिरूप से परिणमाता है तब यह संक्रमण होता है। वेदक सम्यक्त्व वाले को तो सर्व ही अपनी स्थिति काल में वहाँ तक होता रहता है जब तक कि क्षपणा प्रारंभ करता हुआ अध:प्रवृत्त परिणाम का अंतिम समय प्राप्त होता नहीं। उपशम सम्यक्त्व के भी अपने सर्व काल में उसी प्रकार होता रहता है, परंतु यहाँ प्रथम अंतर्मुहूर्त में गुणसंक्रमण करता है पश्चात् उसका काल समाप्त होने के पश्चात् विघ्यात प्रारंभ होता है।]
गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/413/576/8 विघ्यातविशुद्धिकस्य जीवस्य स्थित्यनुभागकांडकगुणश्रेंयादिपरिणामेष्वतीतेषु प्रवर्तनाद्विध्यातसंक्रमणं णाम। =मंद विशुद्धता वाले जीव की, स्थिति अनुभाग के घटाने रूप भूतकालीन स्थिति कांडक और अनुभाग कांडक तथा गुणश्रेणी आदि परिणामों में प्रवृत्ति होना विघ्यात संक्रमण है।