वितंडा: Difference between revisions
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न्यायदर्शन सूत्र/ मू./1/2/3<span class="SanskritText"> प्रतिपक्षस्थापनाहीनो | न्यायदर्शन सूत्र/ मू./1/2/3<span class="SanskritText"> प्रतिपक्षस्थापनाहीनो वितंडा।</span> = <span class="HindiText">प्रतिपक्ष के साधन से रहित जल्प का नाम वितंडा है। अर्थात् अपने किसी भी पक्ष की स्थापना किये बिना केवल परपक्ष का खंडन करना वितंडा है। ( स्याद्वादमंजरी/10/107/13 )। </span><br /> | ||
स्याद्वादमंजरी/10/107/15 <span class="SanskritText"> वस्तुतस्त्वपरामृष्ठतत्त्वातत्त्वविचारं मौखर्यं वितंडा।</span> =<span class="HindiText"> वास्तव में तत्त्व-अतत्त्व का विचार न करके खाली बकवास करने को वितंडा कहते हैं। <br /> | |||
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न्यायदर्शन सूत्र/ भा./1/2/2/43/10 <span class="SanskritText">यत्तत्प्रमाणैरर्थस्य साधनं तत्त | न्यायदर्शन सूत्र/ भा./1/2/2/43/10 <span class="SanskritText">यत्तत्प्रमाणैरर्थस्य साधनं तत्त छलजातिनिग्रहस्थानामंगभावी रक्षणार्थत्वात् तानि ही प्रयुज्यमानानि परपक्षविघातेन स्वपक्षं रक्षंति। </span>=<span class="HindiText"> जैसे बीज की रक्षा के लिए सब ओर से काँटेदार शाखा लगा देते हैं, उसी प्रकार तत्त्वनिर्णय की इच्छारहित केवल जीतने के अभिप्राय से जो पक्ष लेकर आक्षेप करते हैं, उनके दूषण के समाधान के लिए जल्प वितंडा का उपदेश किया गया है।50। जीतने की इच्छा से न कि तत्त्वज्ञान की इच्छा से जल्प और वितंडा के द्वारा वाद करे।51। यद्यपि छल जाति और निग्रहस्थान साक्षात् अपने पक्ष के साधक नहीं होते हैं, तथा दूसरे के पक्ष का खंडन तथा अपने पक्ष की रक्षा करते हैं। <br /> | ||
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Revision as of 16:35, 19 August 2020
- तंडा
न्यायदर्शन सूत्र/ मू./1/2/3 प्रतिपक्षस्थापनाहीनो वितंडा। = प्रतिपक्ष के साधन से रहित जल्प का नाम वितंडा है। अर्थात् अपने किसी भी पक्ष की स्थापना किये बिना केवल परपक्ष का खंडन करना वितंडा है। ( स्याद्वादमंजरी/10/107/13 )।
स्याद्वादमंजरी/10/107/15 वस्तुतस्त्वपरामृष्ठतत्त्वातत्त्वविचारं मौखर्यं वितंडा। = वास्तव में तत्त्व-अतत्त्व का विचार न करके खाली बकवास करने को वितंडा कहते हैं।
- वाद जल्प व वितंडा में अंतर–देखें वाद - 5।
- नैयायिकों द्वारा जल्प वितंडा आदि के प्रयोग का समर्थन व प्रयोजन
न्यायदर्शन सूत्र/ मू./5/1/50-51/284 तत्त्वाध्यवसायसंरक्षणार्थं जल्पवितंडे बीजप्ररोहणसंरक्षणार्थं कंटकशाखावरण-वत्।50। ताभ्यां विगृह्य कथनम्।51।
न्यायदर्शन सूत्र/ भा./1/2/2/43/10 यत्तत्प्रमाणैरर्थस्य साधनं तत्त छलजातिनिग्रहस्थानामंगभावी रक्षणार्थत्वात् तानि ही प्रयुज्यमानानि परपक्षविघातेन स्वपक्षं रक्षंति। = जैसे बीज की रक्षा के लिए सब ओर से काँटेदार शाखा लगा देते हैं, उसी प्रकार तत्त्वनिर्णय की इच्छारहित केवल जीतने के अभिप्राय से जो पक्ष लेकर आक्षेप करते हैं, उनके दूषण के समाधान के लिए जल्प वितंडा का उपदेश किया गया है।50। जीतने की इच्छा से न कि तत्त्वज्ञान की इच्छा से जल्प और वितंडा के द्वारा वाद करे।51। यद्यपि छल जाति और निग्रहस्थान साक्षात् अपने पक्ष के साधक नहीं होते हैं, तथा दूसरे के पक्ष का खंडन तथा अपने पक्ष की रक्षा करते हैं।
- जय पराजय व्यवस्था–देखें न्याय - 2।