विद्युच्चर: Difference between revisions
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वृ. कथाकोष/कथा नं. 4/पृ. अस्थिरचित्त सोमदत्त से आकाशगामी विद्या का साधन पूछकर स्वयं विद्या सिद्धकरली। फिर चैत्यालयों की | वृ. कथाकोष/कथा नं. 4/पृ. अस्थिरचित्त सोमदत्त से आकाशगामी विद्या का साधन पूछकर स्वयं विद्या सिद्धकरली। फिर चैत्यालयों की वंदना की।13। दीक्षा ले।14। स्वर्ग में ऋद्धिधारी देव हुआ।15। | ||
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Revision as of 16:35, 19 August 2020
वृ. कथाकोष/कथा नं. 4/पृ. अस्थिरचित्त सोमदत्त से आकाशगामी विद्या का साधन पूछकर स्वयं विद्या सिद्धकरली। फिर चैत्यालयों की वंदना की।13। दीक्षा ले।14। स्वर्ग में ऋद्धिधारी देव हुआ।15।