विपुलवाहन: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) तीर्थंकर | <p id="1"> (1) तीर्थंकर अभिनंदननाथ के पूर्वभव का नाम । <span class="GRef"> पद्मपुराण 20.18 </span></p> | ||
<p id="2">(2) तीर्थंकर | <p id="2">(2) तीर्थंकर कुंथुनाथ के पूर्वभव के पिता । <span class="GRef"> पद्मपुराण 20.28 </span></p> | ||
<p id="3">(3) मेरु पर्वत की पूर्व दिशा में स्थित क्षेमपुरी नगरी का राजा । इसकी रानी पद्मावती तथा पुत्र | <p id="3">(3) मेरु पर्वत की पूर्व दिशा में स्थित क्षेमपुरी नगरी का राजा । इसकी रानी पद्मावती तथा पुत्र श्रीचंद्र था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 106.75-76 </span></p> | ||
<p id="4">(4) सातवें कुलकर । बड़े-बड़े हाथियों को वाहन बनाकर उन पर अत्यधिक क्रीडा करने से इन्हें इस नाम से संबोधित किया गया था । इनके पिता कुलकर | <p id="4">(4) सातवें कुलकर । बड़े-बड़े हाथियों को वाहन बनाकर उन पर अत्यधिक क्रीडा करने से इन्हें इस नाम से संबोधित किया गया था । इनके पिता कुलकर सीमंधर थे । कुलकर चक्षुष्मान् इनका पुत्र था । ये पल्य के करोड़वें भाग जीवित रहकर स्वर्ग गये थे । <span class="GRef"> महापुराण </span>में इन्हें विमलवाहन नाम दिया है । ये पद्म प्रमाण आयु के धारक थे । शरीर की ऊंचाई सात सौ धनुष थी । इन्होंने हाथी, घोड़ा आदि सवारी के योग्य पशुओं पर कुमार, अंकुश, पलान, तोबरा आदि का उपयोग कर सवारी करने का उपदेश दिया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 3. 116-119 </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 7.155-157, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 2.106 </span></p> | ||
Revision as of 16:35, 19 August 2020
(1) तीर्थंकर अभिनंदननाथ के पूर्वभव का नाम । पद्मपुराण 20.18
(2) तीर्थंकर कुंथुनाथ के पूर्वभव के पिता । पद्मपुराण 20.28
(3) मेरु पर्वत की पूर्व दिशा में स्थित क्षेमपुरी नगरी का राजा । इसकी रानी पद्मावती तथा पुत्र श्रीचंद्र था । पद्मपुराण 106.75-76
(4) सातवें कुलकर । बड़े-बड़े हाथियों को वाहन बनाकर उन पर अत्यधिक क्रीडा करने से इन्हें इस नाम से संबोधित किया गया था । इनके पिता कुलकर सीमंधर थे । कुलकर चक्षुष्मान् इनका पुत्र था । ये पल्य के करोड़वें भाग जीवित रहकर स्वर्ग गये थे । महापुराण में इन्हें विमलवाहन नाम दिया है । ये पद्म प्रमाण आयु के धारक थे । शरीर की ऊंचाई सात सौ धनुष थी । इन्होंने हाथी, घोड़ा आदि सवारी के योग्य पशुओं पर कुमार, अंकुश, पलान, तोबरा आदि का उपयोग कर सवारी करने का उपदेश दिया था । पद्मपुराण 3. 116-119 हरिवंशपुराण 7.155-157, पांडवपुराण 2.106