विमान: Difference between revisions
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धवला 14/5, 6, 641/495/6 <span class="PrakritText">बलहि–कूडसमण्णिदा पासादा विमाणाणि णाम। </span>= <span class="HindiText">बलभि और कूट से युक्त प्रासाद विमान कहलाते हैं। <br /> | धवला 14/5, 6, 641/495/6 <span class="PrakritText">बलहि–कूडसमण्णिदा पासादा विमाणाणि णाम। </span>= <span class="HindiText">बलभि और कूट से युक्त प्रासाद विमान कहलाते हैं। <br /> | ||
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सर्वार्थसिद्धि/4/16/248/4 <span class="SanskritText">तानि विमानानि त्रिविधानि- | सर्वार्थसिद्धि/4/16/248/4 <span class="SanskritText">तानि विमानानि त्रिविधानि-इंद्रकश्रेणीपुष्पप्रकीर्णभेदेन।</span> = <span class="HindiText">इंद्रक, श्रेणिबद्ध और पुष्पप्रकीर्णक के भेद से विमान तीन प्रकार के हैं। ( राजवार्तिक/4/16/1/222/30 )। <br /> | ||
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<p id="1"> (1) तीर्थंकर के गर्भावतरण के समय उनकी माता द्वारा देखे गये सोलह स्वप्नों में तेरहवां स्वप्न । <span class="GRef"> पद्मपुराण 21.12-15 </span></p> | <p id="1"> (1) तीर्थंकर के गर्भावतरण के समय उनकी माता द्वारा देखे गये सोलह स्वप्नों में तेरहवां स्वप्न । <span class="GRef"> पद्मपुराण 21.12-15 </span></p> | ||
<p id="2">(2) देवो के प्रासाद । इनके तीन भेद होते हैं । वे हैं― | <p id="2">(2) देवो के प्रासाद । इनके तीन भेद होते हैं । वे हैं― इंद्रक विमान, श्रेणीबद्ध विमान और प्रकीर्णक विमान । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 6.42-43, 66-67, 77, 101 </span></p> | ||
<p id="3">(3) आकाशगामी वाहन । इसका उपयोग देव और विद्याधर करते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 13. 214 </span></p> | <p id="3">(3) आकाशगामी वाहन । इसका उपयोग देव और विद्याधर करते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 13. 214 </span></p> | ||
Revision as of 16:35, 19 August 2020
== सिद्धांतकोष से ==
सर्वार्थसिद्धि/4/16/248/3 विशेषेणात्मस्थान् सुकृतिनो मानयंतीति विमानानि। = जो विशेषतः अपने में रहने वाले जीवों को पुण्यात्मा मानते हैं वे विमान हैं। ( राजवार्तिक/4/16/1/222/29 )।
धवला 14/5, 6, 641/495/6 बलहि–कूडसमण्णिदा पासादा विमाणाणि णाम। = बलभि और कूट से युक्त प्रासाद विमान कहलाते हैं।
- विमान के भेद
सर्वार्थसिद्धि/4/16/248/4 तानि विमानानि त्रिविधानि-इंद्रकश्रेणीपुष्पप्रकीर्णभेदेन। = इंद्रक, श्रेणिबद्ध और पुष्पप्रकीर्णक के भेद से विमान तीन प्रकार के हैं। ( राजवार्तिक/4/16/1/222/30 )।
- स्वाभाविक व वैक्रियिक दोनों प्रकार के होते हैं
तिलोयपण्णत्ति/8/442-443 याणविमाणा दुविहा विक्किरियाए सहावेण।442। ते विक्किरियाजादा याणविमाणा विणासिणो होंति। अविणासिणो य णिच्चं सहावजादा परमरम्मा।443। = ये विमान दो प्रकार हैं–एक विक्रिया से उत्पन्न हुए और दूसरे स्वभाव से।442। विक्रिया से उत्पन्न हुए वे यान विमान विनश्वर और स्वभाव से उत्पन्न हुए वे परम रम्य यान विमान नित्य व अविनश्वर होते हैं।443।
- इंद्रक आदि विमान–देखें वह वह नाम ।
- देव वाहनों की बनावट–देखें स्वर्ग - 3.4।
- इंद्रक आदि विमान–देखें वह वह नाम ।
पुराणकोष से
(1) तीर्थंकर के गर्भावतरण के समय उनकी माता द्वारा देखे गये सोलह स्वप्नों में तेरहवां स्वप्न । पद्मपुराण 21.12-15
(2) देवो के प्रासाद । इनके तीन भेद होते हैं । वे हैं― इंद्रक विमान, श्रेणीबद्ध विमान और प्रकीर्णक विमान । हरिवंशपुराण 6.42-43, 66-67, 77, 101
(3) आकाशगामी वाहन । इसका उपयोग देव और विद्याधर करते हैं । महापुराण 13. 214