सत्त्व: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 6: | Line 6: | ||
<li id="1.2">[[सत्त्व निर्देश#2 | उत्पन्न व स्वस्थान सत्त्व के लक्षण।]]</li> | <li id="1.2">[[सत्त्व निर्देश#2 | उत्पन्न व स्वस्थान सत्त्व के लक्षण।]]</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul><li> | <ul><li>बंध उदय व सत्त्व में अंतर। - देखें [[ उदय#2 | उदय - 2]]।</li></ul> | ||
<ol start="3"> | <ol start="3"> | ||
<li id="1.3">[[सत्त्व निर्देश#3 | सत्त्व योग्य प्रकृतियों का निर्देश।]]</li> | <li id="1.3">[[सत्त्व निर्देश#3 | सत्त्व योग्य प्रकृतियों का निर्देश।]]</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
<li id="2"><strong>[[सत्त्व प्ररूपणा | <li id="2"><strong>[[सत्त्व प्ररूपणा संबंधी नियम]]</strong> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li id="2.1">[[सत्त्व प्ररूपणा | <li id="2.1">[[सत्त्व प्ररूपणा संबंधी नियम#1 | तीर्थंकर व आहारक के सत्त्व संबंधी।]]</li> | ||
<li id="2.2">[[सत्त्व प्ररूपणा | <li id="2.2">[[सत्त्व प्ररूपणा संबंधी नियम#2 | अनंतानुबंधी के सत्त्व असत्त्व संबंधी।]]</li> | ||
<li id="2.3">[[सत्त्व प्ररूपणा | <li id="2.3">[[सत्त्व प्ररूपणा संबंधी नियम#3 | छब्बीस प्रकृति सत्त्व का स्वामी मिथ्यादृष्टि होता है।]]</li> | ||
<li id="2.4">[[सत्त्व प्ररूपणा | <li id="2.4">[[सत्त्व प्ररूपणा संबंधी नियम#4 | 28 प्रकृति का सत्त्व प्रथमोपशम के प्रथम समय में होता है।]]</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li>प्रकृतियों आदि के सत्त्व की अपेक्षा प्रथम सम्यक्त्व की योग्यता। - देखें [[ सम्यग्दर्शन#IV.2 | सम्यग्दर्शन - IV.2]]।</li> | <li>प्रकृतियों आदि के सत्त्व की अपेक्षा प्रथम सम्यक्त्व की योग्यता। - देखें [[ सम्यग्दर्शन#IV.2 | सम्यग्दर्शन - IV.2]]।</li> | ||
<li>गतिप्रकृति के सत्त्व से जीव के जन्म का | <li>गतिप्रकृति के सत्त्व से जीव के जन्म का संबंध नहीं, आयु के सत्त्व से है। - देखें [[ आयु#2 | आयु - 2]]।</li> | ||
<li>आयु प्रकृति सत्त्व युक्त जीव की विशेषताएँ। - देखें [[ आयु#6 | आयु - 6]]।</li> | <li>आयु प्रकृति सत्त्व युक्त जीव की विशेषताएँ। - देखें [[ आयु#6 | आयु - 6]]।</li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol start="5"> | <ol start="5"> | ||
<li id="2.5">[[सत्त्व प्ररूपणा | <li id="2.5">[[सत्त्व प्ररूपणा संबंधी नियम#5 | जघन्य स्थिति सत्त्व निषेक प्रधान है और उत्कृष्ट काल प्रधान।]]</li> | ||
<li id="2.6">[[सत्त्व प्ररूपणा | <li id="2.6">[[सत्त्व प्ररूपणा संबंधी नियम#6 | जघन्यस्थिति सत्त्व का स्वामी कौन।]]</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li>सातिशय मिथ्यादृष्टि का सत्त्व सर्वत्र | <li>सातिशय मिथ्यादृष्टि का सत्त्व सर्वत्र अंत:कोटाकोटि से भी हीन है। - प्रकृतिबंध/7/4।</li> | ||
<li>अयोगी के शुभ प्रकृतियों का उत्कृष्ट अनुभाग सत्त्व पाया जाता है। - देखें [[ अपकर्षण#4 | अपकर्षण - 4]]।</li> | <li>अयोगी के शुभ प्रकृतियों का उत्कृष्ट अनुभाग सत्त्व पाया जाता है। - देखें [[ अपकर्षण#4 | अपकर्षण - 4]]।</li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol start="7"> | <ol start="7"> | ||
<li id="2.7">[[सत्त्व प्ररूपणा | <li id="2.7">[[सत्त्व प्ररूपणा संबंधी नियम#7 | प्रदेशों का सत्त्व सर्वदा 1।। गुणहानि प्रमाण होता है।]]</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<ul><li>प्रकृतियों के सत्त्व में निषेक रचना। - देखें [[ उदय#3 | उदय - 3]]।</li></ul> | <ul><li>प्रकृतियों के सत्त्व में निषेक रचना। - देखें [[ उदय#3 | उदय - 3]]।</li></ul> | ||
<ol start="8"> | <ol start="8"> | ||
<li id="2.8">[[सत्त्व प्ररूपणा | <li id="2.8">[[सत्त्व प्ररूपणा संबंधी नियम#8 | सत्त्व के साथ बंध का समानाधिकरण नहीं।]]</li> | ||
<li id="2.9">[[सत्त्व प्ररूपणा | <li id="2.9">[[सत्त्व प्ररूपणा संबंधी नियम#9 | सम्यग्मिथ्यात्व का जघन्य स्थिति सत्त्व 2 समय कैसे।]]</li> | ||
<li id="2.10">[[सत्त्व प्ररूपणा | <li id="2.10">[[सत्त्व प्ररूपणा संबंधी नियम#10 | पाँचवें के अभिमुख का स्थिति सत्त्व पहले के अभिमुख से हीन है।]]</li> | ||
<li id="2.11">[[सत्त्व प्ररूपणा | <li id="2.11">[[सत्त्व प्ररूपणा संबंधी नियम#11 | सत्त्व व्युच्छित्ति व सत्त्व स्थान संबंधी दृष्टिभेद]]</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> | ||
Line 64: | Line 64: | ||
<ul> | <ul> | ||
<li>सम्यक्त्व व मिश्र प्रकृति के सत्त्व काल की प्ररूपणा विशेष। - देखें [[ काल#6 | काल - 6]]।</li> | <li>सम्यक्त्व व मिश्र प्रकृति के सत्त्व काल की प्ररूपणा विशेष। - देखें [[ काल#6 | काल - 6]]।</li> | ||
<li> | <li>बंध उदय सत्त्व की त्रिसंयोगी प्ररूपणाएँ। - देखें [[ उदय#8 | उदय - 8]]।</li> | ||
<li>मूलोत्तर प्रकृति के चार प्रकार सत्त्व व सत् कर्मिकों | <li>मूलोत्तर प्रकृति के चार प्रकार सत्त्व व सत् कर्मिकों संबंधी सत् संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अंतर व अल्प बहुत्व प्ररूपणाएँ। - देखें [[ वह वह नाम ]]।</li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<ol start="18"> | <ol start="18"> | ||
<li id="3.18">[[सत्त्व विषयक प्ररूपणाएँ#18 | मूलोत्तर प्रकृति के सत्त्व चतुष्क की प्ररूपणा | <li id="3.18">[[सत्त्व विषयक प्ररूपणाएँ#18 | मूलोत्तर प्रकृति के सत्त्व चतुष्क की प्ररूपणा संबंधी सूची।]]</li> | ||
<li id="3.19">[[सत्त्व विषयक प्ररूपणाएँ#19 | अनुभाग सत्त्व की ओघ आदेश प्ररूपणा | <li id="3.19">[[सत्त्व विषयक प्ररूपणाएँ#19 | अनुभाग सत्त्व की ओघ आदेश प्ररूपणा संबंधी सूची।]]</li> | ||
</ol> | </ol> | ||
</li> | </li> |
Revision as of 16:38, 19 August 2020
सत्त्व का सामान्य अर्थ अस्तित्व है, पर आगम में इस शब्द का प्रयोग संसारी जीवों में यथायोग्य कर्म प्रकृतियों के अस्तित्व के अर्थ में किया जाता है। एक बार बँधने के पश्चात् जब तक उदय में आ-आकर विवक्षित कर्म के निषेक पूर्वरूपेण झड़ नहीं जाते तब तक उस कर्म की सत्ता कही गयी है।
- सत्त्व निर्देश
- बंध उदय व सत्त्व में अंतर। - देखें उदय - 2।
- सत्त्व प्ररूपणा संबंधी नियम
- तीर्थंकर व आहारक के सत्त्व संबंधी।
- अनंतानुबंधी के सत्त्व असत्त्व संबंधी।
- छब्बीस प्रकृति सत्त्व का स्वामी मिथ्यादृष्टि होता है।
- 28 प्रकृति का सत्त्व प्रथमोपशम के प्रथम समय में होता है।
- प्रकृतियों आदि के सत्त्व की अपेक्षा प्रथम सम्यक्त्व की योग्यता। - देखें सम्यग्दर्शन - IV.2।
- गतिप्रकृति के सत्त्व से जीव के जन्म का संबंध नहीं, आयु के सत्त्व से है। - देखें आयु - 2।
- आयु प्रकृति सत्त्व युक्त जीव की विशेषताएँ। - देखें आयु - 6।
- सातिशय मिथ्यादृष्टि का सत्त्व सर्वत्र अंत:कोटाकोटि से भी हीन है। - प्रकृतिबंध/7/4।
- अयोगी के शुभ प्रकृतियों का उत्कृष्ट अनुभाग सत्त्व पाया जाता है। - देखें अपकर्षण - 4।
- प्रकृतियों के सत्त्व में निषेक रचना। - देखें उदय - 3।
- सत्त्व विषयक प्ररूपणाएँ
- प्रकृति सत्त्व व्युच्छित्ति की ओघ प्ररूपणा।
- सातिशय मिथ्यादृष्टियों में सर्व प्रकृतियां का सत्त्व चतुष्क।
- प्रकृति सत्त्व असत्त्व की आदेश प्ररूपणा।
- मोह प्रकृति सत्त्व की विभक्ति अविभक्ति।
- मूलोत्तर प्रकृति सत्त्व स्थानों की ओघ प्ररूपणा।
- मूल प्रकृति सत्त्व स्थान सामान्य प्ररूपणा।
- मोहप्रकृति सत्त्व स्थान सामान्य प्ररूपणा।
- मोह सत्त्व स्थान ओघ प्ररूपणा।
- मोह सत्त्व स्थान आदेश प्ररूपणा का स्वामित्व विशेष।
- मोह सत्त्व स्थान आदेश प्ररूपणा।
- नाम प्रकृति सत्त्व स्थान सामान्य प्ररूपणा।
- जीव पदों की अपेक्षा नामकर्म सत्त्व स्थान प्ररूपणा।
- नामकर्म सत्त्व स्थान ओघ प्ररूपणा।
- नामकर्म सत्त्व स्थान आदेश प्ररूपणा।
- नाम प्रकृति सत्त्व स्थान पर्याप्तापर्याप्त प्ररूपणा।
- मोह स्थिति सत्त्व की ओघ प्ररूपणा।
- मोह स्थिति सत्त्व की आदेश प्ररूपणा।