स्त्री परिषह: Difference between revisions
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<span class="SanskritText"> सर्वार्थसिद्धि/9/9/422/11 | <span class="SanskritText"> सर्वार्थसिद्धि/9/9/422/11 एकांतेष्वारामभवनादिप्रदेशेषु नवयौवनमदविभ्रममदिरापानप्रमत्तासु प्रमदासु बाधमानासु कूर्मवत्संवृतेंद्रियहृदयविकारस्य ललितस्मितमृदुकथितसविलासवीक्षणप्रहसनमदमंथरगमनमंमथशरव्यापारविफलीकरणस्य स्त्रीबाधापरिषहसहनमवगंतव्यम् ।</span> = <span class="HindiText">एकांत ऐसे बगीचा तथा भवनादि स्थानों पर नवयौवन, मदविभ्रम और मदिरापान से प्रमत्त हुई स्त्रियों के द्वारा बाधा पहुँचाने पर कछुए के समान जिसने इंद्रिय और हृदय के विकार को रोक लिया है तथा जिसने मंद मुसकान, कोमल संभाषण, तिरछी नजरों से देखना, हँसना, मदभरी धीमी चाल से चलना और कामबाण मारना आदि को विफल कर दिया है उसके स्त्री बाधा परीषह जय समझनी चाहिए। ( राजवार्तिक/9/9/13/610/7 ); ( चारित्रसार/116/1 )।</span> | ||
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Revision as of 16:40, 19 August 2020
सर्वार्थसिद्धि/9/9/422/11 एकांतेष्वारामभवनादिप्रदेशेषु नवयौवनमदविभ्रममदिरापानप्रमत्तासु प्रमदासु बाधमानासु कूर्मवत्संवृतेंद्रियहृदयविकारस्य ललितस्मितमृदुकथितसविलासवीक्षणप्रहसनमदमंथरगमनमंमथशरव्यापारविफलीकरणस्य स्त्रीबाधापरिषहसहनमवगंतव्यम् । = एकांत ऐसे बगीचा तथा भवनादि स्थानों पर नवयौवन, मदविभ्रम और मदिरापान से प्रमत्त हुई स्त्रियों के द्वारा बाधा पहुँचाने पर कछुए के समान जिसने इंद्रिय और हृदय के विकार को रोक लिया है तथा जिसने मंद मुसकान, कोमल संभाषण, तिरछी नजरों से देखना, हँसना, मदभरी धीमी चाल से चलना और कामबाण मारना आदि को विफल कर दिया है उसके स्त्री बाधा परीषह जय समझनी चाहिए। ( राजवार्तिक/9/9/13/610/7 ); ( चारित्रसार/116/1 )।