हिरण्यनाभ: Difference between revisions
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जरासंघ का सेनापति। युद्ध में युधिष्ठिर द्वारा मारा गया ( | जरासंघ का सेनापति। युद्ध में युधिष्ठिर द्वारा मारा गया ( पांडवपुराण/19/162-163 )। | ||
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<p> अरिष्टपुर के राजा रुधिर और रानी मित्रा का ज्येष्ठ पुत्र । यह नीतिज्ञ, रण-निपुण और कलाओं का पारगामी था । रोहिणी इसकी बहिन और | <p> अरिष्टपुर के राजा रुधिर और रानी मित्रा का ज्येष्ठ पुत्र । यह नीतिज्ञ, रण-निपुण और कलाओं का पारगामी था । रोहिणी इसकी बहिन और श्रीकांता रानी थी । इसका पुत्री पद्मावती के स्वयंवर में इसके भानेज बलदेव और कृष्ण दोनों आये थे । इसने अपने बड़े भाई रेवत की रेवती, बंधुमती, सीता और राजीवनेत्रा चारों पुत्रियाँ पहले ही बलदेव को दे दी थी । यह महारथी राजा था । जरासंध ने इसे सेनापति बना लिया था । इसने कृष्ण के सेनापति अनावृष्टि का सामना किया था । उसे सात सौ नब्बे बाणों के द्वारा सत्ताईस बार घायल किया था । अंत में अनावृष्टि ने इसकी भुजाओं पर तलवार के घातक प्रहार कर इसकी दोनों भुजाएँ काट डाली थी तथा यह छाती फट जाने से प्राण रहित होकर पृथिवी पर गिर गया था । पांडवपुराण के अनुसार यह युधिष्ठिर द्वारा मारा गया था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 31.8-11, 44.37-43, 50.79, 51.13, 23, 35-41, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 19.162-163 </span></p> | ||
Revision as of 16:41, 19 August 2020
== सिद्धांतकोष से == जरासंघ का सेनापति। युद्ध में युधिष्ठिर द्वारा मारा गया ( पांडवपुराण/19/162-163 )।
पुराणकोष से
अरिष्टपुर के राजा रुधिर और रानी मित्रा का ज्येष्ठ पुत्र । यह नीतिज्ञ, रण-निपुण और कलाओं का पारगामी था । रोहिणी इसकी बहिन और श्रीकांता रानी थी । इसका पुत्री पद्मावती के स्वयंवर में इसके भानेज बलदेव और कृष्ण दोनों आये थे । इसने अपने बड़े भाई रेवत की रेवती, बंधुमती, सीता और राजीवनेत्रा चारों पुत्रियाँ पहले ही बलदेव को दे दी थी । यह महारथी राजा था । जरासंध ने इसे सेनापति बना लिया था । इसने कृष्ण के सेनापति अनावृष्टि का सामना किया था । उसे सात सौ नब्बे बाणों के द्वारा सत्ताईस बार घायल किया था । अंत में अनावृष्टि ने इसकी भुजाओं पर तलवार के घातक प्रहार कर इसकी दोनों भुजाएँ काट डाली थी तथा यह छाती फट जाने से प्राण रहित होकर पृथिवी पर गिर गया था । पांडवपुराण के अनुसार यह युधिष्ठिर द्वारा मारा गया था । हरिवंशपुराण 31.8-11, 44.37-43, 50.79, 51.13, 23, 35-41, पांडवपुराण 19.162-163