गुण संक्रमण निर्देश: Difference between revisions
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जिन प्रकृतियों का बंध हो रहा हो उनका गुण संक्रमण नहीं हो सकता; अबंधरूप प्रकृतियों का होता है और स्व जाति में ही होता है। अपूर्वकरण के प्रथम समय में गुण संक्रम नहीं होता। अनंतानुबंधी का गुण संक्रमण विसंयोजना कहलाता है।।</p> | जिन प्रकृतियों का बंध हो रहा हो उनका गुण संक्रमण नहीं हो सकता; अबंधरूप प्रकृतियों का होता है और स्व जाति में ही होता है। अपूर्वकरण के प्रथम समय में गुण संक्रम नहीं होता। अनंतानुबंधी का गुण संक्रमण विसंयोजना कहलाता है।।</p> | ||
<p><span class="SanskritText"> गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/413/576/9 प्रतिसमयसंख्येयगुणश्रेणिक्रमेण यत्प्रदेशसंक्रमणं तद् गुणसंक्रमणं नाम।</span> = <span class="HindiText">जहाँ पर प्रतिसमय असंख्यात गुणश्रेणीक्रम से परमाणु-प्रदेश अन्य प्रकृतिरूप परिणमे सो गुणसंक्रमण है।</span></p> | <p><span class="SanskritText"><span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/413/576/9 </span>प्रतिसमयसंख्येयगुणश्रेणिक्रमेण यत्प्रदेशसंक्रमणं तद् गुणसंक्रमणं नाम।</span> = <span class="HindiText">जहाँ पर प्रतिसमय असंख्यात गुणश्रेणीक्रम से परमाणु-प्रदेश अन्य प्रकृतिरूप परिणमे सो गुणसंक्रमण है।</span></p> | ||
<p class="HindiText" id="7.2"><strong>2. बंधवाली प्रकृतियों का नहीं होता</strong></p> | <p class="HindiText" id="7.2"><strong>2. बंधवाली प्रकृतियों का नहीं होता</strong></p> | ||
<p><span class="SanskritText"> लब्धिसार/ जी.प्र./75/109/17 अप्रशस्तानां बंधोज्झितप्रकृतीनां द्रव्यं प्रतिसमयमसंख्येयगुणं बध्यमानसजातीयप्रकृतिषु संक्रामति। पूर्वस्वरूपं गृह्णातीत्यर्थ:। | <p><span class="SanskritText"><span class="GRef"> लब्धिसार/ </span>जी.प्र./75/109/17 अप्रशस्तानां बंधोज्झितप्रकृतीनां द्रव्यं प्रतिसमयमसंख्येयगुणं बध्यमानसजातीयप्रकृतिषु संक्रामति। पूर्वस्वरूपं गृह्णातीत्यर्थ:। | ||
</span> = <span class="HindiText">बंध अयोग्य अप्रशस्त प्रकृतियों का द्रव्य, समय-समय प्रति असंख्यातगुणा क्रम लिये जिनका बंध पाया जाता है ऐसी स्वजाति प्रकृतियों में संक्रमण करता है, अपने स्वरूप को छोड़कर तद्रूप परिणमन करता है।</span></p> | </span> = <span class="HindiText">बंध अयोग्य अप्रशस्त प्रकृतियों का द्रव्य, समय-समय प्रति असंख्यातगुणा क्रम लिये जिनका बंध पाया जाता है ऐसी स्वजाति प्रकृतियों में संक्रमण करता है, अपने स्वरूप को छोड़कर तद्रूप परिणमन करता है।</span></p> | ||
<p><span class="SanskritText"> लब्धिसार/ जी.प्र./224/280/8 बंधवत्प्रकृतीनां गुणसंक्रमो नास्ति। | <p><span class="SanskritText"><span class="GRef"> लब्धिसार/ </span>जी.प्र./224/280/8 बंधवत्प्रकृतीनां गुणसंक्रमो नास्ति। | ||
</span> = <span class="HindiText">जिनका बंध पाया जाता है ऐसी प्रकृतियों का संक्रमण नहीं होता।</span></p> | </span> = <span class="HindiText">जिनका बंध पाया जाता है ऐसी प्रकृतियों का संक्रमण नहीं होता।</span></p> | ||
<p class="HindiText" id="7.3"><strong>3. गुण संक्रमण योग्य स्थान</strong></p> | <p class="HindiText" id="7.3"><strong>3. गुण संक्रमण योग्य स्थान</strong></p> | ||
<p><span class="SanskritText"> लब्धिसार/ जी.प्र./75-76/109/110/16 गुणसंक्रम: अपूर्वकरणप्रथमसमये नास्ति तथापि स्वयोग्यावसरे भविष्यत: (75) एवंविधं प्रतिसमयमसंख्येयगुणं संक्रमणं प्रथमकषायाणामनंतानुबंधिनां विसंयोजने वर्तते। मिथ्यात्वमिश्रप्रकृत्यो: क्षपणायां वर्तते। इतरासां प्रकृतीनामुभयश्रेण्यामुपशमकश्रेण्यां क्षपकश्रेण्यां च वर्तते।76।</span> = <span class="HindiText">गुण संक्रमण अपूर्वकरण के पहले समय में नहीं होता है। अपने योग्यकाल में होता है।75। असंख्यतगुणा क्रम लिये जो हो उसको गुण संक्रमण कहते हैं। सो अनंतानुबंधी कषायों को गुणसंक्रमण उनकी विसंयोजना में होता है। मिथ्यात्व और मिश्रप्रकृति का गुण संक्रमण उनकी क्षपणा में होता है, और अन्य प्रकृतियों का गुणसंक्रमण उपशम व क्षपक श्रेणी में होता है।</span></p> | <p><span class="SanskritText"><span class="GRef"> लब्धिसार/ </span>जी.प्र./75-76/109/110/16 गुणसंक्रम: अपूर्वकरणप्रथमसमये नास्ति तथापि स्वयोग्यावसरे भविष्यत: (75) एवंविधं प्रतिसमयमसंख्येयगुणं संक्रमणं प्रथमकषायाणामनंतानुबंधिनां विसंयोजने वर्तते। मिथ्यात्वमिश्रप्रकृत्यो: क्षपणायां वर्तते। इतरासां प्रकृतीनामुभयश्रेण्यामुपशमकश्रेण्यां क्षपकश्रेण्यां च वर्तते।76।</span> = <span class="HindiText">गुण संक्रमण अपूर्वकरण के पहले समय में नहीं होता है। अपने योग्यकाल में होता है।75। असंख्यतगुणा क्रम लिये जो हो उसको गुण संक्रमण कहते हैं। सो अनंतानुबंधी कषायों को गुणसंक्रमण उनकी विसंयोजना में होता है। मिथ्यात्व और मिश्रप्रकृति का गुण संक्रमण उनकी क्षपणा में होता है, और अन्य प्रकृतियों का गुणसंक्रमण उपशम व क्षपक श्रेणी में होता है।</span></p> | ||
<p class="HindiText" id="7.4"><strong>4. गुण संक्रमण काल का लक्षण</strong></p> | <p class="HindiText" id="7.4"><strong>4. गुण संक्रमण काल का लक्षण</strong></p> | ||
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<span class="GRef"> लब्धिसार/ </span>भाषा./128/169/9 मिश्र मोहनीय (या विवक्षित प्रकृति का) गुण संक्रमण कर यावत् सम्यक्त्व मोहनीयरूप (या यथा योग्य किसी अन्य विवक्षित प्रकृतिरूप) परिणमै तावत् गुणसंक्रमण काल कहिये।</p> | |||
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Revision as of 12:59, 14 October 2020
गुण संक्रमण निर्देश
1. गुण संक्रमण का लक्षण
नोट - [प्रति समय असंख्यात गुणश्रेणी क्रम से परमाणु प्रदेश अन्य प्रकृतिरूप परिणमावे सो गुण संक्रमण है। इसका भागाहार भी यद्यपि पल्य/असंख्यात है परंतु अध:प्रवृत्त से असंख्यात गुणहीन हीन है। इसलिए इसके द्वारा प्रतिसमय ग्रहण किया गया द्रव्य बहुत ही अधिक होता है। उपांत्य कांडक पर्यंत विशेष हानि क्रम से उठाता हुआ चलता है। (यहाँ तक तो उद्वेलना संक्रमण है), परंतु अंतिम कांडक की अंतिम फालि पर्यंत गुणश्रेणी रूप से उठाता है।
जिन प्रकृतियों का बंध हो रहा हो उनका गुण संक्रमण नहीं हो सकता; अबंधरूप प्रकृतियों का होता है और स्व जाति में ही होता है। अपूर्वकरण के प्रथम समय में गुण संक्रम नहीं होता। अनंतानुबंधी का गुण संक्रमण विसंयोजना कहलाता है।।
गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/413/576/9 प्रतिसमयसंख्येयगुणश्रेणिक्रमेण यत्प्रदेशसंक्रमणं तद् गुणसंक्रमणं नाम। = जहाँ पर प्रतिसमय असंख्यात गुणश्रेणीक्रम से परमाणु-प्रदेश अन्य प्रकृतिरूप परिणमे सो गुणसंक्रमण है।
2. बंधवाली प्रकृतियों का नहीं होता
लब्धिसार/ जी.प्र./75/109/17 अप्रशस्तानां बंधोज्झितप्रकृतीनां द्रव्यं प्रतिसमयमसंख्येयगुणं बध्यमानसजातीयप्रकृतिषु संक्रामति। पूर्वस्वरूपं गृह्णातीत्यर्थ:। = बंध अयोग्य अप्रशस्त प्रकृतियों का द्रव्य, समय-समय प्रति असंख्यातगुणा क्रम लिये जिनका बंध पाया जाता है ऐसी स्वजाति प्रकृतियों में संक्रमण करता है, अपने स्वरूप को छोड़कर तद्रूप परिणमन करता है।
लब्धिसार/ जी.प्र./224/280/8 बंधवत्प्रकृतीनां गुणसंक्रमो नास्ति। = जिनका बंध पाया जाता है ऐसी प्रकृतियों का संक्रमण नहीं होता।
3. गुण संक्रमण योग्य स्थान
लब्धिसार/ जी.प्र./75-76/109/110/16 गुणसंक्रम: अपूर्वकरणप्रथमसमये नास्ति तथापि स्वयोग्यावसरे भविष्यत: (75) एवंविधं प्रतिसमयमसंख्येयगुणं संक्रमणं प्रथमकषायाणामनंतानुबंधिनां विसंयोजने वर्तते। मिथ्यात्वमिश्रप्रकृत्यो: क्षपणायां वर्तते। इतरासां प्रकृतीनामुभयश्रेण्यामुपशमकश्रेण्यां क्षपकश्रेण्यां च वर्तते।76। = गुण संक्रमण अपूर्वकरण के पहले समय में नहीं होता है। अपने योग्यकाल में होता है।75। असंख्यतगुणा क्रम लिये जो हो उसको गुण संक्रमण कहते हैं। सो अनंतानुबंधी कषायों को गुणसंक्रमण उनकी विसंयोजना में होता है। मिथ्यात्व और मिश्रप्रकृति का गुण संक्रमण उनकी क्षपणा में होता है, और अन्य प्रकृतियों का गुणसंक्रमण उपशम व क्षपक श्रेणी में होता है।
4. गुण संक्रमण काल का लक्षण
लब्धिसार/ भाषा./128/169/9 मिश्र मोहनीय (या विवक्षित प्रकृति का) गुण संक्रमण कर यावत् सम्यक्त्व मोहनीयरूप (या यथा योग्य किसी अन्य विवक्षित प्रकृतिरूप) परिणमै तावत् गुणसंक्रमण काल कहिये।