नेमिनाथ: Difference between revisions
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—( महापुराण/70/ श्लो.नं.पूर्व भव नं.6 में पुष्करार्ध द्वीप के पश्चिम मेरु के पास गंधित देश, विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में सूर्यप्रभ नगर के राजा सूर्यप्रभ के पुत्र चिंतागति थे।26-28। पूर्वभव नं.5 में चतुर्थ स्वर्ग में सामानिक देव हुए।36-37। पूर्वभव नं.4 में सुगंधिला देश के सिंहपुर नगर के राजा अर्हदास के पुत्र अपराजित हुए।41। पूर्वभव नं.3 में अच्युत स्वर्ग में इंद्र हुए।50। पूर्वभव नं.2 में हस्तिनापुर के राजा श्रीचंद्र के पुत्र सुप्रतिष्ठ हुए।51। और पूर्वभव में जयंत नामक अनुत्तर विमान में अहमिंद्र हुए।59। ( हरिवंशपुराण/34/17-43 ); ( महापुराण/72/277 में युगपत् सर्व भव दिये हैं। वर्तमान भव में 22वें तीर्थंकर हुए–देखें [[ तीर्थंकर#5 | तीर्थंकर - 5]]। | —(<span class="GRef"> महापुराण/70/ </span>श्लो.नं.पूर्व भव नं.6 में पुष्करार्ध द्वीप के पश्चिम मेरु के पास गंधित देश, विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में सूर्यप्रभ नगर के राजा सूर्यप्रभ के पुत्र चिंतागति थे।26-28। पूर्वभव नं.5 में चतुर्थ स्वर्ग में सामानिक देव हुए।36-37। पूर्वभव नं.4 में सुगंधिला देश के सिंहपुर नगर के राजा अर्हदास के पुत्र अपराजित हुए।41। पूर्वभव नं.3 में अच्युत स्वर्ग में इंद्र हुए।50। पूर्वभव नं.2 में हस्तिनापुर के राजा श्रीचंद्र के पुत्र सुप्रतिष्ठ हुए।51। और पूर्वभव में जयंत नामक अनुत्तर विमान में अहमिंद्र हुए।59। (<span class="GRef"> हरिवंशपुराण/34/17-43 </span>); (<span class="GRef"> महापुराण/72/277 </span>में युगपत् सर्व भव दिये हैं। वर्तमान भव में 22वें तीर्थंकर हुए–देखें [[ तीर्थंकर#5 | तीर्थंकर - 5]]। | ||
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Revision as of 13:00, 14 October 2020
—( महापुराण/70/ श्लो.नं.पूर्व भव नं.6 में पुष्करार्ध द्वीप के पश्चिम मेरु के पास गंधित देश, विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में सूर्यप्रभ नगर के राजा सूर्यप्रभ के पुत्र चिंतागति थे।26-28। पूर्वभव नं.5 में चतुर्थ स्वर्ग में सामानिक देव हुए।36-37। पूर्वभव नं.4 में सुगंधिला देश के सिंहपुर नगर के राजा अर्हदास के पुत्र अपराजित हुए।41। पूर्वभव नं.3 में अच्युत स्वर्ग में इंद्र हुए।50। पूर्वभव नं.2 में हस्तिनापुर के राजा श्रीचंद्र के पुत्र सुप्रतिष्ठ हुए।51। और पूर्वभव में जयंत नामक अनुत्तर विमान में अहमिंद्र हुए।59। ( हरिवंशपुराण/34/17-43 ); ( महापुराण/72/277 में युगपत् सर्व भव दिये हैं। वर्तमान भव में 22वें तीर्थंकर हुए–देखें तीर्थंकर - 5।