भाषा: Difference between revisions
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<li><span class="HindiText" name="1" id="1"><strong> भाषा सामान्य के भेद</strong> </span><br /> | <li><span class="HindiText" name="1" id="1"><strong> भाषा सामान्य के भेद</strong> </span><br /> | ||
<span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/5/24/294/12 </span><span class="SanskritText">शब्दो द्विविधा भाषालक्षणो विपरीतश्चेति। भाषालक्षणो द्विविधः साक्षरोऽनक्षरश्चेति।</span> = <span class="HindiText">भाषा रूप शब्द और अभाषा शब्द इस प्रकार शब्दों के दो भेद हैं। भाषात्मक शब्द दो प्रकार के हैं–साक्षर और अनक्षर। (<span class="GRef"> राजवार्तिक/5/24/3/485/23 </span>); (<span class="GRef"> धवला 13/5,5,26/221/9 </span>); (<span class="GRef"> पंचास्तिकाय / तात्पर्यवृत्ति 79/135/5 </span>); (<span class="GRef"> द्रव्यसंग्रह </span>टी./16/52/2); (<span class="GRef"> गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/315/673/14 </span>)।</span></li> | |||
<li><span class="HindiText" name="2" id="2"><strong> अक्षरात्मक भाषा के भेद व लक्षण</strong> </span><br /> | <li><span class="HindiText" name="2" id="2"><strong> अक्षरात्मक भाषा के भेद व लक्षण</strong> </span><br /> | ||
<span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/5/24/295/1 </span><span class="SanskritText">अक्षीरकृतः शास्त्राभिव्यंजकः संस्कृतविपरीतभेदादार्यम्लेच्छव्यवहारहेतुः।</span> = <span class="HindiText">जिसमें शास्त्र रचे जाते हैं, जिसमें आर्य और म्लेच्छों का व्यवहार चलता है ऐसे संस्कृत शब्द और इससे विपरीत शब्द ये सब साक्षर शब्द हैं। (<span class="GRef"> राजवार्तिक/5/24/3/485/24 </span>) (<span class="GRef"> पंचास्तिकाय / तात्पर्यवृत्ति/79/135/6 </span>)।</span><br /> | |||
<span class="GRef"> धवला 13/5,5,26/221/11 </span><span class="PrakritText">अक्खरगया अणुवघादिंदियसण्णिपंचिंदियपज्जत्तभासा। सा दुविहा–भासा कुभासा चेदि। तत्थ कुभासाओ कीरपारसिय-सिंघल-वव्वरियादीण विणिग्गयाओ सत्तसयभेद-भिण्णाओ। भासाओ पुण अट्ठारस हवंति तिकुरुक-तिलाढ-तिमरहट्ठ-तिमालव-तिगउड-तिमागधभासभेदेण।</span> =<span class="HindiText"> उपघात से रहित इंद्रियों वाले संज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्त जीवों की भाषा अक्षरात्मक भाषा है। वह दो प्रकार की है–भाषा और कुभाषा। उनमें कुभाषाएँ काश्मीर देशवासी, पारसीक, सिंहल और वर्वरिक आदि जनों के (मुखसे) निकली हुई सात सौ भेदों में विभक्त हैं। परंतु भाषाएँ तीन कुरुक (कर्णाढ) भाषाओं, तीन लाढ भाषाओं, तीन मरहठा (गुर्जर) भाषाओं, तीन मालव भाषाओं, तीन गौड़ भाषाओं और तीन मागध भाषाओं के भेद से अठारह होती हैं। (<span class="GRef"> पंचास्तिकाय / तात्पर्यवृत्ति/ </span>मंगलचारण/पृ.4/5)।</span><br /> | |||
<span class="GRef"> द्रव्यसंग्रह टीका/16/52/3 </span><span class="SanskritText">तत्राप्यक्षरात्मकः संस्कृतप्राकृतापभ्रंशपैशाचिकादिभाषाभेदेनार्यम्लेच्छमनुष्यादिव्यवहारहेतुर्बहुधा।</span> = <span class="HindiText">अक्षरात्मक भाषा संस्कृत प्राकृत और उनके अपभ्रंश रूप पैशाची आदि भाषाओं के भेद से आर्य व म्लेच्छ मनुष्यों के व्यवहार के कारण अनेक प्रकार की है। </span></li> | |||
<li><span class="HindiText"><strong name="3" id="3"> अनक्षरात्मक भाषा के भेद व लक्षण</strong> </span><br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="3" id="3"> अनक्षरात्मक भाषा के भेद व लक्षण</strong> </span><br /> | ||
<span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/5/24/295/2 </span><span class="SanskritText">अनक्षरात्मको द्वींद्रियादीनामतिशयज्ञानस्वरूपप्रतिपादनहेतुः।</span> = <span class="HindiText">जिससे उनके सातिशयज्ञान का पता चलता है ऐसे द्वि इंद्रिय आदि जीवों के शब्द अनक्षरात्मक शब्द हैं। (<span class="GRef"> राजवार्तिक/5/24/3/485/25 </span>)। </span><br /> | |||
<span class="GRef"> धवला 13/5,5,26/221/10 </span><span class="PrakritText">तत्थ अणक्खरगया बीइंदियप्पहुडि जाव असण्णिपंचिंदियाणं मुहसमुब्भुदा बालमूअसण्णिपंचिंदियभासा च।</span> = <span class="HindiText">द्वींद्रिय से लेकर असंज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्त जीवों के मुख से उत्पन्न हुई भाषा तथा बालक और मूक संज्ञी पंचेंद्रिय जीवों की भाषा भी अनक्षरात्मक भाषा है।</span><br /> | |||
<span class="GRef"> पंचास्तिकाय / तात्पर्यवृत्ति/79/135/7 </span><span class="SanskritText">अनक्षरात्मको द्वींद्रियादिशब्दरूपो दिव्यध्वनिरूपश्च।</span> =<span class="HindiText"> अनक्षरात्मक शब्द द्वींद्रियादि के शब्द रूप और दिव्यध्वनि रूप होते हैं। </span></li> | |||
<li><span class="HindiText" name="4" id="4"><strong> दुर्भाषा के भेद</strong> </span><br /> | <li><span class="HindiText" name="4" id="4"><strong> दुर्भाषा के भेद</strong> </span><br /> | ||
<span class="GRef"> ज्ञानार्णव 18/9 </span>पर उद्धृत–<span class="SanskritText">कर्कशा परुषा कट्वी निष्ठुरा परकोपिनी। छेद्यांकुरा मध्यकृशातिमानिनी भयंकरी। भूतहिंसाकरी चेति दुर्भाषां दशधा त्यजेत्। ...।2। </span>=<span class="HindiText"> कर्कश, परुष, कटु, निष्ठुर, परकोपी, छेद्यांकुरा, मध्यकृशा, अतिमानिनी, भयंकरी, और जीवों की हिंसा करनेवाली से दश दुर्भाषा हैं, इनको छोड़ै। (<span class="GRef"> अनगारधर्मामृत/4/165-166 </span>)।</span></li> | |||
<li><span class="HindiText" name="5" id="5"><strong>आमंत्रणी आदि भाषा निर्देश</strong> </span><br /> | <li><span class="HindiText" name="5" id="5"><strong>आमंत्रणी आदि भाषा निर्देश</strong> </span><br /> | ||
<span class="GRef"> भगवती आराधना </span>वि./1195-1196/1193 <span class="PrakritGatha">आमंतणि आणवणी जायणि संपुच्छणी य पण्णवणी। पच्चक्खाणी भासा भासा इच्छाणुलोमा य।1195। संसयवयणी य तहा असच्चमोसा य अट्ठमी भासा। णवमी अणण्क्खरगदा असच्चमोसा हवदि णेया।1196। </span><span class="HindiText">टी.- आमंतणी यया वाचा परोऽभिमुखीक्रियते सा आमंत्रणी। हे देवदत्त इत्यादि अगृहीतसंकेतानभिमुखी करोती तेनन मृषा गृहीतागृहीतसंकेतयोः प्रतीतिनिमित्तमनिमित्तं चेति ह्यात्मकता। स्वाध्यायं कुरुत, विरमतासंयमात् इत्यादिका अनुशासनवाणी आनवणी। चोदितायाः क्रियायाः करणमकरणं वापेक्ष्यानैकांतेन सत्या न मृषैव वा। जायणी ज्ञानोपकरणं पिच्छादिकं वा भवद्भिर्दातव्यं इत्यादिका याचनी। दातुरपेक्षया पूर्ववदुभयरूपा। निरोधवेदनास्ति भवतांन वेति प्रश्नवाक् संपुच्छणीयद्यस्ति सत्या न चेदिततरा। वेदना भावाभावमपेक्ष्य प्रवृत्तेरुभयरूपता। पण्णवणी नाम धर्म्मकथा। सा बहून्निर्दिश्य प्रवृत्ता कैश्चिन्मनसि करणमितरैरकरणं चापेक्ष्य करणत्वाद्द्विरूपा। पच्चक्खवाणी नाम केनचिद्गुरुमननुज्ञाप्य इदं क्षीरादिकं इयंतं कालं मया प्रत्याख्यातं इत्युक्तं कार्यांतरमुद्दिश्य तत्कुर्वित्युदितं गुरुणा प्रत्याख्यानावधिकालो न पूर्ण इति नैकांततः सत्यता गुरुवचनात्प्रवृत्तो न दोषायेति न मृषैकांतः। इच्छानुलोमा य ज्वरितेन पृष्टं घृतशर्करामिश्रं शरीरं शोभनमिति। यदि परो ब्रूयात् शोभनमिति। माधुर्यादिप्रज्ञस्य गुणसद्भावं ज्वरवृद्धिनिमित्ततां चापेक्ष्य न शोभनमिति वचो न मृषैकांततो नापि सत्यमेवेति द्वयात्मकता।1195। संसयवयणी किमयं स्थाणुरुत पुरुषं इत्यादिका द्वयोरेकस्य सद्भावमितरस्याभावं चापेक्ष्य द्विरूपता। अणक्खरगदा अंगुलिस्फोटादिध्वनिः कृताकृतसंकेतपुरुषापेक्षया प्रतीतिनिमित्ततामनिमित्ततां च प्रतिपद्यते इत्युभयरूपा।</span> | |||
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<li class="HindiText"> जिस भाषा से दूसरों को अभिमुख किया जाता है, उसको <strong>आमंत्रणी</strong>- संबोधिनी भाषा कहते हैं। जैसे–‘हे देवदत्त यहाँ आओ’ देवदत्त शब्द का संकेत जिसने ग्रहण किया है उसकी अपेक्षा से यह वचन सत्य है जिसने संकेत ग्रहण नहीं किया उसकी अपेक्षा से असत्य भी है।</li> | <li class="HindiText"> जिस भाषा से दूसरों को अभिमुख किया जाता है, उसको <strong>आमंत्रणी</strong>- संबोधिनी भाषा कहते हैं। जैसे–‘हे देवदत्त यहाँ आओ’ देवदत्त शब्द का संकेत जिसने ग्रहण किया है उसकी अपेक्षा से यह वचन सत्य है जिसने संकेत ग्रहण नहीं किया उसकी अपेक्षा से असत्य भी है।</li> | ||
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<li class="HindiText"><strong> इच्छानुलोमा</strong>- ज्वरित मनुष्य ने पूछा घी और शक्कर मिला हुआ दूध अच्छा नहीं है? यदि दूसरा कहेगा कि वह अच्छा है, तो मधुरतादिक गुणों का उसमें सद्भाव देखकर वह शोभन है ऐसा कहना योग्य है। परंतु ज्वर वृद्धि को वह निमित्त होता है इस अपेक्षा से वह शोभन नहीं है, अतः सर्वथा असत्य और सत्य नहीं है इसलिए इस वचन में उभयात्मकता है।1195। </li> | <li class="HindiText"><strong> इच्छानुलोमा</strong>- ज्वरित मनुष्य ने पूछा घी और शक्कर मिला हुआ दूध अच्छा नहीं है? यदि दूसरा कहेगा कि वह अच्छा है, तो मधुरतादिक गुणों का उसमें सद्भाव देखकर वह शोभन है ऐसा कहना योग्य है। परंतु ज्वर वृद्धि को वह निमित्त होता है इस अपेक्षा से वह शोभन नहीं है, अतः सर्वथा असत्य और सत्य नहीं है इसलिए इस वचन में उभयात्मकता है।1195। </li> | ||
<li class="HindiText"><strong> संशय वचन</strong>–यह असत्यमृषा का आठवाँ प्रकार है। जैसे–यह ठूंठ है अथवा मनुष्य है इत्यादि। इसमें दोनों में से एक की सत्यता है और इतर का अभाव है, इस वास्ते उभयपना इसमें है।</li> | <li class="HindiText"><strong> संशय वचन</strong>–यह असत्यमृषा का आठवाँ प्रकार है। जैसे–यह ठूंठ है अथवा मनुष्य है इत्यादि। इसमें दोनों में से एक की सत्यता है और इतर का अभाव है, इस वास्ते उभयपना इसमें है।</li> | ||
<li class="HindiText"><strong> अनक्षर वचन</strong>–चुटकी बजाना, अंगुलि से इशारा करना, जिसको चुटकी बजाने का संकेत मालूम है उसकी अपेक्षा से उसको वह प्रतीति का निमित्त है, और जिसको संकेत मालूम नहीं है उसको अप्रतीतिका निमित्त होती है। इस तरह उभयात्मकता इसमें है।1196। (मू.आ./315-316); ( गोम्मटसार जीवकांड/225-226/485 )।</li> | <li class="HindiText"><strong> अनक्षर वचन</strong>–चुटकी बजाना, अंगुलि से इशारा करना, जिसको चुटकी बजाने का संकेत मालूम है उसकी अपेक्षा से उसको वह प्रतीति का निमित्त है, और जिसको संकेत मालूम नहीं है उसको अप्रतीतिका निमित्त होती है। इस तरह उभयात्मकता इसमें है।1196। (मू.आ./315-316); (<span class="GRef"> गोम्मटसार जीवकांड/225-226/485 </span>)।</li> | ||
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<li><span class="HindiText" name="6" id="6"><strong> पश्यंती आदि भाषा निर्देश</strong> <br /> | <li><span class="HindiText" name="6" id="6"><strong> पश्यंती आदि भाषा निर्देश</strong> <br /> | ||
<span class="GRef"> राजवार्तिक </span>हिं./1/20/166 शब्दाद्वैतवादी वाणी चार प्रकार की मानते हैं–पश्यंती, मध्यमा, वैखरी, सूक्ष्मा। | |||
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Revision as of 13:01, 14 October 2020
साधारण बोलचाल को भाषा कहते हैं। मनुष्यों की भाषा साक्षरी तथा पशु पक्षियों की निरक्षरी होती है। इसी प्रकार आमंत्रणी आक्षेपणी आदि के भेद से भी उसके अनेक भेद हैं।
- भाषा सामान्य के भेद
सर्वार्थसिद्धि/5/24/294/12 शब्दो द्विविधा भाषालक्षणो विपरीतश्चेति। भाषालक्षणो द्विविधः साक्षरोऽनक्षरश्चेति। = भाषा रूप शब्द और अभाषा शब्द इस प्रकार शब्दों के दो भेद हैं। भाषात्मक शब्द दो प्रकार के हैं–साक्षर और अनक्षर। ( राजवार्तिक/5/24/3/485/23 ); ( धवला 13/5,5,26/221/9 ); ( पंचास्तिकाय / तात्पर्यवृत्ति 79/135/5 ); ( द्रव्यसंग्रह टी./16/52/2); ( गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/315/673/14 )। - अक्षरात्मक भाषा के भेद व लक्षण
सर्वार्थसिद्धि/5/24/295/1 अक्षीरकृतः शास्त्राभिव्यंजकः संस्कृतविपरीतभेदादार्यम्लेच्छव्यवहारहेतुः। = जिसमें शास्त्र रचे जाते हैं, जिसमें आर्य और म्लेच्छों का व्यवहार चलता है ऐसे संस्कृत शब्द और इससे विपरीत शब्द ये सब साक्षर शब्द हैं। ( राजवार्तिक/5/24/3/485/24 ) ( पंचास्तिकाय / तात्पर्यवृत्ति/79/135/6 )।
धवला 13/5,5,26/221/11 अक्खरगया अणुवघादिंदियसण्णिपंचिंदियपज्जत्तभासा। सा दुविहा–भासा कुभासा चेदि। तत्थ कुभासाओ कीरपारसिय-सिंघल-वव्वरियादीण विणिग्गयाओ सत्तसयभेद-भिण्णाओ। भासाओ पुण अट्ठारस हवंति तिकुरुक-तिलाढ-तिमरहट्ठ-तिमालव-तिगउड-तिमागधभासभेदेण। = उपघात से रहित इंद्रियों वाले संज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्त जीवों की भाषा अक्षरात्मक भाषा है। वह दो प्रकार की है–भाषा और कुभाषा। उनमें कुभाषाएँ काश्मीर देशवासी, पारसीक, सिंहल और वर्वरिक आदि जनों के (मुखसे) निकली हुई सात सौ भेदों में विभक्त हैं। परंतु भाषाएँ तीन कुरुक (कर्णाढ) भाषाओं, तीन लाढ भाषाओं, तीन मरहठा (गुर्जर) भाषाओं, तीन मालव भाषाओं, तीन गौड़ भाषाओं और तीन मागध भाषाओं के भेद से अठारह होती हैं। ( पंचास्तिकाय / तात्पर्यवृत्ति/ मंगलचारण/पृ.4/5)।
द्रव्यसंग्रह टीका/16/52/3 तत्राप्यक्षरात्मकः संस्कृतप्राकृतापभ्रंशपैशाचिकादिभाषाभेदेनार्यम्लेच्छमनुष्यादिव्यवहारहेतुर्बहुधा। = अक्षरात्मक भाषा संस्कृत प्राकृत और उनके अपभ्रंश रूप पैशाची आदि भाषाओं के भेद से आर्य व म्लेच्छ मनुष्यों के व्यवहार के कारण अनेक प्रकार की है। - अनक्षरात्मक भाषा के भेद व लक्षण
सर्वार्थसिद्धि/5/24/295/2 अनक्षरात्मको द्वींद्रियादीनामतिशयज्ञानस्वरूपप्रतिपादनहेतुः। = जिससे उनके सातिशयज्ञान का पता चलता है ऐसे द्वि इंद्रिय आदि जीवों के शब्द अनक्षरात्मक शब्द हैं। ( राजवार्तिक/5/24/3/485/25 )।
धवला 13/5,5,26/221/10 तत्थ अणक्खरगया बीइंदियप्पहुडि जाव असण्णिपंचिंदियाणं मुहसमुब्भुदा बालमूअसण्णिपंचिंदियभासा च। = द्वींद्रिय से लेकर असंज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्त जीवों के मुख से उत्पन्न हुई भाषा तथा बालक और मूक संज्ञी पंचेंद्रिय जीवों की भाषा भी अनक्षरात्मक भाषा है।
पंचास्तिकाय / तात्पर्यवृत्ति/79/135/7 अनक्षरात्मको द्वींद्रियादिशब्दरूपो दिव्यध्वनिरूपश्च। = अनक्षरात्मक शब्द द्वींद्रियादि के शब्द रूप और दिव्यध्वनि रूप होते हैं। - दुर्भाषा के भेद
ज्ञानार्णव 18/9 पर उद्धृत–कर्कशा परुषा कट्वी निष्ठुरा परकोपिनी। छेद्यांकुरा मध्यकृशातिमानिनी भयंकरी। भूतहिंसाकरी चेति दुर्भाषां दशधा त्यजेत्। ...।2। = कर्कश, परुष, कटु, निष्ठुर, परकोपी, छेद्यांकुरा, मध्यकृशा, अतिमानिनी, भयंकरी, और जीवों की हिंसा करनेवाली से दश दुर्भाषा हैं, इनको छोड़ै। ( अनगारधर्मामृत/4/165-166 )। - आमंत्रणी आदि भाषा निर्देश
भगवती आराधना वि./1195-1196/1193 आमंतणि आणवणी जायणि संपुच्छणी य पण्णवणी। पच्चक्खाणी भासा भासा इच्छाणुलोमा य।1195। संसयवयणी य तहा असच्चमोसा य अट्ठमी भासा। णवमी अणण्क्खरगदा असच्चमोसा हवदि णेया।1196। टी.- आमंतणी यया वाचा परोऽभिमुखीक्रियते सा आमंत्रणी। हे देवदत्त इत्यादि अगृहीतसंकेतानभिमुखी करोती तेनन मृषा गृहीतागृहीतसंकेतयोः प्रतीतिनिमित्तमनिमित्तं चेति ह्यात्मकता। स्वाध्यायं कुरुत, विरमतासंयमात् इत्यादिका अनुशासनवाणी आनवणी। चोदितायाः क्रियायाः करणमकरणं वापेक्ष्यानैकांतेन सत्या न मृषैव वा। जायणी ज्ञानोपकरणं पिच्छादिकं वा भवद्भिर्दातव्यं इत्यादिका याचनी। दातुरपेक्षया पूर्ववदुभयरूपा। निरोधवेदनास्ति भवतांन वेति प्रश्नवाक् संपुच्छणीयद्यस्ति सत्या न चेदिततरा। वेदना भावाभावमपेक्ष्य प्रवृत्तेरुभयरूपता। पण्णवणी नाम धर्म्मकथा। सा बहून्निर्दिश्य प्रवृत्ता कैश्चिन्मनसि करणमितरैरकरणं चापेक्ष्य करणत्वाद्द्विरूपा। पच्चक्खवाणी नाम केनचिद्गुरुमननुज्ञाप्य इदं क्षीरादिकं इयंतं कालं मया प्रत्याख्यातं इत्युक्तं कार्यांतरमुद्दिश्य तत्कुर्वित्युदितं गुरुणा प्रत्याख्यानावधिकालो न पूर्ण इति नैकांततः सत्यता गुरुवचनात्प्रवृत्तो न दोषायेति न मृषैकांतः। इच्छानुलोमा य ज्वरितेन पृष्टं घृतशर्करामिश्रं शरीरं शोभनमिति। यदि परो ब्रूयात् शोभनमिति। माधुर्यादिप्रज्ञस्य गुणसद्भावं ज्वरवृद्धिनिमित्ततां चापेक्ष्य न शोभनमिति वचो न मृषैकांततो नापि सत्यमेवेति द्वयात्मकता।1195। संसयवयणी किमयं स्थाणुरुत पुरुषं इत्यादिका द्वयोरेकस्य सद्भावमितरस्याभावं चापेक्ष्य द्विरूपता। अणक्खरगदा अंगुलिस्फोटादिध्वनिः कृताकृतसंकेतपुरुषापेक्षया प्रतीतिनिमित्ततामनिमित्ततां च प्रतिपद्यते इत्युभयरूपा।- जिस भाषा से दूसरों को अभिमुख किया जाता है, उसको आमंत्रणी- संबोधिनी भाषा कहते हैं। जैसे–‘हे देवदत्त यहाँ आओ’ देवदत्त शब्द का संकेत जिसने ग्रहण किया है उसकी अपेक्षा से यह वचन सत्य है जिसने संकेत ग्रहण नहीं किया उसकी अपेक्षा से असत्य भी है।
- आज्ञापनी भाषा–जैसे स्वाध्याय करो, असंयम से विरक्त हो जाओ, ऐसी आज्ञा दी हुई क्रिया करने से सत्यता और न करने से असत्यता इस भाषा में है, इसलिए इसको एकांत रीति से सत्य भी नहीं कहते और असत्य भी नहीं कह सकते हैं।
- ज्ञान के उपकरण शास्त्र और संयम के उपकरण पिच्छादिक मेरे को दो ऐसा कहना यह याचनी भाषा है। दाता ने उपर्युक्त पदार्थ दिये तो यह भाषा सत्य है और न देने की अपेक्षा से असत्य है। अतः यह सर्वथा सत्य भी नहीं है।
- प्रश्न पूछना उसको प्रश्नभाषा कहते हैं। जैसे–तुमको निरोध में- कारागृह में वेदना दुख हैं या नहीं बगैरह। यदि वेदना होती हो तो सत्य समझना न हो तो असत्य समझना। वेदना का सद्भाव और असद्भाव की अपेक्षा इसको सत्यासत्य कहते हैं।
- धर्मोपदेश करना इसको प्रज्ञापनी भाषा कहते हैं। यह भाषा अनेक लोगों को उद्देश्य कर कही जाती है। कोई मनःपूर्वक सुनते हैं और कोई सुनते नहीं, इसकी अपेक्षा इसको असत्यमृषा कहते हैं।
- किसी ने गुरु का अपनी तरफ लक्ष न खींच करके मैंने इतने काल तक क्षीरादि पदार्थों का त्याग किया है ऐसा कहा। कार्यांतर को उद्देश्य करके वह करो ऐसा गुरु ने कहा। प्रत्याख्यान की मयार्दा का काल पूर्ण नहीं हुआ तब तक वह एकांत सत्य नहीं है। गुरु के वचनानुसार प्रवृत्त हुआ है इस वास्ते असत्य भी नहीं है। यह प्रत्याख्यानी भाषा है।
- इच्छानुलोमा- ज्वरित मनुष्य ने पूछा घी और शक्कर मिला हुआ दूध अच्छा नहीं है? यदि दूसरा कहेगा कि वह अच्छा है, तो मधुरतादिक गुणों का उसमें सद्भाव देखकर वह शोभन है ऐसा कहना योग्य है। परंतु ज्वर वृद्धि को वह निमित्त होता है इस अपेक्षा से वह शोभन नहीं है, अतः सर्वथा असत्य और सत्य नहीं है इसलिए इस वचन में उभयात्मकता है।1195।
- संशय वचन–यह असत्यमृषा का आठवाँ प्रकार है। जैसे–यह ठूंठ है अथवा मनुष्य है इत्यादि। इसमें दोनों में से एक की सत्यता है और इतर का अभाव है, इस वास्ते उभयपना इसमें है।
- अनक्षर वचन–चुटकी बजाना, अंगुलि से इशारा करना, जिसको चुटकी बजाने का संकेत मालूम है उसकी अपेक्षा से उसको वह प्रतीति का निमित्त है, और जिसको संकेत मालूम नहीं है उसको अप्रतीतिका निमित्त होती है। इस तरह उभयात्मकता इसमें है।1196। (मू.आ./315-316); ( गोम्मटसार जीवकांड/225-226/485 )।
- पश्यंती आदि भाषा निर्देश
राजवार्तिक हिं./1/20/166 शब्दाद्वैतवादी वाणी चार प्रकार की मानते हैं–पश्यंती, मध्यमा, वैखरी, सूक्ष्मा।- पश्यंती–जामें विभाग नाहीं। सर्व तरफ संकोचा है क्रम जाने ऐसी पश्यंती कहिए–लब्धि के अनुसार द्रव्य वचन को कारण जो उपयोग। (जैन के अनुसार इसे ही उपयोगात्मक भाव वचन कहते हैं।)
- मध्यमा–वक्ता की बुद्धि तो जाको उपादान कारण है, बहुरि सासोच्छ्वास को उलंघि अनुक्रमतै प्रवर्तती ताकू मध्यमा कहिए ... शब्द वर्गणा रूप द्रव्य वचन। (जैन के अनुसार इसे शब्द वर्गणा कहते हैं।)
- वैखरी–कंठादि के स्थाननिको भेदकरि पवन निसरा ऐसा जो वक्ता का सासोच्छ्वास है कारण जाकूं ऐसी अक्षर रूप प्रवर्तती ताकू वैखरी कहिए ... (अर्थात्) कर्णेंद्रिय ग्राह्य पर्याय स्वरूप द्रव्य वचन। (जैन के अनुसार इसे इसी नाम से स्वीकारा गया है। )
- सूक्ष्मा–अंतर प्रकाश रूप स्वरूप ज्योति रूप नित्य ऐसी सूक्ष्मा कहिए। ... क्षयोपशम से प्रगटी आत्मा की अक्षर को ग्रहण करने की तथा कहने की शक्ति रूप लब्धि। (जैन के अनुसार इसे लब्धि रूप भाव वचन स्वीकारा गया है।)
- अन्य संबंधित विषय
- अभाषात्मक शब्द–देखें शब्द ।
- अभ्याख्यान व कलह आदि रूप भाषा–देखें वचन ।
- कलह पैशुन्य आदि–देखें वह वह नाम ।
- असंबद्ध प्रलाप आदि–देखें वचन ।
- गुणवाची, क्रियावाची आदि शब्द–देखें नाम - 3।
- आगम व अध्यात्म भाषा में अंतर–देखें पद्धति ।
- चारों अनुयोगों की भाषा में अंतर–देखें अनुयोग ।
- ढोलादि के शब्द को भाषात्मक क्यों कहते हैं ?–देखें शब्द ।