वार्तिक: Difference between revisions
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<p> श्लोकवार्तिक/1/ प.9 पं.2/20/10 <span class="SanskritText">वार्तिकं हि सूत्राणामनुपत्ति चोदना तत्परिहारो विशेषाभिधानं प्रसिद्धम्। </span>= <span class="HindiText">सूत्र के नहीं अवतार होने देने की तथा सूत्रों के अर्थ को न सिद्ध होने देने की ऊहापोह या तर्कणा करना और उसका परिहार करना, तथा ग्रंथ के विशेष अर्थ को प्रतिपादित करना, ऐसे वाक्य को वार्तिक कहते हैं। </span></p> | <p><span class="GRef"> श्लोकवार्तिक/1/ </span>प.9 पं.2/20/10 <span class="SanskritText">वार्तिकं हि सूत्राणामनुपत्ति चोदना तत्परिहारो विशेषाभिधानं प्रसिद्धम्। </span>= <span class="HindiText">सूत्र के नहीं अवतार होने देने की तथा सूत्रों के अर्थ को न सिद्ध होने देने की ऊहापोह या तर्कणा करना और उसका परिहार करना, तथा ग्रंथ के विशेष अर्थ को प्रतिपादित करना, ऐसे वाक्य को वार्तिक कहते हैं। </span></p> | ||
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Revision as of 13:02, 14 October 2020
श्लोकवार्तिक/1/ प.9 पं.2/20/10 वार्तिकं हि सूत्राणामनुपत्ति चोदना तत्परिहारो विशेषाभिधानं प्रसिद्धम्। = सूत्र के नहीं अवतार होने देने की तथा सूत्रों के अर्थ को न सिद्ध होने देने की ऊहापोह या तर्कणा करना और उसका परिहार करना, तथा ग्रंथ के विशेष अर्थ को प्रतिपादित करना, ऐसे वाक्य को वार्तिक कहते हैं।