वीर: Difference between revisions
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<li> नि./सा./ता.वृ./1<span class="SanskritText"> वीरो विक्रांतः वीरयते शूरयते विक्रामति कर्मारातीन् विजयत इति वीरः–श्री वर्द्धमान-सन्मतिनाथमहतिमहावीराभिघानैः सनाथः परमेश्वरो माहदेवाधिदेवः पश्चिमतीर्थनाथ।</span> = <span class="HindiText">‘वीर’ अर्थात् विक्रांत (पराक्रमी); वीरता प्रगट करे, शौर्य प्रगट करे, विक्रम (पराक्रम) दर्शाये, कर्म शत्रुओं पर विजय प्राप्त करे, वह ‘वीर’ है। ऐसे वीर को जो कि श्री वर्द्धमान, श्री सन्मतिनाथ, श्री अतिवीर तथा श्री महावीर इन नामों से युक्त हैं, जो परमेश्वर हैं, महादेवाधिदेव हैं तथा अंतिम तीर्थनाथ हैं।–(विशेष देखें [[ महावीर ]])।</span></li> | <li> नि./सा./ता.वृ./1<span class="SanskritText"> वीरो विक्रांतः वीरयते शूरयते विक्रामति कर्मारातीन् विजयत इति वीरः–श्री वर्द्धमान-सन्मतिनाथमहतिमहावीराभिघानैः सनाथः परमेश्वरो माहदेवाधिदेवः पश्चिमतीर्थनाथ।</span> = <span class="HindiText">‘वीर’ अर्थात् विक्रांत (पराक्रमी); वीरता प्रगट करे, शौर्य प्रगट करे, विक्रम (पराक्रम) दर्शाये, कर्म शत्रुओं पर विजय प्राप्त करे, वह ‘वीर’ है। ऐसे वीर को जो कि श्री वर्द्धमान, श्री सन्मतिनाथ, श्री अतिवीर तथा श्री महावीर इन नामों से युक्त हैं, जो परमेश्वर हैं, महादेवाधिदेव हैं तथा अंतिम तीर्थनाथ हैं।–(विशेष देखें [[ महावीर ]])।</span></li> | ||
<li class="HindiText"> | <li class="HindiText"> <span class="GRef"> महापुराण/ </span>सर्ग/श्लो.- अपर नाम गुणसेन था। (47/375)। पूर्व भव नं. 6 में नागदत्त नाम का एक वणिक् पुत्र था। (8/231)। पूर्व भव नं. 5 में वानर (8/233)। पूर्व भव नं. 4 में उत्तरकुरु में मनुष्य। (9/90)। पूर्वभव नं. 3 में ऐशान स्वर्ग में देव। (9/187)। पूर्वभव नं.2 में रतिषेण राजा का पुत्र चित्रांग (10/151)। पूर्वभव नं. 1 में अच्युत स्वर्ग का इंद्र (10/172) अथवा जयंत स्वर्ग में अहमिंद्र (11/10, 160)। वर्तमान भव में वीर हुआ। (16/3)। [युगपत् सर्वभव देखें [[ ]]<span class="GRef"> महापुराण/47/374-375 </span>] भरत चक्रवर्ती का छोटा भाई था। (16/3)। भरत द्वारा राज्य माँगने पर दीक्षा धारण कर ली। (34/126)। भरत की मुक्ति के पश्चात् भगवान् ऋषभदेव के गुणसेन नामक गणधर हुए। (47/375)। अंत में मोक्ष सिधारे (47/399)। </li> | ||
<li class="HindiText"> विजयार्ध को उत्तर श्रेणी का एक नगर–देखें [[ | <li class="HindiText"> विजयार्ध को उत्तर श्रेणी का एक नगर–देखें [[ ]]विद्याधर। </li> | ||
<li class="HindiText"> सौधर्म स्वर्ग का 5वाँ पटल–देखें [[ स्वर्ग | <li class="HindiText"> सौधर्म स्वर्ग का 5वाँ पटल–देखें [[ ]] स्वर्ग/5/3। </li> | ||
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Revision as of 13:02, 14 October 2020
== सिद्धांतकोष से ==
- नि./सा./ता.वृ./1 वीरो विक्रांतः वीरयते शूरयते विक्रामति कर्मारातीन् विजयत इति वीरः–श्री वर्द्धमान-सन्मतिनाथमहतिमहावीराभिघानैः सनाथः परमेश्वरो माहदेवाधिदेवः पश्चिमतीर्थनाथ। = ‘वीर’ अर्थात् विक्रांत (पराक्रमी); वीरता प्रगट करे, शौर्य प्रगट करे, विक्रम (पराक्रम) दर्शाये, कर्म शत्रुओं पर विजय प्राप्त करे, वह ‘वीर’ है। ऐसे वीर को जो कि श्री वर्द्धमान, श्री सन्मतिनाथ, श्री अतिवीर तथा श्री महावीर इन नामों से युक्त हैं, जो परमेश्वर हैं, महादेवाधिदेव हैं तथा अंतिम तीर्थनाथ हैं।–(विशेष देखें महावीर )।
- महापुराण/ सर्ग/श्लो.- अपर नाम गुणसेन था। (47/375)। पूर्व भव नं. 6 में नागदत्त नाम का एक वणिक् पुत्र था। (8/231)। पूर्व भव नं. 5 में वानर (8/233)। पूर्व भव नं. 4 में उत्तरकुरु में मनुष्य। (9/90)। पूर्वभव नं. 3 में ऐशान स्वर्ग में देव। (9/187)। पूर्वभव नं.2 में रतिषेण राजा का पुत्र चित्रांग (10/151)। पूर्वभव नं. 1 में अच्युत स्वर्ग का इंद्र (10/172) अथवा जयंत स्वर्ग में अहमिंद्र (11/10, 160)। वर्तमान भव में वीर हुआ। (16/3)। [युगपत् सर्वभव देखें [[ ]] महापुराण/47/374-375 ] भरत चक्रवर्ती का छोटा भाई था। (16/3)। भरत द्वारा राज्य माँगने पर दीक्षा धारण कर ली। (34/126)। भरत की मुक्ति के पश्चात् भगवान् ऋषभदेव के गुणसेन नामक गणधर हुए। (47/375)। अंत में मोक्ष सिधारे (47/399)।
- विजयार्ध को उत्तर श्रेणी का एक नगर–देखें [[ ]]विद्याधर।
- सौधर्म स्वर्ग का 5वाँ पटल–देखें [[ ]] स्वर्ग/5/3।
पुराणकोष से
(1) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 25.124
(2) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी का चौबीसवां नगर । हरिवंशपुराण 22.88
(3) बलदेव और कृष्ण के रथ की रक्षा करने के लिए उनके पृष्ठरक्षक बनाये गये वसुदेव के पुत्रों में एक पुत्र । हरिवंशपुराण 50.115-116
(4) राजा स्तिमितसागर का पुत्र । ऊर्मिमान् और वसुमान् इनके बड़े भाई और पातालस्थिर इसका छोटा भाई था । हरिवंशपुराण 48.46
(5) सौधर्म युगल का पाँचवाँ पटल । हरिवंशपुराण 6.44
(6) एक नृप । यह सीता के स्वयंवर में सम्मिलित हुआ था । पद्मपुराण 28. 215
(7) जन्माभिषेक के पश्चात् राजा सिद्धार्थ और रानी प्रियकारिणी के पुत्र के लिए इंद्र द्वारा अभिहित दो नामों-वीर और वर्द्धमान में एक नाम । वर्द्धमान इनका अपर नाम था । यह नाम इन्हें कर्मों को जोतने से प्राप्त हुआ था । पांडवपुराण के अनुसार इन्हें यह नाम संगम नामक देव से प्राप्त हुआ था । यह देव सर्प के रूप में क्रीडा के समय महावीर के पास आया था । महावीर ने इसे पराजित कर अपने धैर्य और पराक्रम का परिचय दिया था । उस समय उस संगम देव ने इन्हें ‘‘वीर’’ कहकर इनकी स्तुति की थी । महापुराण 74. 252, 268, 276, हरिवंशपुराण 2.44.47, पांडवपुराण 1.115, वीरवर्द्धमान चरित्र 1. 34 देखें महावीर
(8) राजा वृषभदेव और रानी यशस्वती का पुत्र । आगे यही वृषभदेव का गुणसेन नामक गणधर हुआ । महापुराण 16.3, 47. 375 देखें गुणसेन