सुदर्शन: Difference between revisions
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<li>भगवान् वीर के तीर्थ में अंतकृत केवली हुए-देखें [[ अंतकृत ]]; </li> | <li>भगवान् वीर के तीर्थ में अंतकृत केवली हुए-देखें [[ अंतकृत ]]; </li> | ||
<li>पूर्वभव नं.2 में वीतशोका पुरी का राजा था। पूर्वभव में सहस्रार स्वर्ग में देव हुआ। वर्तमान भव में पंचम बलभद्र हुए हैं। ( महापुराण/61/66-69 ) विशेष-देखें [[ शलाका पुरुष#3 | शलाका पुरुष - 3]]; | <li>पूर्वभव नं.2 में वीतशोका पुरी का राजा था। पूर्वभव में सहस्रार स्वर्ग में देव हुआ। वर्तमान भव में पंचम बलभद्र हुए हैं। (<span class="GRef"> महापुराण/61/66-69 </span>) विशेष-देखें [[ शलाका पुरुष#3 | शलाका पुरुष - 3]]; | ||
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<li>चंपा नगरी के राजा वृषभदास का पुत्र था। महारानी अभयमती इनके ऊपर मोहित हो गयीं परंतु ये ब्रह्मचर्य में दृढ़ रहे। रानी ने क्रुद्ध होकर इनको सूली की सजा दिलायी, परंतु इनके शील के प्रभाव से एक व्यंतर ने सूली को सिंहासन बना दिया। तब इन्होंने विरक्त हो दीक्षा ग्रहण कर ली। इतने पर भी छल से रानी ने इनको पडगाह कर तीन दिन तक कुचेष्टा की। परंतु आप ब्रह्मचर्य में अडिग रहे। फिर पीछे वन में घोर तप किया। उस समय रानी ने वैर से व्यंतरी बनकर घोर उपसर्ग किया। ये उपसर्ग को जीत कर मोक्ष धाम पधारे। (सुदर्शन चरित्र)</li> | <li>चंपा नगरी के राजा वृषभदास का पुत्र था। महारानी अभयमती इनके ऊपर मोहित हो गयीं परंतु ये ब्रह्मचर्य में दृढ़ रहे। रानी ने क्रुद्ध होकर इनको सूली की सजा दिलायी, परंतु इनके शील के प्रभाव से एक व्यंतर ने सूली को सिंहासन बना दिया। तब इन्होंने विरक्त हो दीक्षा ग्रहण कर ली। इतने पर भी छल से रानी ने इनको पडगाह कर तीन दिन तक कुचेष्टा की। परंतु आप ब्रह्मचर्य में अडिग रहे। फिर पीछे वन में घोर तप किया। उस समय रानी ने वैर से व्यंतरी बनकर घोर उपसर्ग किया। ये उपसर्ग को जीत कर मोक्ष धाम पधारे। (सुदर्शन चरित्र)</li> |
Revision as of 13:02, 14 October 2020
== सिद्धांतकोष से ==
- विजयार्ध की उत्तर श्रेणी का एक नगर-देखें विद्याधर ;
- सुमेरु पर्वत का अपर नाम-देखें सुमेरु ;
- मानुषोत्तर पर्वतस्थ स्फटिक कूट का स्वामी भवनवासी सुपर्ण कुमार देव-देखें लोक - 5.10;
- रुचक पर्वतस्थ एक कूट-देखें लोक - 5.13;
- नवग्रैवेयक स्वर्ग का प्रथम पटल व इंद्रक-देखें स्वर्ग - 5.3;
- भगवान् वीर के तीर्थ में अंतकृत केवली हुए-देखें अंतकृत ;
- पूर्वभव नं.2 में वीतशोका पुरी का राजा था। पूर्वभव में सहस्रार स्वर्ग में देव हुआ। वर्तमान भव में पंचम बलभद्र हुए हैं। ( महापुराण/61/66-69 ) विशेष-देखें शलाका पुरुष - 3;
- चंपा नगरी के राजा वृषभदास का पुत्र था। महारानी अभयमती इनके ऊपर मोहित हो गयीं परंतु ये ब्रह्मचर्य में दृढ़ रहे। रानी ने क्रुद्ध होकर इनको सूली की सजा दिलायी, परंतु इनके शील के प्रभाव से एक व्यंतर ने सूली को सिंहासन बना दिया। तब इन्होंने विरक्त हो दीक्षा ग्रहण कर ली। इतने पर भी छल से रानी ने इनको पडगाह कर तीन दिन तक कुचेष्टा की। परंतु आप ब्रह्मचर्य में अडिग रहे। फिर पीछे वन में घोर तप किया। उस समय रानी ने वैर से व्यंतरी बनकर घोर उपसर्ग किया। ये उपसर्ग को जीत कर मोक्ष धाम पधारे। (सुदर्शन चरित्र)
पुराणकोष से
(1) जरासंध का एक पुत्र । हरिवंशपुराण 52. 32
(2) धृतराष्ट्र तथा गांधारी का सत्तावनवाँ पुत्र । पांडवपुराण 8. 200
(3) अलका नगरी का राजा । विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी के धरणीतिलक नगर के राजा अतिबल की पुत्री श्रीधरा का इसके साथ विवाह हुआ था । यशोधरा इसकी पुत्री थी । पत्नी और पुत्री दोनों आर्यिकाएँ हो गयी थीं । हरिवंशपुराण 27.77-82
(4) एक यक्ष । इसने शौर्यपुर के गंधमादन पर्वत पर प्रतिमा योग में लीन सुप्रतिष्ठ मुनि पर अनेक उपसर्ग किये थे । महापुराण 70. 119-124, हरिवंशपुराण 18. 29-31
(5) अवसर्पिणी काल के दु:षमा-सुषमा चौथे काल में उत्पन्न पाँचवाँ बलभद्र । ये तीर्थंकर धर्मनाथ के तीर्थ में हुए थे । जंबूद्वीप में खगपुर नगर के इक्ष्वाकुवंशी राजा सिंहसेन इनके पिता और रानी विजया माता थी । पुरुषसिंह नारायण इनका छोटा भाई था । इनके इस छोटे भाई द्वारा चलाये गये चक्ररत्न से मधुक्रीड प्रतिनारायण मारा गया था । आयु के अंत में अपने भाई के मरने से शोक संतप्त होकर इन्होंने धर्मनाथ की शरण में जाकर दीक्षा ले ली थी तथा परम पद पाया था । महापुराण 61. 56, 70-83, 20. 232-240, 248, वीरवर्द्धमान चरित्र 101.111
(6) एक कुरुवंशी राजा । ये अठारहवें तीर्थंकर अरनाथ के पिता थे । महापुराण 65.14-15, 19-21, पद्मपुराण 20.54, हरिवंशपुराण 45.21-22
(7) रुचकगिरि का उत्तरदिशा में विद्यमान आठ कूटों में आठवाँँ कूट । इस कूट पर धृति देवी का निवास है । हरिवंशपुराण 5.716-717
(8) अधोग्रैवेयक का एक विमान । महापुराण 49.9, हरिवंशपुराण 6.52
(1) मानुषोत्तर पर्वत की उत्तरदिशा में स्थित स्फटिक कूट पर रहने वाला देव । हरिवंशपुराण 5.605
(10) एक व्रत । विदेहक्षेत्र के प्रहसित और विकसित विद्वानों ने यह व्रत किया था । महापुराण 7.62-63, 77
(11) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी का चौवनवां नगर । महापुराण 19-85-87
(12) एक चक्ररत्न । महापुराण 37.169, 68.675-677, पद्मपुराण 75.50-60, हरिवंशपुराण 53. 49-50, 11.57
(13) एक उद्यान । यहाँ मंदिरस्थविर मुनि आये थे । महापुराण 70. 187, हरिवंशपुराण 52.89
(14) उज्जयिनी नगरी के बाहर स्थित एक सरोवर । हरिवंशपुराण 33. 101, 114
(15) चंद्रोदय पर्वत का निवासी एक यक्ष । जीवंधर ने पूर्वभव में इसे जब यह कुत्ते की पर्याय में था, पंच नमस्कार मंत्र दिया था । महापुराण 75.361-362
(16) छठे बलभद्र नंदिमित्र के पूर्वजन्म का नाम । पद्मपुराण 20. 232
(17) एक मुनि । वेदवती की पर्याय में सीता के जीव ने इन्हें अपनी बहिन आर्यिका सुदर्शना से बातचीत करते हुए देखकर अपवाद किया था । इसी अपवाद के फलस्वरूप सीता का भी अयोध्या में मिथ्या अपवाद हुआ । पद्मपुराण 107. 225-231
(18) जंबूद्वीप के मध्य में स्थित मेरु पर्वत । वीरवर्द्धमान चरित्र 2.2-3
(19) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 25. 181