सुमुख: Difference between revisions
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<span class="GRef"> हरिवंशपुराण/14/ </span>श्लोक-वत्सदेश की कौशांबी नगरी का राजा था (6) एक समय वनमाला नामक स्त्री पर मोहित होकर (32-33) दूती भेजकर उसे अपने घर बुलाकर भोग किया (94-107) आहारदान से भोगभूमि की आयु का बंध किया। वज्रपात गिरने से मरकर विद्याधर हुआ (15/12-18) यह आर्य विद्याधर का पूर्व का भव है।-देखें [[ आर्य ]]। | |||
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Revision as of 13:02, 14 October 2020
== सिद्धांतकोष से == हरिवंशपुराण/14/ श्लोक-वत्सदेश की कौशांबी नगरी का राजा था (6) एक समय वनमाला नामक स्त्री पर मोहित होकर (32-33) दूती भेजकर उसे अपने घर बुलाकर भोग किया (94-107) आहारदान से भोगभूमि की आयु का बंध किया। वज्रपात गिरने से मरकर विद्याधर हुआ (15/12-18) यह आर्य विद्याधर का पूर्व का भव है।-देखें आर्य ।
पुराणकोष से
(1) वसुदेव और उसकी रानी अवली का ज्येष्ठ पुत्र । दुर्मुख और महारथ इसके छोटे भाई थे । हरिवंशपुराण 48.64
(2) हयपुरी का राजा गांधार देश की पुष्कलावती नगरी के राजा इंद्रगिरि का पुत्र हिमगिरि अपनी बहिन गांधारी इसे ही देना चाहता था किंतु कृष्ण ने ऐसा नहीं होने दिया था । वे गांधारी को हरकर ले आये थे तथा उसे इन्होंने विवाह लिया था । हरिवंशपुराण 44.45-48
(3) कौशांबी नगरी का राजा । यह अपने यहाँ आये कलिंग देश के वीरदत्त वणिक् की पत्नी वनमाला पर मुग्ध हो गया था । इसने वीरदत्त को बाहर भेजकर वनमाला को अपनी पत्नी बनाया था । वीरदत्त ने वनमाला के इस कृत्य से दु:खी होकर जिनदीक्षा धारण कर ली तथा मरकर सौधर्म स्वर्ग में चित्रांगद देव हुआ । इसने और वनमाला दोनों ने धर्मसिंह मुनि को आहार दिया था । अंत में मरकर यह भोगपुर नगर के विद्याधर राजा प्रभंजन का सिंहकेतु नाम का पुत्र हुआ । महापुराण 70. 64-75, पद्मपुराण 21.2-3, हरिवंशपुराण 14.6, 101-102, पांडवपुराण 7.121-122
(4) राजा अकंपन का एक दूत । चक्रवर्ती भरतेश के पात अकंपन ने इसी दूत के द्वारा समाचार भिजवाये थे । महापुराण 45.35, 67, पांडवपुराण 3.139-140
(5) कृष्ण का पक्षधर एक राजा । यह कृष्ण के साथ कुरुक्षेत्र में गया था । महापुराण 71. 74
(6) राक्षसवंशी राजा श्रीग्रीव का पुत्र । इसने सुव्यक्त राजा को राज्य देकर दीक्षा ले ली थी । पद्मपुराण 5.392
(7) कौमुदी नगरी का राजा । इसकी रतवती रानी थी । पद्मपुराण 39.180-181
(8) एक बलवान् पुरुष । परस्त्री की इच्छा मात्र करने से इसकी मृत्यु हो गयी थी । पद्मपुराण 73.63
(9) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 25. 178