संयोगवाद: Difference between revisions
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<span class="PrakritText"> | <span class="PrakritText"> <span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड/892/1072 </span>संजोगमेवेति वदंति तण्णा णेवेक्कचक्केण रहो पयादि। अंधो य पंगू य वणं पविट्ठा ते संपजुत्ता णयइं पविट्ठा।892।</span> =<span class="HindiText">यथार्थज्ञानी संयोग ही को सार्थक मानते हैं। उनका कहना है कि जैसे एक पहिये से रथ नहीं चलता और वन में प्रविष्ट अंधा और पांगला एक दूसरे के संप्रयोग से दावाग्नि से अपनी रक्षा करके नगर में प्रवेश कर जाते हैं, उसी प्रकार वस्तुओं के संयोग से ही सर्वार्थसिद्धि होती है।892।</span> | ||
<p class="HindiText"> <strong>नोट</strong> - [उपरोक्त बात मिथ्या एकांतरूप संयोगवाद के संबंध में कही गयी है, पर बिलकुल यही बात इसी उदाहरण सहित सम्यग्दर्शन ज्ञान व चारित्र की मैत्री दर्शाने के लिए आगम में कही गयी-देखें [[ मोक्षमार्ग#1.2. | <p class="HindiText"> <strong>नोट</strong> - [उपरोक्त बात मिथ्या एकांतरूप संयोगवाद के संबंध में कही गयी है, पर बिलकुल यही बात इसी उदाहरण सहित सम्यग्दर्शन ज्ञान व चारित्र की मैत्री दर्शाने के लिए आगम में कही गयी-देखें [[ मोक्षमार्ग#1.2. | मोक्षमार्ग - 1.2.]]<span class="GRef"> राजवार्तिक </span>]।</p> | ||
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Revision as of 13:03, 14 October 2020
गोम्मटसार कर्मकांड/892/1072 संजोगमेवेति वदंति तण्णा णेवेक्कचक्केण रहो पयादि। अंधो य पंगू य वणं पविट्ठा ते संपजुत्ता णयइं पविट्ठा।892। =यथार्थज्ञानी संयोग ही को सार्थक मानते हैं। उनका कहना है कि जैसे एक पहिये से रथ नहीं चलता और वन में प्रविष्ट अंधा और पांगला एक दूसरे के संप्रयोग से दावाग्नि से अपनी रक्षा करके नगर में प्रवेश कर जाते हैं, उसी प्रकार वस्तुओं के संयोग से ही सर्वार्थसिद्धि होती है।892।
नोट - [उपरोक्त बात मिथ्या एकांतरूप संयोगवाद के संबंध में कही गयी है, पर बिलकुल यही बात इसी उदाहरण सहित सम्यग्दर्शन ज्ञान व चारित्र की मैत्री दर्शाने के लिए आगम में कही गयी-देखें मोक्षमार्ग - 1.2. राजवार्तिक ]।