किल्विष: Difference between revisions
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Revision as of 12:20, 14 March 2013
- किल्विष जाति के देव का लक्षण
स.सि./४/४/२३९/७ अन्तेवासिस्थानीया: किल्विषिका:। किल्विषं पापं येषामस्तीति किल्विषिका:।=जो सीमा के पास रहने वालों के समान हैं वे किल्विषक कहलाते हैं। किल्विष पाप को कहते हैं। इसकी जिनके बहुलता होती है वे किल्विषक कहलाते हैं। (रा.वा./४/४/१०/२१३/१४); (म.पु./२२/३०);
ति.प./३/६८–सुरा हवंति किब्बिसया।।६८।।=किल्विष देव चाण्डाल की उपमा को धारण करने वाले हैं। त.सा./२२३−२२४ का भावार्थ-बहुरि जैसे गायक गावनें आदि क्रियातैं आजीविका के करन हारे तैसें किल्विषक हैं।
- किल्विष देव सामान्य का निर्देश :— देखें - देव / II / २ ।
- देवों के परिवार में किल्विष देवों का निर्देशादि—देखें - भवनवासी आदि भेद।
- किल्विषी भावना का लक्षण
भ.आ./मू./१८१ णाणस्स केवलीणं धम्मस्साइरिय सव्वसाहूणं। माइय अवण्णवादी खिब्भिसियं भावणं कुणइ।१८१।=श्रुतज्ञान में, केवलियों में, धर्म में, तथा आचार्य, उपाध्याय, साधु में दोषारोपण करने वाला, तथा उनकी दिखावटी भक्ति करने वाला, मायावी तथा अवर्णवादी कहलाता है। ऐसे अशुभ विचारों से मुनि किल्विष जाति के देवों में उत्पन्न होता है, इन्द्र की सभा में नहीं जा सकता। (मू.आ./६६)
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