कल्पातीत: Difference between revisions
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<p> नव ग्रैवेयक, नव अनुदिश तथा पाँच अनुत्तर विमानवासी देव । ये अहमिंद्र होते हैं । संसार के सर्वाधिक सुखों को पाकर भी ये विरागी होते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 57.16, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 3.150-151 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> नव ग्रैवेयक, नव अनुदिश तथा पाँच अनुत्तर विमानवासी देव । ये अहमिंद्र होते हैं । संसार के सर्वाधिक सुखों को पाकर भी ये विरागी होते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 57.16, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 3.150-151 </span></p> | ||
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Revision as of 16:53, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
स्वर्ग विभाग–देखें स्वर्ग - 1.3।
पुराणकोष से
नव ग्रैवेयक, नव अनुदिश तथा पाँच अनुत्तर विमानवासी देव । ये अहमिंद्र होते हैं । संसार के सर्वाधिक सुखों को पाकर भी ये विरागी होते हैं । महापुराण 57.16, हरिवंशपुराण 3.150-151