कालिका: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> पुरूरवा भील की स्त्री । मुनिराज सागरसेन को मृग समझ कर मारने में उद्यत अपने पति को रोकते हुए इसने कहा था कि ये मृग नहीं वन-देवता घूम रहे हैं । इन्हें मत मारो । यह सुनकर पुरूरवा ने मुनि को नमन किया था और मधु, मांस तथा मद्य के त्याग का व्रत ग्रहण किया था । <span class="GRef"> महापुराण 74.14-22, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 2.18-25 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> पुरूरवा भील की स्त्री । मुनिराज सागरसेन को मृग समझ कर मारने में उद्यत अपने पति को रोकते हुए इसने कहा था कि ये मृग नहीं वन-देवता घूम रहे हैं । इन्हें मत मारो । यह सुनकर पुरूरवा ने मुनि को नमन किया था और मधु, मांस तथा मद्य के त्याग का व्रत ग्रहण किया था । <span class="GRef"> महापुराण 74.14-22, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 2.18-25 </span></p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> |
Revision as of 16:53, 14 November 2020
पुरूरवा भील की स्त्री । मुनिराज सागरसेन को मृग समझ कर मारने में उद्यत अपने पति को रोकते हुए इसने कहा था कि ये मृग नहीं वन-देवता घूम रहे हैं । इन्हें मत मारो । यह सुनकर पुरूरवा ने मुनि को नमन किया था और मधु, मांस तथा मद्य के त्याग का व्रत ग्रहण किया था । महापुराण 74.14-22, वीरवर्द्धमान चरित्र 2.18-25