कुंती: Difference between revisions
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<span class="GRef"> पांडवपुराण/ </span>सर्ग/श्लोक—राजा अंधकवृष्णि की पुत्री तथा वसुदेव की बहन थी (7/132−138) कन्यावस्था में पांडु से ‘कर्ण’ नामक पुत्र उत्पन्न किया (7/263) पांडु से विवाह के पश्चात् युधिष्ठिर, भीम व अर्जुन पुत्रों को जन्म दिया (8/34−143) अंत में दीक्षा धारणकर सोलहवें स्वर्ग में देवपद प्राप्त किया (25/15,141)। | <span class="GRef"> पांडवपुराण/ </span>सर्ग/श्लोक—राजा अंधकवृष्णि की पुत्री तथा वसुदेव की बहन थी (7/132−138) कन्यावस्था में पांडु से ‘कर्ण’ नामक पुत्र उत्पन्न किया (7/263) पांडु से विवाह के पश्चात् युधिष्ठिर, भीम व अर्जुन पुत्रों को जन्म दिया (8/34−143) अंत में दीक्षा धारणकर सोलहवें स्वर्ग में देवपद प्राप्त किया (25/15,141)। | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p> शौर्यपुर नगर के राजा अंधकवृष्टि/अंधकवृष्णि और उसकी रानी सुभद्रा की पुत्री । वसुदेव आदि इसके दस भाई तथा माद्री इसकी बहिन थी । राजा पांडु ने अदृश्य रूप से कन्या अवस्था में इसके साथ सहवास किया था । कन्या अवस्था में इसके कर्ण तथा विवाहित होने पर युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन पुत्र हुए थे । <span class="GRef"> महापुराण 70.95-97, 109-110, 115-116, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18.15, 45.37, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 7.131-136, 257-259, 265, 141, 142, 167, 170 </span>कौरवों ने इसे लाक्षागृह में जला देना चाहा था किंतु यह पुत्रों सहित सुरंग से लाक्षागृह के बाहर निकल गयी थी । वनवास के समय इसके पुत्रों ने इसे विदुर के यहाँ छोड़ दिया था । अंत में दीक्षा धारण कर और सन्यासपूर्वक प्राण त्यागकर यह सोलहवें स्वर्ग में सामानिक देव हुई । यहाँ से च्युत होकर यह मोक्ष प्राप्त करेगी । <span class="GRef"> महापुराण 72.264-266, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 12.165-166, 16.140, 25.141-144 </span>पूर्वभव में यह भद्रिलपुर नगर के धनदत्त सेठ की स्त्री नंदयशा की प्रियदर्शना नाम की पुत्री थी । इनके नौ भाई थे और एक बहिन थी । माता-पिता तथा भाई-बहिन के साथ इसने विधिपूर्वक सन्यास धारण किया । मरकर आनत स्वर्ग में उत्पन्न हुई और वहाँ से च्युत होकर इस पर्याय को प्राप्त हुई । <span class="GRef"> महापुराण 70.182-198, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18.112-124 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> शौर्यपुर नगर के राजा अंधकवृष्टि/अंधकवृष्णि और उसकी रानी सुभद्रा की पुत्री । वसुदेव आदि इसके दस भाई तथा माद्री इसकी बहिन थी । राजा पांडु ने अदृश्य रूप से कन्या अवस्था में इसके साथ सहवास किया था । कन्या अवस्था में इसके कर्ण तथा विवाहित होने पर युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन पुत्र हुए थे । <span class="GRef"> महापुराण 70.95-97, 109-110, 115-116, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18.15, 45.37, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 7.131-136, 257-259, 265, 141, 142, 167, 170 </span>कौरवों ने इसे लाक्षागृह में जला देना चाहा था किंतु यह पुत्रों सहित सुरंग से लाक्षागृह के बाहर निकल गयी थी । वनवास के समय इसके पुत्रों ने इसे विदुर के यहाँ छोड़ दिया था । अंत में दीक्षा धारण कर और सन्यासपूर्वक प्राण त्यागकर यह सोलहवें स्वर्ग में सामानिक देव हुई । यहाँ से च्युत होकर यह मोक्ष प्राप्त करेगी । <span class="GRef"> महापुराण 72.264-266, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 12.165-166, 16.140, 25.141-144 </span>पूर्वभव में यह भद्रिलपुर नगर के धनदत्त सेठ की स्त्री नंदयशा की प्रियदर्शना नाम की पुत्री थी । इनके नौ भाई थे और एक बहिन थी । माता-पिता तथा भाई-बहिन के साथ इसने विधिपूर्वक सन्यास धारण किया । मरकर आनत स्वर्ग में उत्पन्न हुई और वहाँ से च्युत होकर इस पर्याय को प्राप्त हुई । <span class="GRef"> महापुराण 70.182-198, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18.112-124 </span></p> | ||
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Revision as of 16:53, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
पांडवपुराण/ सर्ग/श्लोक—राजा अंधकवृष्णि की पुत्री तथा वसुदेव की बहन थी (7/132−138) कन्यावस्था में पांडु से ‘कर्ण’ नामक पुत्र उत्पन्न किया (7/263) पांडु से विवाह के पश्चात् युधिष्ठिर, भीम व अर्जुन पुत्रों को जन्म दिया (8/34−143) अंत में दीक्षा धारणकर सोलहवें स्वर्ग में देवपद प्राप्त किया (25/15,141)।
पुराणकोष से
शौर्यपुर नगर के राजा अंधकवृष्टि/अंधकवृष्णि और उसकी रानी सुभद्रा की पुत्री । वसुदेव आदि इसके दस भाई तथा माद्री इसकी बहिन थी । राजा पांडु ने अदृश्य रूप से कन्या अवस्था में इसके साथ सहवास किया था । कन्या अवस्था में इसके कर्ण तथा विवाहित होने पर युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन पुत्र हुए थे । महापुराण 70.95-97, 109-110, 115-116, हरिवंशपुराण 18.15, 45.37, पांडवपुराण 7.131-136, 257-259, 265, 141, 142, 167, 170 कौरवों ने इसे लाक्षागृह में जला देना चाहा था किंतु यह पुत्रों सहित सुरंग से लाक्षागृह के बाहर निकल गयी थी । वनवास के समय इसके पुत्रों ने इसे विदुर के यहाँ छोड़ दिया था । अंत में दीक्षा धारण कर और सन्यासपूर्वक प्राण त्यागकर यह सोलहवें स्वर्ग में सामानिक देव हुई । यहाँ से च्युत होकर यह मोक्ष प्राप्त करेगी । महापुराण 72.264-266, पांडवपुराण 12.165-166, 16.140, 25.141-144 पूर्वभव में यह भद्रिलपुर नगर के धनदत्त सेठ की स्त्री नंदयशा की प्रियदर्शना नाम की पुत्री थी । इनके नौ भाई थे और एक बहिन थी । माता-पिता तथा भाई-बहिन के साथ इसने विधिपूर्वक सन्यास धारण किया । मरकर आनत स्वर्ग में उत्पन्न हुई और वहाँ से च्युत होकर इस पर्याय को प्राप्त हुई । महापुराण 70.182-198, हरिवंशपुराण 18.112-124