गंगादेवी: Difference between revisions
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गंगाकुंड तथा गंगाकूट की स्वामिनी देवी–देखें [[ लोक#7 | लोक - 7]]। | गंगाकुंड तथा गंगाकूट की स्वामिनी देवी–देखें [[ लोक#7 | लोक - 7]]। | ||
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<p> गंगाकूटवासिनी गंगा नदी की अधिष्ठात्री देवी । इसने भरतेश के यहाँ आने पर एक हजार स्वर्ण कलशों से उनका अभिषेक किया था तथा उन्हें पादपीठ से युक्त दो रत्न-सिंहासन भेंट किये थे । सुलोचना ने भी पंच नमस्कार के प्रभाव से इस देवी को प्रसन्न करके जयकुमार आदि को नदी के प्रवाह में डूबने से बचाया था । <span class="GRef"> महापुराण 32.165-168, 37.10, 45. 144-151, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 11.50-52 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> गंगाकूटवासिनी गंगा नदी की अधिष्ठात्री देवी । इसने भरतेश के यहाँ आने पर एक हजार स्वर्ण कलशों से उनका अभिषेक किया था तथा उन्हें पादपीठ से युक्त दो रत्न-सिंहासन भेंट किये थे । सुलोचना ने भी पंच नमस्कार के प्रभाव से इस देवी को प्रसन्न करके जयकुमार आदि को नदी के प्रवाह में डूबने से बचाया था । <span class="GRef"> महापुराण 32.165-168, 37.10, 45. 144-151, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 11.50-52 </span></p> | ||
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Revision as of 16:53, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
गंगाकुंड तथा गंगाकूट की स्वामिनी देवी–देखें लोक - 7।
पुराणकोष से
गंगाकूटवासिनी गंगा नदी की अधिष्ठात्री देवी । इसने भरतेश के यहाँ आने पर एक हजार स्वर्ण कलशों से उनका अभिषेक किया था तथा उन्हें पादपीठ से युक्त दो रत्न-सिंहासन भेंट किये थे । सुलोचना ने भी पंच नमस्कार के प्रभाव से इस देवी को प्रसन्न करके जयकुमार आदि को नदी के प्रवाह में डूबने से बचाया था । महापुराण 32.165-168, 37.10, 45. 144-151, हरिवंशपुराण 11.50-52