गंधकुटी: Difference between revisions
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<p> समवसरण में तीर्थंकर के बैठने का स्थान । यह छ: सौ धनुष प्रमाण चौड़ी होती है । इसकी तृतीय कटनी पर कुबेर द्वारा निर्मित रत्नजटित सिंहासन होता है । यह अनेक शिखरों से युक्त होती है । इसमें तीन पीठ होते हैं । इसे पुष्पमालाओं, रत्नों की झालरों तथा अनेक ध्वजाओं से सुसज्जित किया जाता है । <span class="GRef"> महापुराण 23. 10-26, 33. 112, 150 </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 57.7, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 14.177-983 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> समवसरण में तीर्थंकर के बैठने का स्थान । यह छ: सौ धनुष प्रमाण चौड़ी होती है । इसकी तृतीय कटनी पर कुबेर द्वारा निर्मित रत्नजटित सिंहासन होता है । यह अनेक शिखरों से युक्त होती है । इसमें तीन पीठ होते हैं । इसे पुष्पमालाओं, रत्नों की झालरों तथा अनेक ध्वजाओं से सुसज्जित किया जाता है । <span class="GRef"> महापुराण 23. 10-26, 33. 112, 150 </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 57.7, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 14.177-983 </span></p> | ||
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Revision as of 16:53, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
समवशरण के मध्य भगवान् के बैठने का स्थान।–देखें समवशरण ।
पुराणकोष से
समवसरण में तीर्थंकर के बैठने का स्थान । यह छ: सौ धनुष प्रमाण चौड़ी होती है । इसकी तृतीय कटनी पर कुबेर द्वारा निर्मित रत्नजटित सिंहासन होता है । यह अनेक शिखरों से युक्त होती है । इसमें तीन पीठ होते हैं । इसे पुष्पमालाओं, रत्नों की झालरों तथा अनेक ध्वजाओं से सुसज्जित किया जाता है । महापुराण 23. 10-26, 33. 112, 150 हरिवंशपुराण 57.7, वीरवर्द्धमान चरित्र 14.177-983