चंदना: Difference between revisions
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(<span class="GRef"> महापुराण/75/ </span>श्लोक नं.)–पूर्वभव नं.3 में सोमिला ब्राह्मणी थी।73। पूर्वभव नं.2 में कनकलता नामकी राजपुत्री थी।83। पूर्वभव नं1 में पद्मलता नाम की राजपुत्री थी।98। वर्तमानभव में चंदना नाम की राजपुत्री हुई।170।=वर्तमान भव में राजा चेटक की पुत्री थी, एक विद्याधर काम से पीड़ित होकर उसे हर ले गया और अपनी स्त्री के भय से महा अटवी में उसे छोड़ दिया। किसी भील ने उसे वहाँ से उठाकर एक सेठ को दे दी। सेठ की स्त्री उससे शंकित होकर उसे कांजी मिश्रित कोदों का आहार देने लगी। एक समय भगवान् महावीर सौभाग्य से चर्या के लिए आये, तब चंदना ने उनको कोदों का ही आहार दे दिया, जिसके प्रताप से उसके सर्व बंधन टूट गये तथा वह सर्वांगसुंदर हो गयी। (<span class="GRef"> महापुराण/74/338-347 </span>)। तथा (<span class="GRef"> महापुराण/75/6-7/35-70 </span>) (<span class="GRef"> महापुराण/75/ </span>श्लो.नं.)–स्त्रीलिंग छेदकर अगले भव में अच्युत स्वर्ग में देव हुआ।177। वहाँ से चयकर मनुष्य भव धारण कर मोक्ष पाएगा।177। (<span class="GRef"> हरिवंशपुराण/2/70 </span>)। | (<span class="GRef"> महापुराण/75/ </span>श्लोक नं.)–पूर्वभव नं.3 में सोमिला ब्राह्मणी थी।73। पूर्वभव नं.2 में कनकलता नामकी राजपुत्री थी।83। पूर्वभव नं1 में पद्मलता नाम की राजपुत्री थी।98। वर्तमानभव में चंदना नाम की राजपुत्री हुई।170।=वर्तमान भव में राजा चेटक की पुत्री थी, एक विद्याधर काम से पीड़ित होकर उसे हर ले गया और अपनी स्त्री के भय से महा अटवी में उसे छोड़ दिया। किसी भील ने उसे वहाँ से उठाकर एक सेठ को दे दी। सेठ की स्त्री उससे शंकित होकर उसे कांजी मिश्रित कोदों का आहार देने लगी। एक समय भगवान् महावीर सौभाग्य से चर्या के लिए आये, तब चंदना ने उनको कोदों का ही आहार दे दिया, जिसके प्रताप से उसके सर्व बंधन टूट गये तथा वह सर्वांगसुंदर हो गयी। (<span class="GRef"> महापुराण/74/338-347 </span>)। तथा (<span class="GRef"> महापुराण/75/6-7/35-70 </span>) (<span class="GRef"> महापुराण/75/ </span>श्लो.नं.)–स्त्रीलिंग छेदकर अगले भव में अच्युत स्वर्ग में देव हुआ।177। वहाँ से चयकर मनुष्य भव धारण कर मोक्ष पाएगा।177। (<span class="GRef"> हरिवंशपुराण/2/70 </span>)। | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p> वैशाली के राजा चेटक और उसकी रानी सुभद्रा की सातवीं पुत्री । इसे वनक्रीडा में आसक्त देखकर सुवर्णाभनगर का राजा मनोवेग विद्याधर हरकर ले गया था किंतु अपनी स्त्री के भय से इसे महा अटवी में छोड गया । कालक नामक भील ने इसे भीलराज सिंह को दिया । कामासक्त सिंह ने अपनी माँ के समझाने पर इसे अपने मित्र मित्रवीर की दे दिया । मित्रवीर से कौशांबी के सेठ वृषभदत्त ने इसे ले लिया । सेठानी भद्रा ने सशंकित होकर इसे बहुत ताड़ना दी । मिट्टी के पात्र में कांजी मिश्रित कोदों का भात इसे भोजन में दिया केशराशि कटवाकर और बेड़ियां डालकर इसे एक कमरे में कैद भी कर दिया था । यह सब कुछ होने पर भी यह धर्म पर अडिग रही । दैव योग से महावीर आहार के लिए आये । इसने पड़गाह कर आहार में वही नीरस भोजन दिया किंतु शील के प्रभाव से वह नीरस भोजन सरस हो गया । इसके बंधन खुल गये । शरीर सर्वांग सुंदर हो गया । पंचाश्चर्य होने पर सभी ने इसकी सराहना की । अंत में महावीर से दीक्षा लेकर इसने तप किया । तय के प्रभाव से यह महावीर के संघ में गणिनी बनी । आयु के अंत में यह स्त्रिलिंग छेदकर अच्छत स्वर्ग मे देव हुई । <span class="GRef"> महापुराण 74.338-347, 75.3-7, 35-70, 170, 177, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2.70, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 1. 1-6, 13.84-68, </span>तीसरे पूर्वभव में यह सोमिला नाम की एक ब्राह्मणी थी, दूसरे पूर्वभव में कनकलता नाम की राजपुत्री और पहले पूर्वभव में पद्मलता नाम की राजपुत्री हुई थी । <span class="GRef"> महापुराण 75.73, 83, 98 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> वैशाली के राजा चेटक और उसकी रानी सुभद्रा की सातवीं पुत्री । इसे वनक्रीडा में आसक्त देखकर सुवर्णाभनगर का राजा मनोवेग विद्याधर हरकर ले गया था किंतु अपनी स्त्री के भय से इसे महा अटवी में छोड गया । कालक नामक भील ने इसे भीलराज सिंह को दिया । कामासक्त सिंह ने अपनी माँ के समझाने पर इसे अपने मित्र मित्रवीर की दे दिया । मित्रवीर से कौशांबी के सेठ वृषभदत्त ने इसे ले लिया । सेठानी भद्रा ने सशंकित होकर इसे बहुत ताड़ना दी । मिट्टी के पात्र में कांजी मिश्रित कोदों का भात इसे भोजन में दिया केशराशि कटवाकर और बेड़ियां डालकर इसे एक कमरे में कैद भी कर दिया था । यह सब कुछ होने पर भी यह धर्म पर अडिग रही । दैव योग से महावीर आहार के लिए आये । इसने पड़गाह कर आहार में वही नीरस भोजन दिया किंतु शील के प्रभाव से वह नीरस भोजन सरस हो गया । इसके बंधन खुल गये । शरीर सर्वांग सुंदर हो गया । पंचाश्चर्य होने पर सभी ने इसकी सराहना की । अंत में महावीर से दीक्षा लेकर इसने तप किया । तय के प्रभाव से यह महावीर के संघ में गणिनी बनी । आयु के अंत में यह स्त्रिलिंग छेदकर अच्छत स्वर्ग मे देव हुई । <span class="GRef"> महापुराण 74.338-347, 75.3-7, 35-70, 170, 177, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2.70, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 1. 1-6, 13.84-68, </span>तीसरे पूर्वभव में यह सोमिला नाम की एक ब्राह्मणी थी, दूसरे पूर्वभव में कनकलता नाम की राजपुत्री और पहले पूर्वभव में पद्मलता नाम की राजपुत्री हुई थी । <span class="GRef"> महापुराण 75.73, 83, 98 </span></p> | ||
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Revision as of 16:53, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
( महापुराण/75/ श्लोक नं.)–पूर्वभव नं.3 में सोमिला ब्राह्मणी थी।73। पूर्वभव नं.2 में कनकलता नामकी राजपुत्री थी।83। पूर्वभव नं1 में पद्मलता नाम की राजपुत्री थी।98। वर्तमानभव में चंदना नाम की राजपुत्री हुई।170।=वर्तमान भव में राजा चेटक की पुत्री थी, एक विद्याधर काम से पीड़ित होकर उसे हर ले गया और अपनी स्त्री के भय से महा अटवी में उसे छोड़ दिया। किसी भील ने उसे वहाँ से उठाकर एक सेठ को दे दी। सेठ की स्त्री उससे शंकित होकर उसे कांजी मिश्रित कोदों का आहार देने लगी। एक समय भगवान् महावीर सौभाग्य से चर्या के लिए आये, तब चंदना ने उनको कोदों का ही आहार दे दिया, जिसके प्रताप से उसके सर्व बंधन टूट गये तथा वह सर्वांगसुंदर हो गयी। ( महापुराण/74/338-347 )। तथा ( महापुराण/75/6-7/35-70 ) ( महापुराण/75/ श्लो.नं.)–स्त्रीलिंग छेदकर अगले भव में अच्युत स्वर्ग में देव हुआ।177। वहाँ से चयकर मनुष्य भव धारण कर मोक्ष पाएगा।177। ( हरिवंशपुराण/2/70 )।
पुराणकोष से
वैशाली के राजा चेटक और उसकी रानी सुभद्रा की सातवीं पुत्री । इसे वनक्रीडा में आसक्त देखकर सुवर्णाभनगर का राजा मनोवेग विद्याधर हरकर ले गया था किंतु अपनी स्त्री के भय से इसे महा अटवी में छोड गया । कालक नामक भील ने इसे भीलराज सिंह को दिया । कामासक्त सिंह ने अपनी माँ के समझाने पर इसे अपने मित्र मित्रवीर की दे दिया । मित्रवीर से कौशांबी के सेठ वृषभदत्त ने इसे ले लिया । सेठानी भद्रा ने सशंकित होकर इसे बहुत ताड़ना दी । मिट्टी के पात्र में कांजी मिश्रित कोदों का भात इसे भोजन में दिया केशराशि कटवाकर और बेड़ियां डालकर इसे एक कमरे में कैद भी कर दिया था । यह सब कुछ होने पर भी यह धर्म पर अडिग रही । दैव योग से महावीर आहार के लिए आये । इसने पड़गाह कर आहार में वही नीरस भोजन दिया किंतु शील के प्रभाव से वह नीरस भोजन सरस हो गया । इसके बंधन खुल गये । शरीर सर्वांग सुंदर हो गया । पंचाश्चर्य होने पर सभी ने इसकी सराहना की । अंत में महावीर से दीक्षा लेकर इसने तप किया । तय के प्रभाव से यह महावीर के संघ में गणिनी बनी । आयु के अंत में यह स्त्रिलिंग छेदकर अच्छत स्वर्ग मे देव हुई । महापुराण 74.338-347, 75.3-7, 35-70, 170, 177, हरिवंशपुराण 2.70, वीरवर्द्धमान चरित्र 1. 1-6, 13.84-68, तीसरे पूर्वभव में यह सोमिला नाम की एक ब्राह्मणी थी, दूसरे पूर्वभव में कनकलता नाम की राजपुत्री और पहले पूर्वभव में पद्मलता नाम की राजपुत्री हुई थी । महापुराण 75.73, 83, 98