चंद्रप्रभ: Difference between revisions
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आप जयसिंह सूरि के शिष्य थे। आपने प्रमेयरत्नकोष तथा दर्शनशुद्धि नामक न्याय विषयक ये दो ग्रंथ लिखे हैं। समय ई.1102–(न्यायावतार/प.4/सतीशचंद्र विद्याभूषण)। | आप जयसिंह सूरि के शिष्य थे। आपने प्रमेयरत्नकोष तथा दर्शनशुद्धि नामक न्याय विषयक ये दो ग्रंथ लिखे हैं। समय ई.1102–(न्यायावतार/प.4/सतीशचंद्र विद्याभूषण)। | ||
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<p> मथुरा नगरी का राजा । इसकी दो रानियाँ थी― धरा और कनकप्रभा । धरा से इसके आठ पुत्र हुए थे― श्रीमुख, सम्मुख, सुमुख, इंद्रमुख, प्रभामुख, उग्रमुख, अर्कमुख और अपरमुख । दूसरी रानी कनकप्रभा से अचल नाम का एक पुत्र हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 91.19-21 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> मथुरा नगरी का राजा । इसकी दो रानियाँ थी― धरा और कनकप्रभा । धरा से इसके आठ पुत्र हुए थे― श्रीमुख, सम्मुख, सुमुख, इंद्रमुख, प्रभामुख, उग्रमुख, अर्कमुख और अपरमुख । दूसरी रानी कनकप्रभा से अचल नाम का एक पुत्र हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 91.19-21 </span></p> | ||
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Revision as of 16:53, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
आप जयसिंह सूरि के शिष्य थे। आपने प्रमेयरत्नकोष तथा दर्शनशुद्धि नामक न्याय विषयक ये दो ग्रंथ लिखे हैं। समय ई.1102–(न्यायावतार/प.4/सतीशचंद्र विद्याभूषण)।
पुराणकोष से
मथुरा नगरी का राजा । इसकी दो रानियाँ थी― धरा और कनकप्रभा । धरा से इसके आठ पुत्र हुए थे― श्रीमुख, सम्मुख, सुमुख, इंद्रमुख, प्रभामुख, उग्रमुख, अर्कमुख और अपरमुख । दूसरी रानी कनकप्रभा से अचल नाम का एक पुत्र हुआ था । महापुराण 91.19-21