नागहस्ती: Difference between revisions
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<li class="HindiText"> दिगंबरांनाय में आपका स्थान आ.पुष्पदंत तथा भूतबलि के समकक्ष माना गया है। आ.गुणधर से आगत ‘पेज्जदोसपाहुड़’ के ज्ञान को आचार्य परंपरा द्वारा प्राप्त करके आपने यतिवृषभाचार्य को दिया था। समय–वि.नि.620 689 (ई.93-162) (विशेष देखें [[ कोश#1. | कोश - 1.]]परिशिष्ट/3.3)। </li> | <li class="HindiText"> दिगंबरांनाय में आपका स्थान आ.पुष्पदंत तथा भूतबलि के समकक्ष माना गया है। आ.गुणधर से आगत ‘पेज्जदोसपाहुड़’ के ज्ञान को आचार्य परंपरा द्वारा प्राप्त करके आपने यतिवृषभाचार्य को दिया था। समय–वि.नि.620 689 (ई.93-162) (विशेष देखें [[ कोश#1. | कोश - 1.]]परिशिष्ट/3.3)। </li> | ||
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<p> व्याघ्रहस्ती आचार्य के शिष्य तथा आचार्य जितदंड के गुरु । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 66.27,31 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> व्याघ्रहस्ती आचार्य के शिष्य तथा आचार्य जितदंड के गुरु । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 66.27,31 </span></p> | ||
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Revision as of 16:54, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
- दिगंबरांनाय में आपका स्थान आ.पुष्पदंत तथा भूतबलि के समकक्ष माना गया है। आ.गुणधर से आगत ‘पेज्जदोसपाहुड़’ के ज्ञान को आचार्य परंपरा द्वारा प्राप्त करके आपने यतिवृषभाचार्य को दिया था। समय–वि.नि.620 689 (ई.93-162) (विशेष देखें कोश - 1.परिशिष्ट/3.3)।
- पुन्नाटसंघ को गुर्वावली के अनुसार आप व्याघ्रहस्ति के शिष्य तथा जितदंड के गुरु थे। (देखें इतिहास - 7.8)
पुराणकोष से
व्याघ्रहस्ती आचार्य के शिष्य तथा आचार्य जितदंड के गुरु । हरिवंशपुराण 66.27,31