पक्ष: Difference between revisions
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<p id="1">(1) व्यवहार काल का एक भेद । पंद्रह अहोरात्र (दिनरात्र) के समय को पक्ष कहते हैं । प्रत्येक मास में दो पक्ष होते हैं― कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष । <span class="GRef"> महापुराण 3. 21, 13. 2, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 7.21 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1">(1) व्यवहार काल का एक भेद । पंद्रह अहोरात्र (दिनरात्र) के समय को पक्ष कहते हैं । प्रत्येक मास में दो पक्ष होते हैं― कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष । <span class="GRef"> महापुराण 3. 21, 13. 2, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 7.21 </span></p> | ||
<p id="2">(2) षट्कर्म जनित हिंसा-दोषों की शुद्धि का प्रथम उपाय । मैत्री, प्रमोद, कारुण्य और माध्यस्थ भाव से समस्त हिंसा का त्याग करना पक्ष कहलाता है । <span class="GRef"> महापुराण 39.142-146 </span></p> | <p id="2">(2) षट्कर्म जनित हिंसा-दोषों की शुद्धि का प्रथम उपाय । मैत्री, प्रमोद, कारुण्य और माध्यस्थ भाव से समस्त हिंसा का त्याग करना पक्ष कहलाता है । <span class="GRef"> महापुराण 39.142-146 </span></p> | ||
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Revision as of 16:55, 14 November 2020
(1) व्यवहार काल का एक भेद । पंद्रह अहोरात्र (दिनरात्र) के समय को पक्ष कहते हैं । प्रत्येक मास में दो पक्ष होते हैं― कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष । महापुराण 3. 21, 13. 2, हरिवंशपुराण 7.21
(2) षट्कर्म जनित हिंसा-दोषों की शुद्धि का प्रथम उपाय । मैत्री, प्रमोद, कारुण्य और माध्यस्थ भाव से समस्त हिंसा का त्याग करना पक्ष कहलाता है । महापुराण 39.142-146