पृथक्त्ववितर्कविचार: Difference between revisions
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<p> शुक्कध्यान का एक भेद । शुक्लध्यान के दो भेद हैं― शुक्ल और परमशुक्ल । इनमें प्रथम शुक्लध्यान के दो भेद है । उनमें यह प्रथम भेद है । ध्यानी श्रुतस्कंध से कोई एक विषय लेकर उसका ध्यान करने लगता है । तब एक शब्द से दूसरे शब्द का और एक योग से दूसरे योग का संक्रमण होता है । संक्रमणात्मक यह ध्यान सवितर्क और सविचार कहलाता है । इस ध्यान से ही उत्कृष्ट समाधि की उपलब्धि होती है । वह ध्यान उपशांत मोह और क्षीणमोह आदि गुणस्थानों में होता है । इसमें क्षायोपशमिक भाव विद्यमान रहते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 11.110, 21.167-183, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 56.54, 57-64 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> शुक्कध्यान का एक भेद । शुक्लध्यान के दो भेद हैं― शुक्ल और परमशुक्ल । इनमें प्रथम शुक्लध्यान के दो भेद है । उनमें यह प्रथम भेद है । ध्यानी श्रुतस्कंध से कोई एक विषय लेकर उसका ध्यान करने लगता है । तब एक शब्द से दूसरे शब्द का और एक योग से दूसरे योग का संक्रमण होता है । संक्रमणात्मक यह ध्यान सवितर्क और सविचार कहलाता है । इस ध्यान से ही उत्कृष्ट समाधि की उपलब्धि होती है । वह ध्यान उपशांत मोह और क्षीणमोह आदि गुणस्थानों में होता है । इसमें क्षायोपशमिक भाव विद्यमान रहते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 11.110, 21.167-183, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 56.54, 57-64 </span></p> | ||
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Revision as of 16:55, 14 November 2020
शुक्कध्यान का एक भेद । शुक्लध्यान के दो भेद हैं― शुक्ल और परमशुक्ल । इनमें प्रथम शुक्लध्यान के दो भेद है । उनमें यह प्रथम भेद है । ध्यानी श्रुतस्कंध से कोई एक विषय लेकर उसका ध्यान करने लगता है । तब एक शब्द से दूसरे शब्द का और एक योग से दूसरे योग का संक्रमण होता है । संक्रमणात्मक यह ध्यान सवितर्क और सविचार कहलाता है । इस ध्यान से ही उत्कृष्ट समाधि की उपलब्धि होती है । वह ध्यान उपशांत मोह और क्षीणमोह आदि गुणस्थानों में होता है । इसमें क्षायोपशमिक भाव विद्यमान रहते हैं । महापुराण 11.110, 21.167-183, हरिवंशपुराण 56.54, 57-64