प्रमदवन: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) राजप्रासाद का एक महत्त्वपूर्ण अंग । आदिपुराण में भी प्रमदवन का वर्णन आया है । <span class="GRef"> महापुराण 47.9 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) राजप्रासाद का एक महत्त्वपूर्ण अंग । आदिपुराण में भी प्रमदवन का वर्णन आया है । <span class="GRef"> महापुराण 47.9 </span></p> | ||
<p id="2">(2) लंका में स्थित विस्तीर्ण उद्यान । यह तडित्केश की क्रीडास्थली था । रावण ने सीता को यहाँ रखा था । इसके सात विभाग में प्रकीर्णक, जनानंद, सुखसेव्य, समुच्चय, चारणप्रिय, निबोध और प्रमद । यहाँ स्नान करने के योग्य वापियाँ निर्मित की गयीं थीं और सभागृह बनाये गये थे । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.297-300, 6.227, 46.141-142, 152-153 </span></p> | <p id="2">(2) लंका में स्थित विस्तीर्ण उद्यान । यह तडित्केश की क्रीडास्थली था । रावण ने सीता को यहाँ रखा था । इसके सात विभाग में प्रकीर्णक, जनानंद, सुखसेव्य, समुच्चय, चारणप्रिय, निबोध और प्रमद । यहाँ स्नान करने के योग्य वापियाँ निर्मित की गयीं थीं और सभागृह बनाये गये थे । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.297-300, 6.227, 46.141-142, 152-153 </span></p> | ||
<p id="3">(3) कौशिकपुरी का एक उद्यान । यहाँ के राजा वर्ण की पुत्री कमला की पांडवों से भेंट इसी उद्यान में हुई थी तथा उसके युधिष्ठिर की ओर आकृष्ट होने पर यह उसी से विवाही गयी थी । <span class="GRef"> पांडवपुराण 13. 7-34 </span></p> | <p id="3">(3) कौशिकपुरी का एक उद्यान । यहाँ के राजा वर्ण की पुत्री कमला की पांडवों से भेंट इसी उद्यान में हुई थी तथा उसके युधिष्ठिर की ओर आकृष्ट होने पर यह उसी से विवाही गयी थी । <span class="GRef"> पांडवपुराण 13. 7-34 </span></p> | ||
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Revision as of 16:55, 14 November 2020
(1) राजप्रासाद का एक महत्त्वपूर्ण अंग । आदिपुराण में भी प्रमदवन का वर्णन आया है । महापुराण 47.9
(2) लंका में स्थित विस्तीर्ण उद्यान । यह तडित्केश की क्रीडास्थली था । रावण ने सीता को यहाँ रखा था । इसके सात विभाग में प्रकीर्णक, जनानंद, सुखसेव्य, समुच्चय, चारणप्रिय, निबोध और प्रमद । यहाँ स्नान करने के योग्य वापियाँ निर्मित की गयीं थीं और सभागृह बनाये गये थे । पद्मपुराण 5.297-300, 6.227, 46.141-142, 152-153
(3) कौशिकपुरी का एक उद्यान । यहाँ के राजा वर्ण की पुत्री कमला की पांडवों से भेंट इसी उद्यान में हुई थी तथा उसके युधिष्ठिर की ओर आकृष्ट होने पर यह उसी से विवाही गयी थी । पांडवपुराण 13. 7-34