महाभीम: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) किन्नर आदि व्यंतर देवों का बारहवाँ इंद्र और प्रतींद्र । <span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 14.61 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) किन्नर आदि व्यंतर देवों का बारहवाँ इंद्र और प्रतींद्र । <span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 14.61 </span></p> | ||
<p id="2">(2) राक्षसों का स्वामी । इसने मेघवाहन से लंका में रहने तथा परचक्र द्वारा आक्रांत होने पर दंडक पर्वत के नीचे स्थित अलंकारोदय नगर में आश्रय लेने के लिए कहा था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 43.19-28 </span></p> | <p id="2">(2) राक्षसों का स्वामी । इसने मेघवाहन से लंका में रहने तथा परचक्र द्वारा आक्रांत होने पर दंडक पर्वत के नीचे स्थित अलंकारोदय नगर में आश्रय लेने के लिए कहा था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 43.19-28 </span></p> | ||
<p id="3">(3) नौ नारदों में दूसरा नारद । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.548 </span>देखें [[ नारद ]]</p> | <p id="3">(3) नौ नारदों में दूसरा नारद । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.548 </span>देखें [[ नारद ]]</p> | ||
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Revision as of 16:56, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
- राक्षस जातीय एक व्यंतर–देखें राक्षस ।
- द्वि. नारद–देखें शलाका पुरुष - 6।
पुराणकोष से
(1) किन्नर आदि व्यंतर देवों का बारहवाँ इंद्र और प्रतींद्र । वीरवर्द्धमान चरित्र 14.61
(2) राक्षसों का स्वामी । इसने मेघवाहन से लंका में रहने तथा परचक्र द्वारा आक्रांत होने पर दंडक पर्वत के नीचे स्थित अलंकारोदय नगर में आश्रय लेने के लिए कहा था । पद्मपुराण 43.19-28
(3) नौ नारदों में दूसरा नारद । हरिवंशपुराण 60.548 देखें नारद