बोधपाहुड़ गाथा 31: Difference between revisions
From जैनकोष
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<div class="HindiGatha"><div>गुणथान मार्गणथान जीवस्थान अर पर्याप्ति से ।</div> | <div class="HindiGatha"><div>गुणथान मार्गणथान जीवस्थान अर पर्याप्ति से ।</div> | ||
<div>और प्राणों से करो अरहंत की स्थापना ॥३१॥</div> | <div>और प्राणों से करो अरहंत की स्थापना ॥३१॥</div> | ||
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<div class="HindiBhavarth"><div>गुणस्थान, मार्गणास्थान, पर्याप्ति, प्राण और जीवस्थान इन पाँच प्रकार से अरहंत पुरुष की स्थापना प्राप्त करना अथवा उसको प्रणाम करना चाहिए ।</div> | |||
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<div class="HindiBhavarth"><div>स्थापनानिक्षेप में काष्ठपाषाणादिक में संकल्प करना कहा है सो यहाँ प्रधान नहीं है । यहाँ निश्चय की प्रधानता से कथन है । यहाँ गुणस्थानादिक से अरहंत का स्थापन कहा है ॥३१॥</div> | <div class="HindiBhavarth"><div>स्थापनानिक्षेप में काष्ठपाषाणादिक में संकल्प करना कहा है सो यहाँ प्रधान नहीं है । यहाँ निश्चय की प्रधानता से कथन है । यहाँ गुणस्थानादिक से अरहंत का स्थापन कहा है ॥३१॥</div> |
Revision as of 16:12, 2 November 2013
गुणठाणमग्गणेहिं य पज्जत्तीपाणजीवठाणेहिं ।
ठावण पंचविहेहिं पणयव्वा अरहपुरिसस्स ॥३१॥
गुणस्थानमार्गणाभि: च पर्याप्तिप्राणजीवस्थानै: ।
स्थापना पञ्चविधै: प्रणेतव्या अर्हत्पुरुषस्य ॥३१॥
आगे स्थापना द्वारा अरहंत का वर्णन करते हैं -
हरिगीत
गुणथान मार्गणथान जीवस्थान अर पर्याप्ति से ।
और प्राणों से करो अरहंत की स्थापना ॥३१॥
गुणस्थान, मार्गणास्थान, पर्याप्ति, प्राण और जीवस्थान इन पाँच प्रकार से अरहंत पुरुष की स्थापना प्राप्त करना अथवा उसको प्रणाम करना चाहिए ।
स्थापनानिक्षेप में काष्ठपाषाणादिक में संकल्प करना कहा है सो यहाँ प्रधान नहीं है । यहाँ निश्चय की प्रधानता से कथन है । यहाँ गुणस्थानादिक से अरहंत का स्थापन कहा है ॥३१॥