यशस्वान्: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) मानुषोत्तर पर्वत की पूर्व दिशा के वैडूर्य कूट का निवासी एक देव । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.602 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) मानुषोत्तर पर्वत की पूर्व दिशा के वैडूर्य कूट का निवासी एक देव । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.602 </span></p> | ||
<p id="2">(2) चक्षुष्मान के पुत्र । ये वर्तमानकालीन नौवें मनु थे । इनकी आयु कुमुद प्रमाण वर्ष और शरीर की ऊँचाई छ: सो पचास धनुष थी । इनके समय में प्रजा अपनी संतान का मुख देखने के साथ-साथ उन्हें आशीर्वाद देकर तथा क्षणभर ठहर कर मृत्यु को प्राप्त होती थी । आशीर्वाद देने की क्रिया उनके उपदेश से आरंभ हुई थी । इन्होंने प्रजा को पुत्र का नाम रखना भी सिखाया था । प्रजा ने प्रसन्न होकर इनका यशोगान किया था । <span class="GRef"> महापुराण 3. 125-128, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 3. 86, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 7.160, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 2.106 </span></p> | <p id="2">(2) चक्षुष्मान के पुत्र । ये वर्तमानकालीन नौवें मनु थे । इनकी आयु कुमुद प्रमाण वर्ष और शरीर की ऊँचाई छ: सो पचास धनुष थी । इनके समय में प्रजा अपनी संतान का मुख देखने के साथ-साथ उन्हें आशीर्वाद देकर तथा क्षणभर ठहर कर मृत्यु को प्राप्त होती थी । आशीर्वाद देने की क्रिया उनके उपदेश से आरंभ हुई थी । इन्होंने प्रजा को पुत्र का नाम रखना भी सिखाया था । प्रजा ने प्रसन्न होकर इनका यशोगान किया था । <span class="GRef"> महापुराण 3. 125-128, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 3. 86, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 7.160, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 2.106 </span></p> | ||
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Revision as of 16:56, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
- वर्तमान कालीन नवमें कुलकर हुए हैं। (विशेष देखें शलाका पुरुष - 9);
- किंपुरुष नामा जाति व्यंतर देव का एक भेद−देखें किंपुरुष ।
पुराणकोष से
(1) मानुषोत्तर पर्वत की पूर्व दिशा के वैडूर्य कूट का निवासी एक देव । हरिवंशपुराण 5.602
(2) चक्षुष्मान के पुत्र । ये वर्तमानकालीन नौवें मनु थे । इनकी आयु कुमुद प्रमाण वर्ष और शरीर की ऊँचाई छ: सो पचास धनुष थी । इनके समय में प्रजा अपनी संतान का मुख देखने के साथ-साथ उन्हें आशीर्वाद देकर तथा क्षणभर ठहर कर मृत्यु को प्राप्त होती थी । आशीर्वाद देने की क्रिया उनके उपदेश से आरंभ हुई थी । इन्होंने प्रजा को पुत्र का नाम रखना भी सिखाया था । प्रजा ने प्रसन्न होकर इनका यशोगान किया था । महापुराण 3. 125-128, पद्मपुराण 3. 86, हरिवंशपुराण 7.160, पांडवपुराण 2.106