युधिष्ठिर: Difference between revisions
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<span class="GRef"> पांडवपुराण/ </span>सर्ग न./श्लोक नं. पूर्व के दूसरे भव में सोमदत्त नाम का ब्राह्मण पुत्र था (21/81) पूर्वभव में आरण स्वर्ग में देव था। (23/112)। वर्तमान भव में पांडु राजा का कुंती रानी से पुत्र था (8/143; 24/74) अपने ताऊ भीष्म व गुरु द्रोणाचार्य से क्रम से शिक्षा व धनुर्विद्या प्राप्त की। (8/208-214)। प्रवास काल में अनेकों कन्याओं से विवाह किया। (13/33; 13/160)। दुर्योधन के साथ जुए में हारने पर 12 वर्ष का वनवास मिला। (16/104-125)। वन में मुनियों के दर्शन होने पर स्व निंदा की। (17/4)। अंत में अपने पूर्व भव सुनकर दीक्षा ग्रहण की। (25/12)। तथा घोर तप किया। (25/17-51)। दुर्योधन के भानजे कुर्यधर कृत उपसर्ग को जीत मोक्ष प्राप्त किया। (25/52-133)। (विशेष देखें [[ पांडव ]])। | <span class="GRef"> पांडवपुराण/ </span>सर्ग न./श्लोक नं. पूर्व के दूसरे भव में सोमदत्त नाम का ब्राह्मण पुत्र था (21/81) पूर्वभव में आरण स्वर्ग में देव था। (23/112)। वर्तमान भव में पांडु राजा का कुंती रानी से पुत्र था (8/143; 24/74) अपने ताऊ भीष्म व गुरु द्रोणाचार्य से क्रम से शिक्षा व धनुर्विद्या प्राप्त की। (8/208-214)। प्रवास काल में अनेकों कन्याओं से विवाह किया। (13/33; 13/160)। दुर्योधन के साथ जुए में हारने पर 12 वर्ष का वनवास मिला। (16/104-125)। वन में मुनियों के दर्शन होने पर स्व निंदा की। (17/4)। अंत में अपने पूर्व भव सुनकर दीक्षा ग्रहण की। (25/12)। तथा घोर तप किया। (25/17-51)। दुर्योधन के भानजे कुर्यधर कृत उपसर्ग को जीत मोक्ष प्राप्त किया। (25/52-133)। (विशेष देखें [[ पांडव ]])। | ||
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<p> हस्तिनापुर के कुरुवंशी राजा पांडु और रानी कुंती का ज्येष्ठ पुत्र । यह भीम और अर्जुन का बड़ा भाई था । ये तीनों भाई पांडु और कुश्ती के विवाह के पश्चात् हुए थे । विवाह के पूर्व कर्ण हुआ था । इसकी दूसरी माँ माद्री से उत्पन्न नकुल और सहदेव दो छोटे भाई और थे । कर्ण को छोड़कर ये पाँचों भाई पांडव नाम से विख्यात हुए । इसका अपर नाम धर्मपुत्र था । इसके गर्भावस्था में आने से पूर्व बंधु वर्ग में प्रवृत्त था । इससे इसे यह नाम दिया गया था । इसी प्रकार इसके गर्भ में आते ही बंधुगण धर्माचरण में प्रवृत्त हुए थे अत: इसे ‘‘धर्मपुत्र’’ नाम से संबोधित किया गया था । इसके अन्नप्राशन, चोल, उपनयन आदि संस्कार कराये गये थे । ताऊ भीष्म तथा गुरु द्रोणाचार्य से इसने और इसके इतर भाइयों ने शिक्षा एवं धनुर्विद्या प्राप्त की थी । प्रवास काल में इसने अनेकों कन्याओं के साथ विवाह किया था इंद्रप्रस्थ नगर इसी ने बसाया था । यह दुर्योधन के साथ द्यूतक्रीडा में पराजित हो गया था । उसमें अपना सब कुछ हार जाने पर बारह वर्ष तक गुप्त रूप से इसे भाइयों सहित वन मे रहना स्वीकार करना पड़ा था । वन में मुनि संघ के दर्शन कर इसने आत्मनिंदा की थी । शल्य को सत्रहवें दिन मारने की प्रतिज्ञा करते हुए प्रतिज्ञा पूर्ण होने पर अग्नि में आत्मदाह करने का भी इसने निश्चय किया था । इस प्रतिज्ञा के अनुसार यह शल्य के पास गया और बाणों से इसने शल्य का सिर काट डाला था । अंत में तीर्थंकर नेमिनाथ से अपने पूर्वभव सुनकर यह भाइयों के साथ संयमी हो गया था । नेमिनाथ के साथ विहार करता रहा । इसके शत्रुंजय पर्वत पर आतापन योग में स्थिर होने पर दुर्योधन के भानजे कुर्यधर ने इसके और इसके भाइयों को लोहे के तप्त मुकुट आदि आभरण पहनाकर विविध रूप से उपसर्ग किये थे । इसने उन उपसर्गों को जीत कर और कर्मों को ध्यानाग्नि में जलाकर मोक्ष पाया । दूसरे पूर्वभव में यह सोमदत्त था और प्रथम पूर्वभव में आरण स्वर्ग में देव हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 70.115, 72.266-270, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 45. 2, 37-38, 64.137, 141, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 7.187-188, 8.142, 147, 208-212, 13. 34, 163, 16 2-4, 10, 105-125, 17. 2-4, 19. 200-201, 20. 24.75, 24.75, 25.124-133 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> हस्तिनापुर के कुरुवंशी राजा पांडु और रानी कुंती का ज्येष्ठ पुत्र । यह भीम और अर्जुन का बड़ा भाई था । ये तीनों भाई पांडु और कुश्ती के विवाह के पश्चात् हुए थे । विवाह के पूर्व कर्ण हुआ था । इसकी दूसरी माँ माद्री से उत्पन्न नकुल और सहदेव दो छोटे भाई और थे । कर्ण को छोड़कर ये पाँचों भाई पांडव नाम से विख्यात हुए । इसका अपर नाम धर्मपुत्र था । इसके गर्भावस्था में आने से पूर्व बंधु वर्ग में प्रवृत्त था । इससे इसे यह नाम दिया गया था । इसी प्रकार इसके गर्भ में आते ही बंधुगण धर्माचरण में प्रवृत्त हुए थे अत: इसे ‘‘धर्मपुत्र’’ नाम से संबोधित किया गया था । इसके अन्नप्राशन, चोल, उपनयन आदि संस्कार कराये गये थे । ताऊ भीष्म तथा गुरु द्रोणाचार्य से इसने और इसके इतर भाइयों ने शिक्षा एवं धनुर्विद्या प्राप्त की थी । प्रवास काल में इसने अनेकों कन्याओं के साथ विवाह किया था इंद्रप्रस्थ नगर इसी ने बसाया था । यह दुर्योधन के साथ द्यूतक्रीडा में पराजित हो गया था । उसमें अपना सब कुछ हार जाने पर बारह वर्ष तक गुप्त रूप से इसे भाइयों सहित वन मे रहना स्वीकार करना पड़ा था । वन में मुनि संघ के दर्शन कर इसने आत्मनिंदा की थी । शल्य को सत्रहवें दिन मारने की प्रतिज्ञा करते हुए प्रतिज्ञा पूर्ण होने पर अग्नि में आत्मदाह करने का भी इसने निश्चय किया था । इस प्रतिज्ञा के अनुसार यह शल्य के पास गया और बाणों से इसने शल्य का सिर काट डाला था । अंत में तीर्थंकर नेमिनाथ से अपने पूर्वभव सुनकर यह भाइयों के साथ संयमी हो गया था । नेमिनाथ के साथ विहार करता रहा । इसके शत्रुंजय पर्वत पर आतापन योग में स्थिर होने पर दुर्योधन के भानजे कुर्यधर ने इसके और इसके भाइयों को लोहे के तप्त मुकुट आदि आभरण पहनाकर विविध रूप से उपसर्ग किये थे । इसने उन उपसर्गों को जीत कर और कर्मों को ध्यानाग्नि में जलाकर मोक्ष पाया । दूसरे पूर्वभव में यह सोमदत्त था और प्रथम पूर्वभव में आरण स्वर्ग में देव हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 70.115, 72.266-270, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 45. 2, 37-38, 64.137, 141, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 7.187-188, 8.142, 147, 208-212, 13. 34, 163, 16 2-4, 10, 105-125, 17. 2-4, 19. 200-201, 20. 24.75, 24.75, 25.124-133 </span></p> | ||
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Revision as of 16:56, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
पांडवपुराण/ सर्ग न./श्लोक नं. पूर्व के दूसरे भव में सोमदत्त नाम का ब्राह्मण पुत्र था (21/81) पूर्वभव में आरण स्वर्ग में देव था। (23/112)। वर्तमान भव में पांडु राजा का कुंती रानी से पुत्र था (8/143; 24/74) अपने ताऊ भीष्म व गुरु द्रोणाचार्य से क्रम से शिक्षा व धनुर्विद्या प्राप्त की। (8/208-214)। प्रवास काल में अनेकों कन्याओं से विवाह किया। (13/33; 13/160)। दुर्योधन के साथ जुए में हारने पर 12 वर्ष का वनवास मिला। (16/104-125)। वन में मुनियों के दर्शन होने पर स्व निंदा की। (17/4)। अंत में अपने पूर्व भव सुनकर दीक्षा ग्रहण की। (25/12)। तथा घोर तप किया। (25/17-51)। दुर्योधन के भानजे कुर्यधर कृत उपसर्ग को जीत मोक्ष प्राप्त किया। (25/52-133)। (विशेष देखें पांडव )।
पुराणकोष से
हस्तिनापुर के कुरुवंशी राजा पांडु और रानी कुंती का ज्येष्ठ पुत्र । यह भीम और अर्जुन का बड़ा भाई था । ये तीनों भाई पांडु और कुश्ती के विवाह के पश्चात् हुए थे । विवाह के पूर्व कर्ण हुआ था । इसकी दूसरी माँ माद्री से उत्पन्न नकुल और सहदेव दो छोटे भाई और थे । कर्ण को छोड़कर ये पाँचों भाई पांडव नाम से विख्यात हुए । इसका अपर नाम धर्मपुत्र था । इसके गर्भावस्था में आने से पूर्व बंधु वर्ग में प्रवृत्त था । इससे इसे यह नाम दिया गया था । इसी प्रकार इसके गर्भ में आते ही बंधुगण धर्माचरण में प्रवृत्त हुए थे अत: इसे ‘‘धर्मपुत्र’’ नाम से संबोधित किया गया था । इसके अन्नप्राशन, चोल, उपनयन आदि संस्कार कराये गये थे । ताऊ भीष्म तथा गुरु द्रोणाचार्य से इसने और इसके इतर भाइयों ने शिक्षा एवं धनुर्विद्या प्राप्त की थी । प्रवास काल में इसने अनेकों कन्याओं के साथ विवाह किया था इंद्रप्रस्थ नगर इसी ने बसाया था । यह दुर्योधन के साथ द्यूतक्रीडा में पराजित हो गया था । उसमें अपना सब कुछ हार जाने पर बारह वर्ष तक गुप्त रूप से इसे भाइयों सहित वन मे रहना स्वीकार करना पड़ा था । वन में मुनि संघ के दर्शन कर इसने आत्मनिंदा की थी । शल्य को सत्रहवें दिन मारने की प्रतिज्ञा करते हुए प्रतिज्ञा पूर्ण होने पर अग्नि में आत्मदाह करने का भी इसने निश्चय किया था । इस प्रतिज्ञा के अनुसार यह शल्य के पास गया और बाणों से इसने शल्य का सिर काट डाला था । अंत में तीर्थंकर नेमिनाथ से अपने पूर्वभव सुनकर यह भाइयों के साथ संयमी हो गया था । नेमिनाथ के साथ विहार करता रहा । इसके शत्रुंजय पर्वत पर आतापन योग में स्थिर होने पर दुर्योधन के भानजे कुर्यधर ने इसके और इसके भाइयों को लोहे के तप्त मुकुट आदि आभरण पहनाकर विविध रूप से उपसर्ग किये थे । इसने उन उपसर्गों को जीत कर और कर्मों को ध्यानाग्नि में जलाकर मोक्ष पाया । दूसरे पूर्वभव में यह सोमदत्त था और प्रथम पूर्वभव में आरण स्वर्ग में देव हुआ था । महापुराण 70.115, 72.266-270, हरिवंशपुराण 45. 2, 37-38, 64.137, 141, पांडवपुराण 7.187-188, 8.142, 147, 208-212, 13. 34, 163, 16 2-4, 10, 105-125, 17. 2-4, 19. 200-201, 20. 24.75, 24.75, 25.124-133