राजगृह: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> भरतक्षेत्र में मगधदेश का एक नगर । तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ का जन्म इसी नगर में हुआ था । इसका अपर नाम कुशाग्रपुर था । यह नगर पांच शैलों के मध्य में होने से इसे पंचशैलपुर भी कहते थे । इसके पाँच शैल हैं― इसकी पूर्वदिशा में चौकोर ऋषिगिरि, दक्षिणदिशा में त्रिकोण वैभार, दक्षिण-पश्चिम दिशा में त्रिकोणाकार विपुलाचल, धनुषाकार बलाहक तथा पूर्व और उत्तर दिशा के अंतराल में स्थित वर्तुलाकार पांडुक शैल । यह शैल केवल वासुपूज्य जिनेंद्र को छोड़कर अन्य सभी तीर्थंकरों के समवसरणों से पवित्र है । <span class="GRef"> महापुराण 57.70-72, 67.20-28, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 2.1, 33, 35.53-54, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 3.52-57, 18.119 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> भरतक्षेत्र में मगधदेश का एक नगर । तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ का जन्म इसी नगर में हुआ था । इसका अपर नाम कुशाग्रपुर था । यह नगर पांच शैलों के मध्य में होने से इसे पंचशैलपुर भी कहते थे । इसके पाँच शैल हैं― इसकी पूर्वदिशा में चौकोर ऋषिगिरि, दक्षिणदिशा में त्रिकोण वैभार, दक्षिण-पश्चिम दिशा में त्रिकोणाकार विपुलाचल, धनुषाकार बलाहक तथा पूर्व और उत्तर दिशा के अंतराल में स्थित वर्तुलाकार पांडुक शैल । यह शैल केवल वासुपूज्य जिनेंद्र को छोड़कर अन्य सभी तीर्थंकरों के समवसरणों से पवित्र है । <span class="GRef"> महापुराण 57.70-72, 67.20-28, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 2.1, 33, 35.53-54, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 3.52-57, 18.119 </span></p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> |
Revision as of 16:57, 14 November 2020
भरतक्षेत्र में मगधदेश का एक नगर । तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ का जन्म इसी नगर में हुआ था । इसका अपर नाम कुशाग्रपुर था । यह नगर पांच शैलों के मध्य में होने से इसे पंचशैलपुर भी कहते थे । इसके पाँच शैल हैं― इसकी पूर्वदिशा में चौकोर ऋषिगिरि, दक्षिणदिशा में त्रिकोण वैभार, दक्षिण-पश्चिम दिशा में त्रिकोणाकार विपुलाचल, धनुषाकार बलाहक तथा पूर्व और उत्तर दिशा के अंतराल में स्थित वर्तुलाकार पांडुक शैल । यह शैल केवल वासुपूज्य जिनेंद्र को छोड़कर अन्य सभी तीर्थंकरों के समवसरणों से पवित्र है । महापुराण 57.70-72, 67.20-28, पद्मपुराण 2.1, 33, 35.53-54, हरिवंशपुराण 3.52-57, 18.119