रोग: Difference between revisions
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कुष्ठादि विशेष प्रकार के रोग हो जाने पर जिन दीक्षा की योग्यता नहीं रहती है।−देखें [[ प्रव्रज्या#1 | प्रव्रज्या - 1]]। | कुष्ठादि विशेष प्रकार के रोग हो जाने पर जिन दीक्षा की योग्यता नहीं रहती है।−देखें [[ प्रव्रज्या#1 | प्रव्रज्या - 1]]। | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p> एक परीषह । इसमें यह ‘‘शरीर रोगों का घर है’’― ऐसा चिंतन करते हुए रोग जनित असह्य वेदना होने पर मुनि उसके प्रतिकार की कामना नहीं करते । <span class="GRef"> महापुराण 36.124 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> एक परीषह । इसमें यह ‘‘शरीर रोगों का घर है’’― ऐसा चिंतन करते हुए रोग जनित असह्य वेदना होने पर मुनि उसके प्रतिकार की कामना नहीं करते । <span class="GRef"> महापुराण 36.124 </span></p> | ||
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Revision as of 16:57, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
कुष्ठादि विशेष प्रकार के रोग हो जाने पर जिन दीक्षा की योग्यता नहीं रहती है।−देखें प्रव्रज्या - 1।
पुराणकोष से
एक परीषह । इसमें यह ‘‘शरीर रोगों का घर है’’― ऐसा चिंतन करते हुए रोग जनित असह्य वेदना होने पर मुनि उसके प्रतिकार की कामना नहीं करते । महापुराण 36.124