बोधपाहुड़ गाथा 45: Difference between revisions
From जैनकोष
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<div class="HindiUtthanika">(११) आगे प्रव्रज्या का स्वरूप कहते हैं -</div> | <div class="HindiUtthanika">(११) आगे प्रव्रज्या का स्वरूप कहते हैं -</div> | ||
<div class=" | <div class="HindiBhavarth"><div>अर्थ - गृह (घर) और ग्रंथ (परिग्रह) इन दोनों से मुनि तो मोह ममत्व, इष्ट-अनिष्ट बुद्धि से रहित ही है, जिनमें बाईस परीषहों का सहना होता है, कषायों को जीतते हैं और पापरूप आरंभ से रहित हैं, इसप्रकार प्रव्रज्या जिनेश्वरदेव ने कही है ।</div> | ||
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<div class="HindiBhavarth"><div> | <div class="HindiBhavarth"><div>भावार्थ - जैनदीक्षा में कुछ भी परिग्रह नहीं, सर्व संसार का मोह नहीं, जिसमें बाईस परीषहों का सहना तथा कषायों का जीतना पाया जाता है और पापारंभ का अभाव होता है । इसप्रकार की दीक्षा अन्यमत में नहीं है ॥४५॥</div> | ||
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Latest revision as of 17:41, 2 November 2013
गिहगंथमोहमुक्का बावीसपरीसहा जियकषाया ।
पावारंभविमुक्का पव्वज्ज एरिसा भणिया ॥४५॥
गृहग्रन्थमोहमुक्ता द्वाविंशतिपरीषहा जितकषाया ।
पापारम्भविमुक्ता प्रव्रज्या ईदृशी भणिता ॥४५॥
(११) आगे प्रव्रज्या का स्वरूप कहते हैं -
अर्थ - गृह (घर) और ग्रंथ (परिग्रह) इन दोनों से मुनि तो मोह ममत्व, इष्ट-अनिष्ट बुद्धि से रहित ही है, जिनमें बाईस परीषहों का सहना होता है, कषायों को जीतते हैं और पापरूप आरंभ से रहित हैं, इसप्रकार प्रव्रज्या जिनेश्वरदेव ने कही है ।
भावार्थ - जैनदीक्षा में कुछ भी परिग्रह नहीं, सर्व संसार का मोह नहीं, जिसमें बाईस परीषहों का सहना तथा कषायों का जीतना पाया जाता है और पापारंभ का अभाव होता है । इसप्रकार की दीक्षा अन्यमत में नहीं है ॥४५॥