शांडिल्य: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) गुरु ध्रौव्य का शिष्य । क्षीरकदंबक, वैन्य, उदंच और प्रावृत इसके गुरु भाई थे । महाकाल देव ने इसका रूप धारण करके पर्वत के नेतृत्व में रोग फैलाकर उनकी उसने पर्वत के द्वारा शांति करायी थी । राजा सगर भी पर्वत के पास निरोग हो गया था । इसने अश्वमेघ, अंजमेध, गोमेध और राजसूय यज्ञों को चालू किया था । अपने चातुर्य से इसने सगर और सुलसा को भी यज्ञ में होम दिया था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 23.134-146 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) गुरु ध्रौव्य का शिष्य । क्षीरकदंबक, वैन्य, उदंच और प्रावृत इसके गुरु भाई थे । महाकाल देव ने इसका रूप धारण करके पर्वत के नेतृत्व में रोग फैलाकर उनकी उसने पर्वत के द्वारा शांति करायी थी । राजा सगर भी पर्वत के पास निरोग हो गया था । इसने अश्वमेघ, अंजमेध, गोमेध और राजसूय यज्ञों को चालू किया था । अपने चातुर्य से इसने सगर और सुलसा को भी यज्ञ में होम दिया था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 23.134-146 </span></p> | ||
<p id="2">(2) एक तापस । अयोध्या के राजा सहस्रबाहु इसके बहनोई तथा चित्रमती इसकी बहिन थी । परशुराम को सहस्रबाहु की समस्त संतान नष्ट करने में उद्यत देखकर इसने गर्भवती चित्रमती को अज्ञात रूप से ले जाकर सुबंधु मुनि के पास रखा था । सुभौम चक्रवर्ती यही जन्मा था । अपने भानेज का सुभौम नाम इसी ने रखा था । <span class="GRef"> महापुराण 65.56-57, 115-125 </span></p> | <p id="2">(2) एक तापस । अयोध्या के राजा सहस्रबाहु इसके बहनोई तथा चित्रमती इसकी बहिन थी । परशुराम को सहस्रबाहु की समस्त संतान नष्ट करने में उद्यत देखकर इसने गर्भवती चित्रमती को अज्ञात रूप से ले जाकर सुबंधु मुनि के पास रखा था । सुभौम चक्रवर्ती यही जन्मा था । अपने भानेज का सुभौम नाम इसी ने रखा था । <span class="GRef"> महापुराण 65.56-57, 115-125 </span></p> | ||
<p id="3">(3) मगध देश के राजगृह नगर का एक वेदों का जानने-वाला ब्राह्मण । पारशरी इसकी स्त्री थी । इसके पुत्र का नाम स्थावर था । <span class="GRef"> महापुराण 74.82-83, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 3.2-3 </span></p> | <p id="3">(3) मगध देश के राजगृह नगर का एक वेदों का जानने-वाला ब्राह्मण । पारशरी इसकी स्त्री थी । इसके पुत्र का नाम स्थावर था । <span class="GRef"> महापुराण 74.82-83, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 3.2-3 </span></p> | ||
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Revision as of 16:58, 14 November 2020
(1) गुरु ध्रौव्य का शिष्य । क्षीरकदंबक, वैन्य, उदंच और प्रावृत इसके गुरु भाई थे । महाकाल देव ने इसका रूप धारण करके पर्वत के नेतृत्व में रोग फैलाकर उनकी उसने पर्वत के द्वारा शांति करायी थी । राजा सगर भी पर्वत के पास निरोग हो गया था । इसने अश्वमेघ, अंजमेध, गोमेध और राजसूय यज्ञों को चालू किया था । अपने चातुर्य से इसने सगर और सुलसा को भी यज्ञ में होम दिया था । हरिवंशपुराण 23.134-146
(2) एक तापस । अयोध्या के राजा सहस्रबाहु इसके बहनोई तथा चित्रमती इसकी बहिन थी । परशुराम को सहस्रबाहु की समस्त संतान नष्ट करने में उद्यत देखकर इसने गर्भवती चित्रमती को अज्ञात रूप से ले जाकर सुबंधु मुनि के पास रखा था । सुभौम चक्रवर्ती यही जन्मा था । अपने भानेज का सुभौम नाम इसी ने रखा था । महापुराण 65.56-57, 115-125
(3) मगध देश के राजगृह नगर का एक वेदों का जानने-वाला ब्राह्मण । पारशरी इसकी स्त्री थी । इसके पुत्र का नाम स्थावर था । महापुराण 74.82-83, वीरवर्द्धमान चरित्र 3.2-3