शूद्र: Difference between revisions
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<p> वृषभदेव ने कर्मभूमि का आरंभ करते हुए तीन वर्णों की स्थापना की थी― क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र । इसमें सेवा-शुश्रूषा करने वालों को शूद्र कहा गया है । इनके दो भेद बताये हैं― कारू और अकारू । <span class="GRef"> महापुराण 16.183-186, 245, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 3.258, 11. 202, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 9. 39, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 2.161-162 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> वृषभदेव ने कर्मभूमि का आरंभ करते हुए तीन वर्णों की स्थापना की थी― क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र । इसमें सेवा-शुश्रूषा करने वालों को शूद्र कहा गया है । इनके दो भेद बताये हैं― कारू और अकारू । <span class="GRef"> महापुराण 16.183-186, 245, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 3.258, 11. 202, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 9. 39, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 2.161-162 </span></p> | ||
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Revision as of 16:58, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
देखें वर्णव्यवस्था - 4।
पुराणकोष से
वृषभदेव ने कर्मभूमि का आरंभ करते हुए तीन वर्णों की स्थापना की थी― क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र । इसमें सेवा-शुश्रूषा करने वालों को शूद्र कहा गया है । इनके दो भेद बताये हैं― कारू और अकारू । महापुराण 16.183-186, 245, पद्मपुराण 3.258, 11. 202, हरिवंशपुराण 9. 39, पांडवपुराण 2.161-162