श्रीनंदन: Difference between revisions
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<span class="HindiText"><span class="GRef"> पद्मपुराण/92/ </span>श्लोक नं.श्री मन्यु आदि सप्तऋषियों के पिता थे (4) प्रीतिंकर भगवान् के केवलज्ञान के समय एक पुत्र को राज्य देकर सातों पुत्र सहित दीक्षा ग्रहण कर ली (6)। अंत में मोक्ष प्राप्त की (8)।</span> | <span class="HindiText"><span class="GRef"> पद्मपुराण/92/ </span>श्लोक नं.श्री मन्यु आदि सप्तऋषियों के पिता थे (4) प्रीतिंकर भगवान् के केवलज्ञान के समय एक पुत्र को राज्य देकर सातों पुत्र सहित दीक्षा ग्रहण कर ली (6)। अंत में मोक्ष प्राप्त की (8)।</span> | ||
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<p> प्रभापुर नगर का राजा । सप्तर्षि नान से प्रसिद्ध सुरमन्यु, श्रीमन्यु, श्रीनिचय, सर्वसुंदर, जयवान, विनयलालस और जयमित्र इसके पुत्र थे । ये सभी धरणी नाम की रानी से उत्पन्न हुए थे । डमरमंगल नामक एक मास के पौत्र को राज्य देकर इसने और इसके सभी पुत्रों ने प्रीतिंकर मुनि से दीक्षा ले ली थी । इसके पुत्र मुनि होकर सप्तर्षि हुए तथा इतने केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त किया । <span class="GRef"> पद्मपुराण 92.1-7 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> प्रभापुर नगर का राजा । सप्तर्षि नान से प्रसिद्ध सुरमन्यु, श्रीमन्यु, श्रीनिचय, सर्वसुंदर, जयवान, विनयलालस और जयमित्र इसके पुत्र थे । ये सभी धरणी नाम की रानी से उत्पन्न हुए थे । डमरमंगल नामक एक मास के पौत्र को राज्य देकर इसने और इसके सभी पुत्रों ने प्रीतिंकर मुनि से दीक्षा ले ली थी । इसके पुत्र मुनि होकर सप्तर्षि हुए तथा इतने केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त किया । <span class="GRef"> पद्मपुराण 92.1-7 </span></p> | ||
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Revision as of 16:58, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
पद्मपुराण/92/ श्लोक नं.श्री मन्यु आदि सप्तऋषियों के पिता थे (4) प्रीतिंकर भगवान् के केवलज्ञान के समय एक पुत्र को राज्य देकर सातों पुत्र सहित दीक्षा ग्रहण कर ली (6)। अंत में मोक्ष प्राप्त की (8)।
पुराणकोष से
प्रभापुर नगर का राजा । सप्तर्षि नान से प्रसिद्ध सुरमन्यु, श्रीमन्यु, श्रीनिचय, सर्वसुंदर, जयवान, विनयलालस और जयमित्र इसके पुत्र थे । ये सभी धरणी नाम की रानी से उत्पन्न हुए थे । डमरमंगल नामक एक मास के पौत्र को राज्य देकर इसने और इसके सभी पुत्रों ने प्रीतिंकर मुनि से दीक्षा ले ली थी । इसके पुत्र मुनि होकर सप्तर्षि हुए तथा इतने केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त किया । पद्मपुराण 92.1-7