सनत्कुमार: Difference between revisions
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<span class="HindiText">1. चौथा चक्रवर्ती‒देखें [[ शलाकापुरुष#2 | शलाकापुरुष - 2]]। 2. कल्पवासी देवों का एक भेद तथा उनका अवस्थान‒देखें [[ स्वर्ग#3 | स्वर्ग - 3 ]]व 5/2।</span> | <span class="HindiText">1. चौथा चक्रवर्ती‒देखें [[ शलाकापुरुष#2 | शलाकापुरुष - 2]]। 2. कल्पवासी देवों का एक भेद तथा उनका अवस्थान‒देखें [[ स्वर्ग#3 | स्वर्ग - 3 ]]व 5/2।</span> | ||
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<p id="1"> (1) सोलह स्वर्गों में तीसरा स्वर्ग । <span class="GRef"> महापुराण 67.146, 74.75, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 6.36 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) सोलह स्वर्गों में तीसरा स्वर्ग । <span class="GRef"> महापुराण 67.146, 74.75, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 6.36 </span></p> | ||
<p id="2">(2) अकृत्रिम चैत्यालयों की प्रतिमाओं के समीप स्थित यक्ष । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.363 </span></p> | <p id="2">(2) अकृत्रिम चैत्यालयों की प्रतिमाओं के समीप स्थित यक्ष । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.363 </span></p> | ||
<p id="3">(3) अवसर्पिणी काल के दु:षमा-सुषमा नामक चौथे काल में उत्पन्न बारह चक्रवर्तियों में चौथा चक्रवर्ती । यह अयोध्या नगरी के राजा अनंतवीर्य और रानी सहदेवी का पुत्र था । इसकी आयु तीन लाख वर्ष की थी । इसने कुमारकाल में पचास लाख वर्ष, मंडलीक अवस्था में पचास हजार वर्ष, दिग्विजय में दस हजार वर्ष, चक्रवर्ती अवस्था में नब्बे हजार वर्ष और एक लाख वर्ष संयम अवस्था में बिताये थे । इसने देवकुमार नामक पुत्र को राज्य देकर शिवगुप्त मुनि से दीक्षा ली थी तथा कर्म नाश कर मोक्ष प्राप्त किया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण </span>में इसकी इस प्रकार कथा दी गई है । सौधर्मेंद्र ने अपनी सभा में इसके रूप की प्रशंसा की थी, जिसे सुनकर दो देव इसके रूप को देखने आये थे । उन्होंने इसे फूल-धूसरित अवस्था में स्नान के लिए तैयार कलशों के बीच बैठा देखा । दोनों देव मुग्ध हुए । जद इसे ज्ञात हुआ कि देव उसका रूप देखने आये हैं, इसने वस्त्राभूषणों से सुसज्जित होने के पश्चात् सिंहासन पर देखने के लिए देवों से आग्रह किया । देवों ने इसे सिंहासन पर बैठा देखा । उन्हें प्रथम दर्शन में जो शोभा दिखाई दी थी वह इस दर्शन में दिखाई नहीं दी । इन देवों से लक्ष्मी एव भोगोपभोगों की क्षणभंगुरता जानकर इसका राग छूट गया और इसने मुनिदीक्षा लेकर तप किया इसे अनेक रोग भी हुए, किंतु यह रोग जनित वेदना शांति से सहता रहा । अंत में आत्मध्यान के प्रभाव से सनत्कुमार स्वर्ग में देव हुआ पूर्वभवों में यह गोवर्द्धन ग्राम का निवासी हेमबाहु था । महापूजा की अनुमोदना रू यक्ष हुआ । सम्यग्दर्शन से संपन्न होने तथा जिन वंदना करने से तीन बार मनुष्य हुआ, देव हुआ और इसके पश्चात् महापुरी नगरी का धर्मरुचि नाम का राजा हुआ । मुनि होकर मरने से माहेंद्र स्वर्ग में देव हुआ और वहाँ से चयकर चक्रवर्ती सनत्कुमार हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 61.104-106, 118, 127-129, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण </span>20.137-163, <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 45. 16, 60. 286, 503-504, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 18.101, 109 </span></p> | <p id="3">(3) अवसर्पिणी काल के दु:षमा-सुषमा नामक चौथे काल में उत्पन्न बारह चक्रवर्तियों में चौथा चक्रवर्ती । यह अयोध्या नगरी के राजा अनंतवीर्य और रानी सहदेवी का पुत्र था । इसकी आयु तीन लाख वर्ष की थी । इसने कुमारकाल में पचास लाख वर्ष, मंडलीक अवस्था में पचास हजार वर्ष, दिग्विजय में दस हजार वर्ष, चक्रवर्ती अवस्था में नब्बे हजार वर्ष और एक लाख वर्ष संयम अवस्था में बिताये थे । इसने देवकुमार नामक पुत्र को राज्य देकर शिवगुप्त मुनि से दीक्षा ली थी तथा कर्म नाश कर मोक्ष प्राप्त किया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण </span>में इसकी इस प्रकार कथा दी गई है । सौधर्मेंद्र ने अपनी सभा में इसके रूप की प्रशंसा की थी, जिसे सुनकर दो देव इसके रूप को देखने आये थे । उन्होंने इसे फूल-धूसरित अवस्था में स्नान के लिए तैयार कलशों के बीच बैठा देखा । दोनों देव मुग्ध हुए । जद इसे ज्ञात हुआ कि देव उसका रूप देखने आये हैं, इसने वस्त्राभूषणों से सुसज्जित होने के पश्चात् सिंहासन पर देखने के लिए देवों से आग्रह किया । देवों ने इसे सिंहासन पर बैठा देखा । उन्हें प्रथम दर्शन में जो शोभा दिखाई दी थी वह इस दर्शन में दिखाई नहीं दी । इन देवों से लक्ष्मी एव भोगोपभोगों की क्षणभंगुरता जानकर इसका राग छूट गया और इसने मुनिदीक्षा लेकर तप किया इसे अनेक रोग भी हुए, किंतु यह रोग जनित वेदना शांति से सहता रहा । अंत में आत्मध्यान के प्रभाव से सनत्कुमार स्वर्ग में देव हुआ पूर्वभवों में यह गोवर्द्धन ग्राम का निवासी हेमबाहु था । महापूजा की अनुमोदना रू यक्ष हुआ । सम्यग्दर्शन से संपन्न होने तथा जिन वंदना करने से तीन बार मनुष्य हुआ, देव हुआ और इसके पश्चात् महापुरी नगरी का धर्मरुचि नाम का राजा हुआ । मुनि होकर मरने से माहेंद्र स्वर्ग में देव हुआ और वहाँ से चयकर चक्रवर्ती सनत्कुमार हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 61.104-106, 118, 127-129, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण </span>20.137-163, <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 45. 16, 60. 286, 503-504, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 18.101, 109 </span></p> | ||
<p id="4">(4) सनत्कुमार स्वर्ग का इंद्र । <span class="GRef"> महापुराण 13.62 </span></p> | <p id="4">(4) सनत्कुमार स्वर्ग का इंद्र । <span class="GRef"> महापुराण 13.62 </span></p> | ||
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Revision as of 16:58, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
1. चौथा चक्रवर्ती‒देखें शलाकापुरुष - 2। 2. कल्पवासी देवों का एक भेद तथा उनका अवस्थान‒देखें स्वर्ग - 3 व 5/2।
पुराणकोष से
(1) सोलह स्वर्गों में तीसरा स्वर्ग । महापुराण 67.146, 74.75, हरिवंशपुराण 6.36
(2) अकृत्रिम चैत्यालयों की प्रतिमाओं के समीप स्थित यक्ष । हरिवंशपुराण 5.363
(3) अवसर्पिणी काल के दु:षमा-सुषमा नामक चौथे काल में उत्पन्न बारह चक्रवर्तियों में चौथा चक्रवर्ती । यह अयोध्या नगरी के राजा अनंतवीर्य और रानी सहदेवी का पुत्र था । इसकी आयु तीन लाख वर्ष की थी । इसने कुमारकाल में पचास लाख वर्ष, मंडलीक अवस्था में पचास हजार वर्ष, दिग्विजय में दस हजार वर्ष, चक्रवर्ती अवस्था में नब्बे हजार वर्ष और एक लाख वर्ष संयम अवस्था में बिताये थे । इसने देवकुमार नामक पुत्र को राज्य देकर शिवगुप्त मुनि से दीक्षा ली थी तथा कर्म नाश कर मोक्ष प्राप्त किया था । पद्मपुराण में इसकी इस प्रकार कथा दी गई है । सौधर्मेंद्र ने अपनी सभा में इसके रूप की प्रशंसा की थी, जिसे सुनकर दो देव इसके रूप को देखने आये थे । उन्होंने इसे फूल-धूसरित अवस्था में स्नान के लिए तैयार कलशों के बीच बैठा देखा । दोनों देव मुग्ध हुए । जद इसे ज्ञात हुआ कि देव उसका रूप देखने आये हैं, इसने वस्त्राभूषणों से सुसज्जित होने के पश्चात् सिंहासन पर देखने के लिए देवों से आग्रह किया । देवों ने इसे सिंहासन पर बैठा देखा । उन्हें प्रथम दर्शन में जो शोभा दिखाई दी थी वह इस दर्शन में दिखाई नहीं दी । इन देवों से लक्ष्मी एव भोगोपभोगों की क्षणभंगुरता जानकर इसका राग छूट गया और इसने मुनिदीक्षा लेकर तप किया इसे अनेक रोग भी हुए, किंतु यह रोग जनित वेदना शांति से सहता रहा । अंत में आत्मध्यान के प्रभाव से सनत्कुमार स्वर्ग में देव हुआ पूर्वभवों में यह गोवर्द्धन ग्राम का निवासी हेमबाहु था । महापूजा की अनुमोदना रू यक्ष हुआ । सम्यग्दर्शन से संपन्न होने तथा जिन वंदना करने से तीन बार मनुष्य हुआ, देव हुआ और इसके पश्चात् महापुरी नगरी का धर्मरुचि नाम का राजा हुआ । मुनि होकर मरने से माहेंद्र स्वर्ग में देव हुआ और वहाँ से चयकर चक्रवर्ती सनत्कुमार हुआ । महापुराण 61.104-106, 118, 127-129, पद्मपुराण 20.137-163, हरिवंशपुराण 45. 16, 60. 286, 503-504, वीरवर्द्धमान चरित्र 18.101, 109
(4) सनत्कुमार स्वर्ग का इंद्र । महापुराण 13.62