सारस्वत: Difference between revisions
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<p class="HindiText">2. भरतक्षेत्र पश्चिम आर्यखंड का एक देश-देखें [[ मनुष्य#4 | मनुष्य - 4]]।</p> | <p class="HindiText">2. भरतक्षेत्र पश्चिम आर्यखंड का एक देश-देखें [[ मनुष्य#4 | मनुष्य - 4]]।</p> | ||
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<p id="1"> (1) भरतक्षेत्र के पश्चिम आर्यखंड का एक देश । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 11.72 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) भरतक्षेत्र के पश्चिम आर्यखंड का एक देश । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 11.72 </span></p> | ||
<p id="2">(2) ब्रह्मलोक में रहने वाले लोकांतिक देवों का प्रथम भेद । ये इन तीर्थंकरों के वैराग्य को प्रवृद्ध कराने तथा उनके तप-कल्याणकी की पूजा करने के लिए स्वर्ग से नीचे आते हैं । ये देव जन्मजात ब्रह्मचारी, एक भवावतारी, पूर्वभव में संपूर्णश्रुत और वैराग्यभावना के अभ्यासी होते हैं । इंद्र और देव इनकी वंदना करते हैं । ये देवर्षि कहलाते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 17.47-48, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 9.63-64, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 12.2-5 </span></p> | <p id="2">(2) ब्रह्मलोक में रहने वाले लोकांतिक देवों का प्रथम भेद । ये इन तीर्थंकरों के वैराग्य को प्रवृद्ध कराने तथा उनके तप-कल्याणकी की पूजा करने के लिए स्वर्ग से नीचे आते हैं । ये देव जन्मजात ब्रह्मचारी, एक भवावतारी, पूर्वभव में संपूर्णश्रुत और वैराग्यभावना के अभ्यासी होते हैं । इंद्र और देव इनकी वंदना करते हैं । ये देवर्षि कहलाते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 17.47-48, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 9.63-64, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 12.2-5 </span></p> | ||
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Revision as of 16:58, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
1. लौकांतिक देवों का एक भेद-देखें लौकांतिक ;
2. भरतक्षेत्र पश्चिम आर्यखंड का एक देश-देखें मनुष्य - 4।
पुराणकोष से
(1) भरतक्षेत्र के पश्चिम आर्यखंड का एक देश । हरिवंशपुराण 11.72
(2) ब्रह्मलोक में रहने वाले लोकांतिक देवों का प्रथम भेद । ये इन तीर्थंकरों के वैराग्य को प्रवृद्ध कराने तथा उनके तप-कल्याणकी की पूजा करने के लिए स्वर्ग से नीचे आते हैं । ये देव जन्मजात ब्रह्मचारी, एक भवावतारी, पूर्वभव में संपूर्णश्रुत और वैराग्यभावना के अभ्यासी होते हैं । इंद्र और देव इनकी वंदना करते हैं । ये देवर्षि कहलाते हैं । महापुराण 17.47-48, हरिवंशपुराण 9.63-64, वीरवर्द्धमान चरित्र 12.2-5