सूत्रपाहुड़ गाथा 5: Difference between revisions
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सुत्तत्थं जिणभणियं जीवाजीवादिबहुविहं अत्थं ।
हेयाहेयं च तहा जो जाणइ सो हु सद्दिट्ठी ॥५॥
सूत्रार्थं जिनभणितं जीवाजीवादिबहुविधमर्थम् ।
हेयाहेयं च तथा यो जानाति स हि सद्दृष्टि: ॥५॥
आगे सूत्र में अर्थ क्या है, वह कहते हैं -
अर्थ - सूत्र का अर्थ जिन सर्वज्ञ देव ने कहा है और सूत्र का अर्थ जीव-अजीव आदि बहुत प्रकार है तथा हेय अर्थात् त्यागने योग्य पुद्गलादिक और अहेय अर्थात् त्यागने योग्य नहीं इसप्रकार आत्मा को जो जानता है वह प्रगट सम्यग्दृष्टि है ।
भावार्थ - - सर्वज्ञभाषित सूत्र में जीवादिक नवपदार्थ और इनमें हेय उपादेय इसप्रकार बहुत प्रकार से व्याख्यान है, उसको जानता है वह श्रद्धावान सम्यग्दृष्टि होता है ॥५॥